अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
नई दिल्ली : एक चलते-फिरते ठीक-ठाक तंदुरूस्त आदमी को लोगों की भीड़ पीटती है. और तब तक पीटती है, जब तक कि वो बेहोश नहीं हो जाता. इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होता है, जिसे पूरा देश देखता है.
कोई कम समझ वाला अदमी भी ये कह सकता है कि वीडियो में दिख रहा वो आदमी जान से गया होगा तो यक़ीनन इस पिटाई की वजह से गया होगा. लेकिन पढ़े-लिखे अपने क्षेत्र के माहिर डॉक्टर अगर ये राय दें कि वो आदमी पिटाई से नहीं, प्राकृतिक मौत मरा है तो इसे क्या समझा जाए. न्याय को रोकने की एक सोची समझी साज़िश या उस डॉक्टर की पेशेवर अज्ञानता?
ये कहानी हरियाणा राज्य से जुड़ी हुई है, जहां के एक शख़्स पहलू खान की बीते अप्रैल में राजस्थान के अलवर ज़िले में गो-रक्षा के नाम पर पीट-पीट कर हत्या कर दी गई.
पहलू खान के बेटे इरशाद खान का कहना है कि, पिटाई के बाद मुझे और मेरे अब्बा को पुलिस वालों ने ही कैलाश अस्पताल में भर्ती कराया था. लेकिन एफ़आईआर में अस्पताल पहुंचाने वाले पुलिस वालों का बतौर गवाह नाम दर्ज नहीं है.
पहलू खान की मौत के बाद कैलाश अस्पताल के डॉक्टरों ने लिखा है कि पहलू ख़ान जब वहां लाए गए तो ठीक थे, लेकिन उसी समय उन्होंने यह भी माना है कि पहलू ख़ान की नाक से ख़ून निकल रहा था और छाती में दर्द था. लेकिन पहलू ख़ान की मौत ‘दिल का दौरा’ पड़ने से हुई है.
इस अस्पताल के डॉक्टर आरसी यादव अपनी रिपोर्ट में लिखते हैं कि, ‘मेरे द्वारा मरीज़ पहलू की विभिन्न जांच की गई, जिनमें चोटों के कारण मृत्यू होने की संभावना नहीं थी.’
वहीं इस अस्पताल के डॉक्टर वी.डी. शर्मा लिखते हैं कि, ‘मरीज़ के अस्पताल में भर्ती होने के दौरान उसके वाईटल्स नॉर्मल थे. वीपी पल्स व सांस की क्रिया नॉर्मल थी. दायीं तरफ़ छाती में दर्द बता रहा था.’
लेकिन वही डॉक्टर आगे लिख रहा है कि, ‘एक्सरे जांच करने पर पता चला कि लगभग 4-3 पसलियों में दायीं तरफ़ फ्रैक्चर था. नाक से खून आया था. मरीज़ पूरी तरह होश में था और नॉर्मल बातचीत कर रहा था.’
डॉक्टर साहब आगे फिर लिखते हैं कि, ‘ऑर्थो विशेषज्ञ डॉक्टर पीयूष ने देखा तो मरीज़ पहलू के हड्डियों में कोई प्रॉब्लम नहीं थी.’
इस कहानी में दिलचस्प पहलू यह है कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में तीन सरकारी डॉक्टर लिख रहे हैं कि पहलू ख़ान की मौत हमले के दौरान लगी चोटों से हुई है. यक़ीनन पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट महत्वपूर्ण प्रमाण है. लेकिन पुलिस सरकारी डॉक्टरों की रिपोर्ट को नज़रअंदाज़ कर गई. उसने कैलाश अस्पताल के डाक्टरों पर भरोसा किया. बात दें कि इस कैलाश अस्पताल के मालिक केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा हैं.
क्या इसे महज़ इत्तेफ़ाक माना जाए? या ये सवाल पूछा जाए कि केन्द्रीय मंत्री महेश शर्मा की भी अपने डॉक्टरों की रिपोर्ट को प्रभावित करने में कोई भूमिका हो सकती है. अब जब हम मंत्री का नाम ले ही रहे हैं तो ये सवाल भी क्यों न पूछा जाए कि ये जिस सूबे की घटना है, वहां सरकार मंत्री जी के पार्टी की ही है और केन्द्र में तो वो सत्ता में हैं ही. तो उनकी पार्टी ने इस घटना को प्रभावित करने की कोशिश नहीं की होगी. इस बात को न मानने के क्या कारण होने चाहिए?
गुरूवार को नई दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया के कांफ्रेस हॉल में सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने सवाल उठाया कि, महेश शर्मा किस तरह का अस्पताल चला रहे हैं. उन्होंने कैसे डॉक्टर रख लिए हैं. आख़िर उनके डॉक्टरों ने कैसे लिख दिया कि पहलू खान की मौत चोटों के कारण नहीं हुई है, जबकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सरकारी डॉक्टर मौत का कारण चोट ही बता रहे हैं. इस अस्पताल का लाईसेंस तुरंत रद्द होना चाहिए.
प्रशांत भूषण एक स्वतंत्र इंवेस्टीगेशन रिपोर्ट ‘किस तरह बचा रही पुलिस पहलू ख़ान के हत्यारों को’ के रीलीजिंग प्रोग्राम में बोल रहे थे. इस रिपोर्ट को वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार अजीत साही ने तैयार किया है. इस रिपोर्ट में साफ़ तौर पर बताया गया है कि पुलिस हत्यारों को बचाने में लगी है और पहलू खान के हत्यारे खुलेआम घूम रहे हैं.
लेकिन आज सवाल ये नहीं है कि पहलू खान के हत्यारे घूम रहे हैं, सवाल ये है कि उन हत्यारों के छूटने के पीछे कौन लोग हैं और उनका उदेश्य क्या है. क्या उनका उदेश्य देश को नफ़रत और हिंसा के आधार पर बांट कर सत्ता में बने रहना है. अगर ऐसा है तो सत्ता में रहकर वो किन हितों को साध रहे हैं, ये देश की जनता को अब सोचना ही होगा.