अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
नई दिल्ली : भारत सरकार के शहरी विकास मंत्रालय द्वारा वक़्फ़ की करोड़ों की ज़मीन ग़ैर-क़ानूनी तौर से हथियाने और फिर बेचने का मामला सामने आया है. इस मामले में ज़मीन खरीदने वाला कोई और नहीं, बल्कि भारत सरकार का गृह मंत्रालय है.
बता दें कि दिल्ली शहर के दिल में बसे निज़ामुद्दीन इलाक़े के लोधी रोड स्थित सीजीओ कॉम्पलेक्स के क़रीब लगभग 2.23 एकड़ दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड की करोड़ों की ज़मीन शहरी विकास मंत्रालय ने केन्द्रीय रिज़र्व पुलिस बल यानी सीआरपीएफ़ के ख़ातिर सरकारी आवास निर्माण के लिए भारत सरकार के गृह मंत्रालय को मात्र 49 लाख रूपये में बेच दी है.
शहरी विकास मंत्रालय के ज़रिए 28 फ़रवरी, 2017 को लिखे एक पत्र के मुताबिक़ गृह मंत्रालय के सचिव को सीजीओ कॉम्पलेक्स, लोधी रोड में 2.23 एकड़ ज़मीन सीआरपीएफ़ कार्यालय और आवास निर्माण के लिए आवंटित की गई. यहां स्पष्ट रहे कि इसके लिए कैबिनेट सचिवालय ने सिफ़ारिश की थी. और ये ज़मीन 22 मई, 2017 को सीआरपीएफ़ को सौंप दी गई.
बता दें कि जब सीआरपीएफ़ ने जुलाई 2017 में इस ज़मीन पर अस्थायी निर्माण कार्य शुरू किया तो दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड ने निज़ामुद्दीन एसएचओ के माध्यम से शिकायत दर्ज कराई. अपनी शिकायत में कहा कि ये ज़मीन (ख़ेसरा —360 और 361) 31.12.1970 के दिल्ली प्रशासन के आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचित की गई है, लेकिन आज कुछ सरकारी अधिकारी इस वक़्फ़ संपत्ति को बिना किसी अनुमति और बोर्ड की जानकारी के अतिक्रमण कर रहे हैं.
दरअसल, ये पूरा मामला पिछले दिनों चर्चा में रहे लाल मस्जिद व क़ब्रिस्तान की ज़मीन को लेकर है. हालांकि इस ज़मीन का मामला पिछले 25 सालों से अदालत में है और आज यानी 19 अप्रैल, 2018 को इस मामले की सुनवाई दिल्ली हाई कोर्ट में जस्टिस एल. कामेश्वर राव के समक्ष होनी है.
आज इस मामले में कोर्ट के समक्ष पेश होने वाले हबीब-उर-रहमान के वकील डॉ. फ़र्रूख़ खान TwoCircles.net के साथ ख़ास बातचीत में बताते हैं कि, जिस ज़मीन को लेकर भारत सरकार के अधिकारी आपस में ‘नुराकुश्ती’ का खेल कर रहे हैं, उन लोगों के पास इस ज़मीन का मालिकाना हक़ ही नहीं है. शहरी विकास मंत्रालय को कोई अधिकार ही नहीं कि वो वक़्फ़ की कोई ज़मीन बेचे. ये एक क़ब्रिस्तान की ज़मीन है. यहां एक मस्जिद है, बाज़ार है, वहां कैसे सीआरपीएफ़ का आवासीय परिसर बना सकते हैं.
वो आगे कहते हैं कि, इस सरकार में जिसकी लाठी, उसकी भैंस वाली बात चल रही है. ये सरासर गुंडागर्दी है. ये लोग कोर्ट के फ़ैसले का भी इंतज़ार नहीं कर रहे हैं. जबकि हमारा कहना है कि अगर कोर्ट आपको इजाज़त दे दे तो फिर आप जो चाहे बना लें. लेकिन ये लोग मानने को तैयार नहीं है. कोर्ट में मामला पेंडिग हैं, लेकिन अपने ताक़त के दम पर क़ब्रों को ख़त्म कर दिया. बिल्डिंग बनाने के लिए मैटेरियल भी गिरा लिया. अफ़सोस कि वक़्फ़ बोर्ड भी इस पर ख़ामोश नज़र आ रहा है.
ग़ौरतलब रहे कि इससे पहले हबीब-उर रहमान की याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट के जज विभु बखरू ने अपने आदेश में कहा था कि “सभी तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए, मैं मौजूदा लाल मस्जिद और क़ब्रों के संबंध में पक्षों को यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश देता हूं और यह आदेश किसी भी अन्य आवासीय आवास को कवर नहीं करेगा.”
इस मामले को क़रीब से देखने वाले एडवोकेट फ़िरोज़ ग़ाज़ी का कहना है कि, “मोदी राज में क़ानून के रखवाले अब अदालतों के आदेशों को भी मानने से इंकार करने लगे हैं. खुद देखें किस तरह से लाल मस्जिद और उसके पास मौजूद क़ब्रिस्तान को पुलिस और सीआरपीएफ़ क़ब्ज़ा करके क़ब्रों को तोड़ रही है और जब उनको कोर्ट का स्टे ऑर्डर दिखाया व पढ़कर सुनाया गया तो भी उन्होंने अपनी ग़ैर-क़ानूनी क़ब्ज़ा-कार्रवाई को नहीं रोका. जब हमने कहा कि हम माननीय हाई कोर्ट में इस बात को रखने जा रहे हैं तब उन्होंने कहा —कर लो जो करना है…
फ़िरोज़ ग़ाज़ी ‘साउथ एशियन माईनॉरिटी लॉयर्स एसोसिएशन’ के सचिव हैं और फिलहाल ‘दीवान एडवोकेट्स’ नामक एक लॉ फर्म चलाते हैं.
स्पष्ट रहे कि आरटीआई से हासिल दस्तावेज़ बताते हैं कि दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड के 1970 की सरकारी अधिसूचना में 488 मुस्लिम क़ब्रिस्तान दर्ज हैं, लेकिन वक़्फ़ बोर्ड के अधिकारियों की माने तो फिलहाल पूरे दिल्ली में 70-80 क़ब्रिस्तान ही ज़िन्दा हैं.