हिन्दू-मुस्लिम एकता बरक़रार रखने के ख़ातिर निकलेगी ‘सांझी विरासत यात्रा’

TwoCircles.net News Desk


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नई दिल्ली : मुल्क की आज़ादी के लिए अपने बुजुर्गों की क़ुरबानी को याद करने और उनके पैग़ाम को आम करने के लिए नियत से 50 से अधिक विभिन्न धर्मो व सम्प्रदायों के सामाजिक कार्यकर्ता कल यानी 30 नवम्बर को सुबह 9.30 बजे नई दिल्ली के राजघाट से देवबंद में शैख़ुल हिन्द मौलाना महमूदुल हसन के मज़ार तक एक ‘सांझी विरासत यात्रा’ के साथ पहुंचेंगे. इस यात्रा का असल मक़सद मुल्क की सांझी विरासत को मज़बूत बनाकर एक ऐसा हिंदुस्तान बनाना है, जो अमन, मुहब्बत, भाईचारा, बराबरी और इंसाफ़ के लिए दुनिया में जाना जाए.    

इस यात्रा का आयोजन ‘खुदाई खिदमतगार’ नामक संगठन ने किया है. ये यात्रा विभिन्न जगहों पर बातचीत, जनसभाओं, युवाओं से सम्पर्क, साहित्य वितरण के माध्यम से लोगों से संवाद करेगी. साथ ही यह कोशिश भी की जाएगी कि लोगों को समझा सके कि नफ़रत के बीज मत बोइए वरना कांटेदार दरख्त पैदा होंगे, जो हमें घायल करके रख देंगे.

इस यात्रा का मक़सद लोगों को ये संदेश देना भी है कि हम कितना ही लड़ लड़ कर एक दुसरे का खून बहा दें, लेकिन एक दिन ऐसा ज़रूर आएगा, जब हमें यह अहसास होगा कि हमने भारी भूल की है. समझदरी यही है कि उससे पहले ही हम आंखें खोल लें. अपनी आज़ादी के लिए दी गई लाखों लोगों की कुर्बानियों और अपनी सांझी विरासत को चोट न पहुंचाएं और हर हालत में अपनी उस सांझी विरासत की हिफाज़त करें, जिसके लिए हम सारी दुनिया में मशहूर रहे हैं और दुनिया हमें सम्मान की निगाह से देखती रही है.

याद रहे कि शैख़ुल हिन्द मौलाना महमूदुल हसन जिन्होंने “रेशमी रुमाल तहरीक़” चलाकर न सिर्फ़ अंग्रेज़ों से लोहा लिया था, बल्कि उनकी क़यादत में हज़ारों उलेमाओं ने देश के लिए क़ुरबानी दे दी. शैखुल हिन्द कई बरस तक जेल में रहें और पुरे मुल्क में लोगों को अंग्रेज़़ों के विरुद्ध संगठित करते रहे. लेकिन आज चंद एक लोगों को छोड़कर उन हज़ारों लोगों की कुर्बानियों को जान बूझकर भुलाया जा रहा है. जिसका नतीजा है कि आज नौजवान और मुल्क का बड़ा तबक़ा ये जानता भी नहीं कि शैखुल हिन्द कौन थे. वह शैखुल हिन्द जिन्होंने अपनी हड्डिया गलाकर इस मुल्क की आज़ादी के लिए अपना सबकुछ  निछावर कर दिया.

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