रामराज का गुरुद्वारा जिसने बचाई सैकड़ों मुसलमानों की जान

आस मुहम्मद कैफ़, TwoCircles.net


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रामराज (मेरठ) : साल 2013 के मुज़फ़्फ़रनगर दंगे की आंच आसपास के इलाक़ों में भी फैली. सटे हुए कई ज़िले इसके चपेट में आए थे. लेकिन इसी नफ़रत की आग के बीच कुछ लोगों ने इंसानियत को ज़िन्दा रखा.

मेरठ के रामराज इलाक़े के गुरुद्वारा समिति के अध्यक्ष सरदार जसविंदर सिंह ऐसी ही एक शख़्सियत हैं. इलाक़े में जब तनाव फैला और मुसलमानों पर हमला होने लगा तो उन्होंने अपने गुरूद्वारे के दरवाज़े मुसलमानों के लिए खोल दिए.

सैकड़ों मुसलमानों ने वहां शरण ली. सरदार जसविंदर सिंह ने ऐलान कर दिया —गुरद्वारे में आया हुआ हर इंसान हमारी पनाह में है. कोई इन्हें हाथ लगाने की हिम्मत ना करे, वरना हम भी उससे लडेंगे.

सरदार जसविंदर सिंह ने जान तो बचाई ही और साथ में इंसानियत को भी क़त्ल होने से बचा लिया. बाद में गुरुद्वारा कमेटी के प्रधान जसविंदर सिंह को उनके इस महान काम के लिए बिजनौर में सम्मान भी किया गया और मेरठ ज़िला प्रशासन ने भी सम्मान किया.

चार साल पुरानी बात याद करते हुए सरदार जसविंदर सिंह बताते हैं, 7 सितम्बर को यहां पीठ थी (देहात मे लगना वाला साप्ताहिक बाज़ार). हमारे यहां मुसलमानों की आबादी कम है. अचानक यहां तेज़ हलचल होने लगी. मैं तब उप-प्रधान था. गुरुद्वारा के सामने एक डॉक्टर संदीप रस्तोगी के यहां कुछ लोग चोट पर पट्टी करा रहे थे. इनमें कुछ लोग सड़क पर लाठी डंडे लेकर खड़े हो गए बिजनौर की और एक बस जा रही थी. पहला पत्थर इस बस पर फेंका गया, उसके बाद सवारियों को उतार कर पीटा गया.

लोगों में भगदड़ मच गई. मुसलमानों को नाम पूछकर पीटा जा रहा था. कुछ महिलाओं की बेइज़्ज़ती भी की गई. उन्हें गाली दी गई. पीटा गया. रामराज में बच्चों-महिलाओं, बुजुर्गों और निहत्थे बेगुनाहों को पीटकर बदला ले रहे थे. लोग बुरी तरह डरे हुए थे. औरतों रो रही थी. यह लोग जान बचाने गुरुद्वारा में चले आए. हमने गुरुद्वारे का बड़ा दरवाज़ा सबके लिए खोल दिया और सबको वहां सुरक्षित रखा.

आज सरदार जसविंदर सिंह 65 साल के हो गए हैं. लेकिन चार साल भी ये पुरानी बातें आज भी याद है, जैसे आज ही की बात हो. ज़्यादातर समय अब वो सामाजिक कार्य या फिर गुरूद्वारे की देख-रेख में लगाते हैं.

रामराज एक सिक्ख बाहुल्य क़स्बा है, जो कि मेरठ और मुज़फ़्फ़रनगर की सीमा पर है. यहां के सरदार गुरचरण सिंह पूर्वी लंदन के मेयर रहे हैं.

वो कहते है कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के समय वो मेरठ में पढ़ते थे. जब सिक्खों को ढूंढ-ढूंढ कर मारा जा रहा था. उस समय जान बचाकर मैं 8 दिन तक छिप गया. 2013 में मुझे ऐसा ही लगा. वैसी ही फिलिंग आई. मैं तब उप-प्रधान था अब प्रधान हूँ.

