भारत के प्रधानमंत्री कथित गो-रक्षकों की हिंसा की आलोचना करते हैं और ठीक उसी दिन झारखंड में भीड़ एक व्यक्ति की हत्या कर देती है. और ये ‘हत्याओं’ का दौर अब भी जारी है…
भारत के सबसे अहम संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति की बातें इतनी बेअसर कैसे हो जाती हैं? क्या इसके पीछे भारत का कमज़ोर क़ानून है या सत्ता में बैठे लोगों का ऐसे हत्यारों के साथ गठजोड़? यही समझने के लिए TwoCircles.net के संवाददाता अफ़रोज़ आलम साहिल ने बात की ‘सिटीजन अगेंस्ट हेट’ के संयोजक सज्जाद हसन से, जिन्होंने हाल ही में भारत में नफ़रत या गो-रक्षा के नाम पर भीड़ द्वारा मार दिए लोगों के 24 मामलों पर एक रिपोर्ट तैयार की है. सज्जाद हसन ‘मिसाल फाउंडेशन’ के संस्थापक हैं.
TwoCircles.net के साथ बातचीत में सज्जाद हसन बताते हैं कि सरकार में शामिल लोगों के कई उदाहरण सामने आए हैं, जिससे साफ़ पता चलता है कि वो नफ़रत या गो–रक्षा के बहाने इस तरह की हत्याओं का समर्थन कर रहे हैं. अख़लाक़ के मामले में आप देख सकते हैं कि एक केन्द्रीय मंत्री अख़लाक़ की हत्या के आरोपियों का साथ होता है. यही नहीं, ज़्यादातर मामलों में उन्हीं संस्थाओं के सदस्यों के नाम आए हैं, जो आरएसएस या सरकार से किसी न किसी रूप में जुड़ी हुई हैं. जैसे बुलंदशहर वाले मामले में हिन्दू युवा वाहिनी के सदस्यों के नाम एफ़आईआर में दर्ज हैं. झारखंड के रामगढ़ वाले मामले में भाजपा के ज़िला मीडिया सेल अध्यक्ष मुख्य आरोपी है तो वहीं पुणे में हिन्दू राष्ट्र सेना का अध्यक्ष आरोपी है. अन्य मामलों में भी यही हाल है.
वो बताते हैं कि हमने सिर्फ़ 24 मामलों को अपनी रिपोर्ट में शामिल किया है. और उन्हीं मामलों को लिया है, जिनमें मौत हुई हैं. सिर्फ़ एक केस में बलात्कार का मामला है. ज़्यादातर मामले गो-रक्षा के नाम पर हत्याओं के हैं. इन 24 मामलों में 35 लोगों की मौत हुई है.
सज्जाद बताते हैं कि, हमने अपनी रिपोर्ट में यह भी पाया कि जहां गाय का मुद्दा काम नहीं कर रहा है, वहां किसी और मुद्दे का सहारा लिया जाता है. जैसे झारखंड के एक मामले में आदिवासियों में बच्चा चोरी की बात फैलाकर उकसाया गया, क्योंकि आदिवासियों के लिए गाय कोई मुद्दा नहीं है, लेकिन इसी मामले में दूसरे हिन्दूओं के लिए गाय का इस्तेमाल किया गया.
कई राज्यों में वहां का क़ानून ही ऐसा बना दिया गया है कि क़ानून खुद हिंसा को बढ़ावा दे रहा है. सज्जाद बताते हैं कि, हरियाणा के क़ानून में गो-रक्षा के लिए प्राईवेट पार्टी को भी आउटसोर्स कर सकते हैं. यहां का गो-रक्षा क़ानून सरकार को ये अधिकार देती है कि क़ानून के पालन करवाने में वो प्राईवेट पार्टीज़ का इस्तेमाल कर सकती है. इस तरह से यहां संगठित गो-रक्षक दल हैं. ये दल पुलिस के साथ मिलकर पुलिस की जानकारी में काम करते हैं. यहां के ज़्यादातर केसों में देखा कि मौत की एफ़आईआर नहीं है, बल्कि जिसकी मौत हुई है, उन्हीं के परिवारों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर है. सारी ग़लती मरने वाले की ही बताई जाती है.
वो एक लंबी बातचीत में बताते हैं कि अब तो हरियाणा में गो-रक्षकों को आई-कार्ड भी देने की बात हो रही है. यहां एक टास्क फोर्स भी है. गो-रक्षा आयोग भी है. महाराष्ट्र में तो बाज़ाब्ता विज्ञापन दिया गया कि हमें वॉलिन्टियर चाहिए जो हमें गो-रक्षा क़ानून को लागू करने में मदद कर सकें. इस तरह से एक गुंडों की फौज, जिन्हें एक ख़ास समुदाय से नफ़रत है, सरकार के इस काम में शामिल हैं.
सज्जाद बताते हैं कि, हरियाणा, यूपी, राजस्थान, हिमाचल, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में यह देखने को मिलता है कि संगठित दल इस काम में लगे हुए हैं. वहीं झारखंड में थोड़ा पैटर्न अलग नज़र आता है. यहां एक ख़ास तरह की भीड़ आकर लोगों की हत्या करती है. झारखंड के जामताड़ा के एक मामले में तो पुलिस ने हवालात में पिटाई की. मारने के बाद पुलिस पीड़ित को अस्पताल पहुंचाती है, जहां उसकी मौत हो जाती है. पीड़ित के घर वालों के मुताबिक़ उन्होंने पुलिस स्टेशन से विश्व हिन्दू परिषद के ज़िला अध्यक्ष को निकलते देखा था. वो यह भी बताते हैं कि चाहे पैटर्न अलग हो, लेकिन पुलिस का रोल हर जगह एक जैसा ही नज़र आता है.
