Home Women जिसने काम चलाया था उसके लिए क़लम चला दिया…

जिसने काम चलाया था उसके लिए क़लम चला दिया…

मोहम्मद अनीसुर रहमान खान

कितना अच्छा विचार है कि हम अपने देश की बागडोर जिसके हाथ में दें उसका रिपोर्ट कार्ड भी हम ही बनाएं और अधिकारियों के साथ अपने राजनीतिक नेताओं का रिपोर्ट कार्ड बनाकर उन्हें वास्तविकता का आईना ज़रुर दिखाएं. ठीक उसी तरह जैसे हमारे बच्चों के रिपोर्ट कार्ड उनके स्कूल के शिक्षक प्रत्येक परीक्षा के बाद बनाकर हमें बच्चों के प्रदर्शन से न केवल अवगत कराते हैं बल्कि यही रिपोर्ट कार्ड तय करता हैं कि बच्चा किस विषय में कमज़ोर है और किस में नहीं.

यही कल्पना अगर राजनीतिक नेताओं और सरकारी अधिकारियों के लिए भी लागू हो तो उनके कार्यों की तुलना करना भी आसान हो जाएगा और सभी अपना काम सुधारने का मौक़ा मिलेगा. क्या यह एक अच्छा विचार नहीं है?

इस विचार को सच कर दिखाया है दिल्ली स्थित ‘सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिस’र्च नामक एक गैर-सरकारी संगठन ने, जिसे 28 जनवरी 1998 को मीडिया से जुड़ी महिलाओं के एक समूह ने महिलाओं, बच्चों, और गरीबों के सुधार के लिए बनाया था, जिसके अंतर्गत आज कई तरह के कार्यक्रम और परियोजनाएं चलाई जा रही हैं.

इस संबंध में संगठन की सीनियर प्रोजेक्ट मैनेजर कहती हैं कि, “हमारी कोशिश यह है कि नागरिकों में न केवल जागरूकता लाई जाए, बल्कि उनमें अपनी ज़िम्मेदारीयों का भी अहसास हो, जनता और सरकार के सहयोग से एक बेहतर स्वस्थ समाज का निर्णाण किया जा सके. हम लोग इस रिपोर्ट कार्ड को दिल्ली सरकार के साथ साझा भी करेंगे. यह केवल बस्ती वालों का अभ्यास नहीं है, बल्कि सरकारी अधिकारियों और उत्रदायी लोगों के लिए आईना है, जिसमें वे अपने काम को देखकर अनुमान लगा सकते हैं कि उन्हें और कैसे सुधार की आवश्यकता है.”

रिपोर्ट कार्ड बनाने का तरीक़ा यह है कि दिल्ली की अलग-अलग बस्तियों में महिलाओं और पुरुषों को एक टेबल पर चार-चार के हिसाब से बैठा दिया जाता है, क्योंकि यह ज्यादा शिक्षित नहीं होते हैं, इसलिए लिखने का काम करने के लिए प्रत्येक टेबल पर संगठन के एक कर्मचारी को भी बैठाया जाता है और उनसे कहा जाता है कि आप हर सवाल के लिए दस नंबर में अपने हिसाब से नंबर दें. साथ ही विभिन्न रंगों द्वारा भी बॉक्स भरें. उदाहरण के रूप में लिंग को लेकर सवाल इस तरह किया जाता है कि, “हर स्तर पर, महिलाओं, ट्रांसजेन्डर की विशेष ज़रूरतों और अधिकारों के संबंध में कर्मचारियों के संवेदनशील व्यवहार पर चिंह लगाएं.”

रेटिंग ऐसे होती है कि 9 से 10 बहुत अच्छा, 7 से 8 अच्छा, 5 से 6 ठीक-ठाक लेकिन सुधार की ज़रूरत, 4 से कम के अनुसार कमज़ोर.

इसके अलावा तीन कॉलम और बने होते हैं. एक में रेटिंग, दूसरे में रंग और तीसरे में कारण. रेटिंग का मतलब है कि आप कर्मचारियों की सेवा से संबंधित उन्हें दस से चार नंबर तक कोई भी नंबर दे सकते हैं. रंग का मतलब कि हर नंबर के लिए एक रंग है जैसे 10 से 9 के लिए हरी, 8 से 7 के लिए नीला, 6 से 5 के लिए आसमानी रंग और लाल रंग 4 से 1 तक के लिए. तीसरे स्तंभ में आपको नंबर देने का कारण भी बताना होता है कि आपने जो नंबर दिया है इसके पीछे क्या कारण है.

