आस मोहाम्द कैफ | TwoCircles.net
मेरठ:
पिछले सप्ताह मेरठ में भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में दलितों पर विशेषतौर पर विचार विमर्श किया गया.दलितों को लुभाने की इस कवायद के साथ भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने हर बूथ पर दस दलित कार्यकर्ता भाजपा खेमे के होने पर जोर दिया.गैर जाटव दलितों में भी पार्टी के प्रति पनपते आक्रोश के चलते बैठक में दलितों को अपनी और आकर्षित करने का मुद्दा छाया रहा. इसके लिए यहां डॉ भीमराव अंबेडकर का बड़े फ़ोटो लगाए गए और उनपर केंद्रित भाषण भी हुए.
भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति की इस बैठक में गृह मंत्री राजनाथ सिंह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी अपनी शिरकत की.सभी बड़े नेताओं की चिंता दलितों को अपनी और जोड़ने को लेकर थी.जिस समय मेरठ के जीटीरोड स्थित मंडप में यह बैठक चल थी उसी समय इसी मार्ग पर 8 किमी आगे उलदेपुर नाम वाले गांव में दलित भारी आक्रोश में थे और यहां भारी संख्या में पुलिस तैनात की गई थी.एक दिन पहले कावंड़ यात्रा के दौरान हुए एक विवाद के बाद ठाकुरों ने एक 19 साल के दलित युवक रोहित की पीट-पीटकर हत्या कर दी थी जिसके बाद इस गांव में भारी जातीय तनाव हो गया था.
पिछले एक साल से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के महत्वपूर्ण जनपद सहारनपुर, मुजफ्फरनगर शामली और मेरठ में सक्रिय भीम आर्मी के कार्यकर्ताओं ने इसके बाद उलदेपुर गांव में जुटना शुरू कर दिया जिससे प्रशासन के हाथ पांव फूल गए और गांव को छावनी बना दिया गया. प्रशासन को डर था कि 60 फीसद दलित आबादी वाले उलदेपुर गांव से प्रतिक्रिया हो सकती है जिससे भाजपा की बैठक का उद्देश्य मिट जाएगा इसलिए इस दिन उलदेपुर में एक प्रकार से अघोषित कर्फ़्यू रहा.
दलितों के उत्पीड़न की पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यह पहली घटना नही थी.पिछले माह ही मेरठ में एक दलित युवक राजू(27)से परीक्षितगढ़ नाम वाली एक जगह पर जबरन मारपीट डॉ भीमराव अंबेडकर को गालियाँ दिलाई गई थी, इसका वीडियो वायरल होने के तुरंत बाद आईजी मेरठ रामकुमार को स्पष्टीकरण देना पड़ा था.इससे पहले मुजफ्फरनगर,शामली सहारनपुर में दलितों के उत्पीड़न की दर्जनों घटनाएं हो चुकी थी
कांग्रेस के एसएसएसटी चेयरमैन नितिन राउत के अनुसार भाजपा सरकार मूलतः दलित विरोधी है उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में दलितों पर अत्याचार की घटनाओं में बहुत अधिक तेजी आई है।मेरठ को दूसरा सहारनपुर बनाने की साज़िश हो रही है।भारत बंद को लेकर यहां सैकड़ो दलित युवक अभी भी जेल में बंद है।दलित नेताओं पर ग़लत तरीके से रासुका लगाई हुई है। पुलिस के महत्वपूर्ण पदों पर एक खास जाति के लोग है जो दलितों से नफरत करते है और उनका दमन करना चाहते है”.