स्थानीय निवासी गुरप्रीत सिंह लाड़ी कहते हैं कि, यह हमने तारीफ़ के लिए नहीं किया था, बल्कि हमें लगा कि आज अगर हमने इनकी मदद नहीं की तो ऊपर जाकर हम क्या मुंह दिखाएंगे. हमने ऐलान कर दिया था कि यह हमारी शरण में हैं और इन पर हमला हम पर हमला माना जाएगा.

सरदार जसविंदर बताते हैं कि, ज़्यादातर मुस्लिम ही यहां शरण लिए हुए थे, मगर कुछ हिन्दू भी थे. यह सभी मुसाफ़िर थे और नेशनल हाइवे पर होने के कारण यह सभी बसों से उतार लिए गए थे. लगभग 300 लोग होंगे.

वो आगे बताते हैं कि, हमने यहां सभी का खाना बनवाया और मुस्लिमों- हिन्दू दोनों ने साथ मिलकर खाया. मुसलमान और हिन्दू दोनों आपस में बात कर रहे थे. सबको सुरक्षित घर पहुंचने की जल्दी थी.

सरदार जसविंदर बताते हैं कि, एक लड़की अकेली थी. उसके साथ 10 साल का एक बच्चा था. हमें याद है, वो बुरी तरह कांप रही थी. हमने उसे अपनी हिफ़ाज़त में ले लिया और हम उसे घर छोड़ने गए. यहां रुके ज़्यादातर लोग बिजनौर के थे.

घटना के समय सरदार जसविंदर का परिवार भी लोगों को बचाने में सामने आ गया. इनके भतीजे हरदीप सिंह सड़क पर खड़े हो गए और जान बचाकर भागते लोगों को अपने घर ले गए. 35 लोग इन्होंने घर पर सुरक्षित इकट्ठा कर लिए.

सिर्फ़ इन लोगों को महफूज़ कर लेना ही काम नहीं था. वहां के सिक्खों ने इन लोगों को उनके घर तक सुरक्षित पहुंचने का भी ज़िम्मा लिया. बिजनौर पुलिस से बात की. ज्यादातर लोग दिल्ली से बिजनौर जा रहे थे. वहां से एस.पी. प्रबल प्रताप सिंह खुद आए. लोगों को सुरक्षा घेरे में उनके घर भिजवाया गया.

गुरप्रीत सिंह उन लोगों में से एक हैं, जिन्हें मुसाफ़िरों को उनके घर तक महफूज़ पहुंचाने के लिए गुरुद्वारा कमेटी ने तय किया था.

आज के हालात के बारे में बात करने पर सरदार जसविंदर कहते हैं, मुझे अब ऐसा लगता है कि मुसलमान ज्यादा डर गया है. हम भी नफ़रत की सियासत के विरोधी हैं, मगर हम इनसे नहीं डरते. जबकि हमारी संख्या तो मुसलमानों से भी कम है. शायद हमारा आत्मविश्वास मज़बूत है.

जसविंदर सिंह के मुताबिक़ यह देश के लिए सही नहीं है. अल्पसंख्यक हम भी हैं, मगर धाकड़ तरीक़े से रहते हैं. सेवा हमारा मूल भाव है. अभी जोशीमठ में ईद के नमाज़ के लिए गुरुद्वारे के दरवाज़े खोल दिए गए. स्वर्ण मंदिर में एक विजिटर को नमाज़ पढ़ने की अनुमति दी गई. ख़ालसा एड की रोहिंग्या मुसलमानों की मदद आप देख ही रहे हैं. तब भी हम मज़लूम के साथ थे, अब भी हम हर मज़लूम के साथ हैं.

स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता शमीम अहमद कहते हैं कि गुरूद्वारे कमेटी ने खुद को इंसानियत की नज़र में ऊंचा कर दिया. इंसानियत इनकी क़र्ज़दार रहेगी.

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