रिपोर्ट कार्ड बनाने वाली शरफ़ुल निसा भरपूर आत्मविश्वास से कहती हैं कि, “मैं झुग्गी नंबर 217/81 हरिनगर आश्रम, नई दिल्ली में रहती हूं, मैंने पहली बार नागरिक रिपोर्ट कार्ड बनाया. मुझे बहुत अच्छा लगा, क्योंकि मैंने दिल से आधिकारियों को नंबर दिया, जिसने अच्छा काम किया उसे अच्छा नंबर और जिसने अच्छा नहीं क्या उसे अच्छा नंबर क्यों दूं?”

पूर्वी दिल्ली के राजीव गांधी कैंप, चित्रा विहार की निवासी ताराकोजोर कहती हैं, “मुझे तो बड़ा मज़ा आया. हमें पहली बार किसी सरकारी अधिकारी के काम को परखने और उनके कार्यों के लिए नंबर देने का मौक़ा मिला था, तो मैंने दिल खोलकर इस अवसर का लाभ उठाया और जिसने अच्छा काम किया उसे अच्छा नंबर भी दिया और जिसने अच्छा नहीं किया था उसे अच्छा करने के लिए सोचने का मौक़ा दिया है. उम्मीद है आगे वह अच्छा करेंगे.”

सड़क किनारे फल और सब्जियों की बिक्री करने वाले मुस्लिम खान कहते हैं कि, “मैं इंदिरा गांधी कैंप, आश्रम, नई दिल्ली में रहता हूं. मैं आपको बताना चाहता हूं कि आज से पंद्रह साल पहले यहां के सरकारी शौचालय का हाल किसी खंडहर से कम नहीं था, लेकिन अब इसी शौचालयों को देखने के बाद लोग सवाल करते हैं कि भाई साहब यहां एक शौचालय हुआ करता था वह कहां है? मैं जवाब देता हूं कि यह जो सामने बिल्डिंग दिख रही है यही तो है वो शौचालय. सामने वाला कहता है कि मैं तो उसे कोई अस्पताल या स्कूल समझ रहा था. हम लोग अब बहुत जागरूक हो चुके हैं, यहां काम करने वाले सफ़ाई कर्मचारियों से हम अपनी निगरानी में काम कराते हैं. उनसे सवाल करते हैं कि फीनाईल क्यों नहीं डाला? पॉउडर किसकी शादी के लिए बचाकर रखा है? इससे सार्वजनिक शौचालय भी निजी शौचालय की तरह चमकता रहता है. यहां तक कि अगर कोई पान खाकर गंदा करता है तो हम लोग एसिड से सफ़ाई कराते हैं. कुल मिलाकर अब न केवल जागरूकता आई है बल्कि अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास भी हुआ है. यही कारण है कि जिस विभाग ने अच्छा काम किया था उसे अच्छा नंबर दिया और जिसने काम चलाया था उसके लिए क़लम चला दिया.”

दिल्ली शहर के ही कालकाजी के करोटिया में रहने वाली सुशीला कहती हैं कि, “मैं जाड़े में अंडे बेचती हूं और अगर कोई त्योहार हो तो इससे संबंधित सामान बेचकर अपना गुज़ारा करती हूं, लेकिन मुझे इस समारोह में जाकर पहली बार किसी अधिकारी और सरकारी कर्मचारी को नंबर देने में बहुत अच्छा लगा.”

इसी मोहल्ले की विमलेश कहती हैं, “दूसरे घरों में साफ़-सफ़ाई का काम करती हूं, हमेशा लोग मेरे काम को अच्छा या बुरा कहते थे. मुझे भी पहली बार मौक़ा मिला, जब मैंने सरकारी अधिकारियों के काम के लिए उन्हें नंबर दिया. यह मेरे जीवन का सबसे अच्छा पल था, जिसने आत्म-सम्मान को जन्म दिया है.”

आशा है इस नागरिक रिपोर्ट कार्ड से जनता और सरकार के बीच रिश्ते बेहतर होंगे. साथ ही एक सवाल है कि अगर यह काम दिल्ली की राज्य सरकार कर सकती है तो अन्य राज्यों और केन्द्र सरकार को इस नुस्खे को आज़माने में क्या कठिनाई हो सकती है.

(लेखक चरखा फीचर्स के डिप्टी एडीटर और प्रोजेक्ट मैनेजर हैं.)