आस मुहम्मद कैफ़, TwoCircles.net
बिजनौर : 55 साल की कौसर जहां हमें बता रही हैं कि पिछले साल वो बिजनौर के एक डॉक्टर के पास अपने इलाज के लिए गई थी. वहां काफ़ी भीड़-भाड़ थी. अचानक से वहां हलचल होना बंद हो गई. 30 साल के आसपास का एक नौजवान वर्दी में आया और माहौल एकदम शांत व अलर्ट हो गया. वो नौजवान बिजनौर का पुलिस कप्तान था. मेरा बेटा भी कप्तानी की पढ़ाई कर रहा था. लेकिन तीन बार में भी उसका नम्बर नहीं आया था. मेरा दिल रोने लगा. आंखे भर आईं. मैंने परवरदिग़ार से कहा अल्लाह मेरे बेटे को भी नवाज़ दे. अब अल्लाह ने उसे नवाज़ दिया. अब हम हम बहुत खुश हैं.
कौसर जहां यूपीएससी के मुस्लिम प्रतिभागियो में अव्वल रहे बिजनौर के साद मियां खान की मां हैं. साद के पिता रईस अहमद निर्वाचन अधिकारी थे और अब रिटायर हो चुके हैं.
63 साल के रईस अहमद TwoCircles.net के साथ बातचीत में कहते हैं, ज़िलाधिकारी महोदय को हम रिपोर्ट करते रहे हैं. वो हमारे अफ़सर होते हैं और उनके दिशानिर्देश पर हमें काम करना होता है. सहारनपुर में मेरी नौकरी के दौरान मुझे एक बेहद यंग डीएम के साथ काम करने का मौक़ा मिला. तब साद 12 साल का था और उसके भविष्य के लिए कोई प्लान तैयार नहीं हुआ था. हमें लगता था कि यह सिर्फ़ पढ़ता रहे. क्रिकेट में इसकी बहुत रुचि थी. इनकी मां ने कभी इन पर अपनी मर्ज़ी नहीं थोपी, जो इनका दिल किया वो करने दिया गया. हम बच्चों को फ्रीडम देना चाहते थे, मगर उस दिन मुझे लगा काश मेरा बेटा भी डीएम बन जाए.
फिर वो आगे बताते हैं कि, साद मियां ने लगातार उम्मीद पैदा की. 12वीं में उन्होंने बिजनौर का अपना स्कूल टॉप किया. कानपुर से पढ़ाई कर इंजीनियर बन गए और 2015 में पहली बार यूपीएससी का एग्ज़ाम दिया.
साद की बड़ी बहन अर्शी सिराज हमें बताती हैं, उस साल उनका नंबर नहीं आया. अगले साल वो इंटरव्यू तक पहुंचा और फिर अगले साल फिर इंटरव्यू तक, किनारे पर आकर वापस जा रहे थे. हर बार रिज़ल्ट उदासी पैदा कर रहा था. कुछ रिश्तेदार मज़ाक़ बनाने लगे थे. हिम्मत जवाब देने लगी थी.
वो आगे कहती हैं कि, साद ने जब पहली बार यूपीएससी का एग्ज़ाम दिया था तो यह उनकी चाहत थी, मगर अब ज़रूरत बन गई थी. क्योंकि इससे इज़्ज़त जुड़ गई थी. लोग आलोचना करने लगे थे. यही वजह थी कि जिस दिन रिज़ल्ट आया, उस दिन पूरे दिन अम्मी मुसल्ले पर बैठकर दुआ करती रहीं. अब हमारे घर तो ईद से पहले ईद हो गई.
