फ़हमिना हुसैन, TwoCircles.net
दलितों पर अत्याचार कोई नई बात नहीं है. ये ऊंच-नीच का भेदभाव आज भी बदस्तूर जारी है. आज भी ऐसी घटनाएं हर दिन सामने आ रही हैं, जिससे मानवता शर्मसार हो जाती है.
ऐसी ही एक घटना पिछले दिनों बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह ज़िले नालंदा में घटी. इस घटना को लेकर सोशल मीडिया पर लोगों अपनी प्रतिकिया देते नज़र आ रहे हैं.
मीडिया में आए एक रिपोर्ट के मुताबिक़ 54 साल के महेश ठाकुर को ना सिर्फ़ कथित रूप से चप्पलों से पीटने की सज़ा दी गई, बल्कि उससे थूक कर भी चटवाया गया.
दरअसल कहानी कुछ यूं है कि नालंदा ज़िले में नूरसराय प्रखंड के अजयपुर पंचायत के अजनौरा गांव में सरपंच सुरेंद्र यादव के गोशाला में महेश बिना दरवाज़ा खटखटाए अंदर चले गएं. उनके इस ग़लती पर महिलाओं के हाथों न सिर्फ़ चप्पल से पिटवाया गया, बल्कि उससे थूक कर चाटने को भी कहा गया.
महेश ठाकुर नाई समुदाय से ताल्लुक़ रखते हैं. गांव में उनकी अपनी दुकान है. वो सुरेंद्र यादव के गोशाला में खैनी मांगने गए थे.
महेश ठाकुर के मुताबिक़, मैं सुबह शौच करने जा रहा था. खैनी नहीं थी तो पास में रहने वाले सुरेंद्र यादव के यहां खैनी मांगने चला गया. वो वहां नहीं थे, उनकी पत्नी घर पर थीं. उन्होंने बताया कि वो घर पर नहीं हैं, फिर मैं वापस चला गया और जब शौच से लौटा तो मेरे साथ ऐसा किया गया. मुझे ज़मीन पर थूककर पांच बार चाटने को कहा गया. उन लोगों ने मुझे गांव से बेदखल करने की भी धमकी दी. मैं भयभीत हूं. मेरी जान को ख़तरा है.
इस घटना की वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद स्थानीय पुलिस हरकत में आई और मामले को संज्ञान में लेते हुए कार्रवाई शुरू की. इस घटना में नूरसराय थाना में आठ लोगों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की गई है.
बिहार में ये कोई पहली घटना नहीं है, बल्कि ऐसे बेशुमार मामले बिहार के विभिन्न गांवों में हर दिन घटित होते रहते हैं, ये अलग बात है कि ये घटनाएं मीडिया में नहीं आ पाते हैं. लेकिन अब सोशल मीडिया के दौर में ऐसी घटनाएं सामने आने लगी हैं.
ऐसा ही एक मामला पिछले बिहार के मुजफ़्फ़रपुर ज़िले में भी सामने आया. यहां दो दलित युवकों पर बाईक चोरी का आरोप लगाकर दबंगों ने उनके मुंह पर पेशाब कर दिया. इस घटना में कार्रवाई नाम पर एक व्यक्ति की गिरफ्तारी की गई.
आंकड़ों की बात करें तो राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार साल 2015 में बिहार राज्य में अनुसूचित जाति के सदस्यों के ख़िलाफ़ हुए अपराध के 1800 से ज्यादा मामले दर्ज किए गए, जबकि अनुसूचित जनजाति के ख़िलाफ़ होने वाले अपराधों की संख्या तब 483 थी.
जातीय भेदभाव के मामले की बात करें तो जातीय उत्पीड़न के मामले में बिहार पूरे देश में तीसरे नंबर पर है. 2015 में 7893 केस सामने आए जो कि पूरे देश का 16.8 फीसदी है.
ये जो गैर-बराबरी की मानसिकता है, उसके ख़िलाफ़ आज भी सामाजिक तौर पर लड़ने की ज़रूरत है. क्योंकि जब तक समाज में बराबरी नहीं आएगी, तब तक हम एक ऐसे विकसित समाज की कल्पना नहीं कर सकते, जहां सभी वर्ग, जाति और जमात के लोग एक साथ एक पंक्ति में खड़े हो सकें.