हमारे देश में बहुत पहले से साम्प्रदायिक हिंसा होती आ रही है. लेकिन अब नफ़रत की राजनीति करने वालों को समझ में आ गया है कि साम्प्रदायिक हिंसा करके एक साथ लोगों को मारेंगे तो सरकार की बदनामी होगी. और फिर सुप्रीम कोर्ट भी है. सज्जाद हसन के मुताबिक़, ऐसे में वो अब गाय के नाम पर लोगों को मारना चाह रहे हैं. इन छिटपुट घटनाओं में चाहे एक ही आदमी मरा है, लेकिन इसकी दहशत पूरे समुदाय व देश में है. मैं खुद जब सफ़र करता हूं तो मेरे अंदर ये दहशत रहती है. जबकि दंगों की दहशत स्थानीय स्तर पर होती थी. कई बार आप देखेंगे कि एक साज़िश के तहत खुद ही इस तरह के गुंडे इन मामलों में खुल्लम खुल्ला वीडियो बना रहे हैं. मतलब उन्हें पता है कि कोई हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता. कहीं न कहीं इनमें ये आत्मविश्वास है कि सरकार व पुलिस हमारे साथ है.
सज्जाद बताते हैं कि, ‘हेट क्राईम’ को रोकने के लिए हमारे देश में कोई क़ानून नहीं है. जबकि दुनिया के कई लोकतांत्रिक देशों में इसके लिए अलग से क़ानून है. अगर साबित हो गया कि किसी की हत्या ‘हेट क्राईम’ के तहत हुई है तो वहां उसकी सज़ा दुगुनी हो जाती है.
आगे सज्जाद बताते हैं कि, मुसलमान तो ख़ौफ़ज़दा हैं, लेकिन इससे पूरा देश भी प्रभावित हो रहा है. इसलिए इस देश के सेक्यूलर लोगों को क़ानून में रिफॉर्म लाने के लिए आवाज़ उठानी चाहिए. पीड़ित परिवार गरीब हैं. लाचार है. बेबस हैं. ज़्यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं. पैसे न होने की वजह से केस नहीं लड़ पा रहे हैं, लेकिन खौफ़ज़दा समाज के लोगों को आगे आकर इनकी मदद करना चाहिए ताकि ये अपना क़ानूनी लड़ाई जारी रख सकें.
ख़ास तौर पर मुसमलानों से अपील करते हुए सज्जाद कहते हैं कि, ज़रूरत इस बात की है कि हम इस तरह के मामलों में ज़्यादा से ज़्यादा सबूत इकट्ठा करें. इसके साथ यह भी ज़रूरी है कि जो पीड़ित हैं, ख़ास तौर पर दलित, आदिवासी व महिलाएं, उनकी लड़ाई और उनके ख़िलाफ़ जो ‘हेट क्राईम’ हो रहे हैं, उसके विरोध में एकजूट होकर संघर्ष करने की ज़रूरत है. वैसे भी हमारे पास क़ानून का सहारा लेने के अलावा कोई रास्ता नहीं है. जिन लोगों ने दूध या खेती के लिए गाय पाल रखी है, ज़रूरत है कि हमारे पढ़े-लिखे नौजवान गाय संबंधी ताज़ा क़ानूनों से उन्हें अवगत कराएं. उनके अंदर जागरूकता लाएं. हालांकि सज्जाद अचानक से मायूस होते हुए यह भी कहते हैं कि, चाहे जितनी जागरूकता हो, अगर वो मारना चाहेंगे तो मार ही देंगे. बावजूद इसके लोगों को अपने क़ानूनी अधिकारों के प्रति जागरूक रहना होगा.
वो आख़िर में कहते हैं कि मुसलमानों के अलावा दूसरे समुदाय के लोगों को भी समझना होगा कि गाय भाजपा के लिए सिर्फ़ एक औज़ार है. लोगों को बांटने का हथियार है. गोवा, मणिपुर, मिजोरम आदि में वो बांट नहीं सकते तो वहां गाय काटने पर कोई समस्या नहीं है. लेकिन जहां बांट सकते हैं वहां बांट कर राज करना चाहते हैं. बांटों और राज करो, यही इनकी पॉलिसी है. और हम जब तक बंटे रहेंगे, ये हम पर राज करते रहेंगे.
बता दें कि ‘सिटीजन अगेंस्ट हेट’ एक धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और एक भारत के लिए प्रतिबद्ध समूह है. यह नफ़रत के शिकार लोगों को व्यावहारिक सहायता प्रदान करने, और ‘हेट क्राईम’ का मुक़ाबला करने के लिए डॉक्यूमेंटेशन, आउटरीच, एडवोकेसी और क़ानूनी सहायता करती है. हालिया रिपोर्ट इसी का एक नतीजा है. रिपोर्ट में शामिल 24 मामलों में 5 में विशेष तौर पर ‘सिटीजन अगेंस्ट हेट’ क़ानूनी पहलू पर काम कर रहे हैं. इन 5 मामलों में 9 लोगों की मौत हुई है. इसके साथ ही इस रिपोर्ट के आधार पर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका भी डाली गई है, जिसकी सुनवाई आज यानी 31 अक्टूबर को होनी है.