27 साल के साद मियां हमें बताते हैं, मुझे कभी नहीं लगा कि मैं यह नहीं कर सकता. हर बार की नाकामयाबी मुझे आगे बढ़ने के लिए और भी ताक़त से प्रेरित करती थी. मुझे मेरे परिवार का बेहतरीन स्पोर्ट मिला. उन्होंने मुझपर पूरा भरोसा किया. मेरी बहन सदफ़ और अर्शी हमेशा कहती थीं कि तुम यह कर दोगे. मेरा भाई मेरे हिस्से का काम करता रहा ताकि मुझे फ्रीहैण्ड दिया जा सके. दो बार इंटरव्यू में नंबर ना आने के बाद भी मुझे कोई निराशा नहीं हुई बल्कि और आसान हो गया, क्योंकि मैं नई बात सीख रहा था.
साद की कहानी में सबसे ख़ास बात यह है कि साद ने इसके लिए कहीं कोई कोचिंग नहीं की. घर से ही पढ़ाई की.
साद कहते हैं, मैंने ऑनलाइन टेस्ट सीरीज़ ज्वाइन किया था. और साथ ही पहले के अनुभव से सीख रहा था. मैंने अपने तरीक़े ईजाद किए.
उनके बहनोई सिराज मिर्ज़ा हमें बताते हैं कि, इनके ‘तरीक़े’ बहुत महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इससे कोचिंग कर पाने की हिम्मत ना जुटाने वाले नए प्रतिभागियों को बहुत मदद मिलेगी.
हालांकि साद कहते हैं, कोचिंग का अपना महत्व है. मगर घर पर रहकर भी अच्छी पढ़ाई की जा सकती है. अब ऑनलाइन बेहतर तैयारी होती है.
साद की ऑल इंडिया 25वी रैंक आई है. इसका मतलब यह है वो आईएएस हो गए हैं, मगर साद की पहली पसंद आईपीएस है. और इसकी वजह वो हमें बता रहे हैं.
वो कहते हैं, आईएएस होना बहुत गौरवशाली बात है. मगर मुझे आईपीएस के तौर पर काम करना है. मुझे लगता कि पुलिस का परसेप्शन फोर्स का ना होकर सर्विस का होना चाहिए. पुलिस के पास प्राथमिक न्याय होता है, पीड़ित को फौरी इंसाफ़ दे सकते हैं. मैं परेशान लोगों के चेहरों पर मुस्क़ान देखना चाहता हूं.
दरअसल साद को यह प्रेरणा फ़िल्म ‘सरफ़रोश’ से मिली है. सरफ़रोश आमिर खान की एक मशहूर फिल्म है. इसमें आमिर खान ने एक आईपीएस राठौर की भूमिका निभाई है. साद ने यह फ़िल्म दर्जनों बार देखी है.
साद कहते हैं, आईपीएस बनना मेरा सपना था. फ़िल्म का सबसे लोकप्रिय डायलॉग भी उन पर फिट हो रहा है. इसमें आमिर खान कहते हैं —“आईएएस बन गया था, मैं मगर आईपीएस चुना. मैंने कांटो का बिस्तर चुना.”
साद की इस कामयाबी के बाद उनके घर बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ है. उन्हें सीनियर आईपीएस और सीआरपीएफ़ के एडीजीपी जावेद अख्तर समेत कई अफ़सरों ने फोन कर बधाई दी है.
साद मियां खान बिजनौर के चाहशीरी मौहल्ले में रहते हैं. चार भाई बहनों में तीसरे नम्बर पर हैं. इनकी बड़ी बहन सदफ़ थाईलैंड में रहती हैं. अचानक से उनके परिवार में रिश्ते के लिए सिफ़ारिश होने लगी है, हालांकि साद इसे मुस्कुरा कर टाल जाते हैं.
युवाओं को उनकी सलाह है कि वो कभी भी हिम्मत न हारे और खुद को परफेक्ट न समझे. कामयाबी का कोई शॉर्टकट नहीं होता. लगातार मेहनत करें और सकारात्मक रहें.
बिजनौर की चेयरमैन रुख़साना अंसारी इसे पूरे बिजनौर का गौरव बताती हैं. वो कहती हैं, साद मियां ने पूरे बिजनौर का सर ऊंचा कर दिया है. उम्मीद है कि इनसे दूसरे युवा भी सीख हासिल करेंगे.