#भाजपा सरकार में दलितों के उत्पीड़न की कुछ प्रमुख घटनाएं।
1 -5 मई 2017 शब्बीरपुर (सहारनपुर)
सहारनपुर जनपद के गांव शब्बीरपुर में हजारों राजपूतों ने हथियारों के साथ दलितों की बस्ती पर हमला बोल दिया,50 से ज्यादा घर जला दिए गए।एक दर्जन से ज्यादा दलित घायल हो गए।दोनों पक्षो में विवाद की शुरुवात 14 अप्रैल को अम्बेडकर जयंती निकालने को लेकर हुई थी।
2-9 मई 2017 नया गांव रामनगर (सहारनपुर)
हमलावर राजपूतों के विरुद्ध पुलिसिया कार्रवाई से असंतुष्ट होकर दलित युवाओं के संगठन भीम आर्मी ने जबरदस्त प्रदर्शन किया,इसमें हिंसा और आगजनी की कई गंभीर घटनाएं हुई और भीम आर्मी का बड़े पैमाने पर क्रेक डाउन किया गया।भीम आर्मी के सैकड़ों नोजवानों के विरुद्ध मुक़दमे दर्ज हुए.भीम आर्मी सुप्रीमो अब तक जेल है।
3-7 सितंबर 2017 भूपखेड़ी( मुजफ्फरनगर )
ठाकुर बहुल गांव भूपखेड़ी में एक दलित युवती के साथ छेड़छाड़ की एक घटना को लेकर ठाकुरों ने दलितों की बस्ती पर हमला कर दिया जिसमें अंबेडकर प्रतिमा भी क्षतिग्रस्त हो गई और कुल 17 दलित घायल हो गए.
4-16 जनवरी 2018 पुरकाजी (मुजफ्फरनगर)
एक दलित युवक की बुरी तरह पिटाई के बाद यहां गुर्जरों औऱ दलितो में भारी तनाव हो गया.दलित युवक पर आरोप था कि उसने घरों से हिन्दू देवी देवताओं के चित्र उतारे थे.दलित युवक की पिटाई का वीडियो वायरल हो गया और अलग अलग समुदायो में पंचायतों का दौर चल निकला।इसके कुछ दिन बाद यहां जाटों और दलितों में फिर से विवाद हो गया।
5-2 अप्रैल 2018 मेरठ,मुजफ्फरनगर,हापुड़,आगरा
दलितों ने एससीएसटी कानून में बदलाव की आहट पर भारत बंद का आह्वान किया उत्तर प्रदेश के खासतौर पर इन जिलों में भारी हिंसा हुई।इस बंद के बाद से सैकड़ों दलित नोजवानों को जेल भेजा गया और पुलिस ने हजारों के विरुद्ध मुकदमा दायर कर दिया।कई बड़े दलित नेता जेल भेज दिए गए।कुछ पर रासुका लगी,दर्जनों अभी भी जेल में बंद है।
6- 8मई 2018 बागपत में दलितों का पलायन
एक दबंग जाति की महिला से संबद्ध के आरोप के एक दलित युवक की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई।
इसके बाद दलितों ने गांव से पलायन कर दिया।आसपास के कुछ लोगो का यह भी कहना था कि दलितों को गांव छोड़ने का फरमान सुनाया गया।
इस दिन मानवधिकार आयोग ने योगी सरकार को इस घटना पर स्पष्टिकरण के लिए चिट्ठी लिखी।
मेरठ की इस बैठक में दलितों को अपनी और खींचने की भाजपा की इस कवायद को दलित उत्पीड़न की इन घटनाओं को देखते हुए हवाहवाई माना जा रहा है.
दलित मामलों के जानकार मानते है कि अब दलितों में 2014 के लोकसभा चुनाव और 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की तरह बंटवारा नही होगा और वो भाजपा के मूल वोटर समूह ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्य के विरोध में वोट करेगा.इसकी वजह पिछले एक साल में दलितों के अंदर पनप रहा आक्रोश है.इस आक्रोश की झलक दलित फूलपुर,गोरखपुर और कैराना चुनाव में दिखा चुके है.यहां भाजपा की हर तिकड़म को दलितों एकजुट होकर निष्फल कर दिया.सहारनपुर के सतबीर जाटव के मुताबिक यह परिवर्तन भीम आर्मी के उद्भव की साथ आया यहां चंद्रशेखर रावण पर रासुका और दलित युवाओं के भारी उत्पीड़न के बाद युवाओं ने अपने समाज मे परिवर्तन के लिए मजबूर कर दिया.भाजपा दलित युवाओ को बहकाने में कामयाब हो गई थी मगर आज युवा ही भाजपा का सबसे ज्यादा विरोध कर रहे हैं.
युवाओ को यह बात बहुत बुरी लग रही है कि चंद्रशेखर रावण को अब तक रासुका लगाकर जेल में रखा गया है जबकि उसने शब्बीरपुर में हुए अत्याचार के विरुद्ध एक जायज़ मांग उठाई थी. मेरठ में भी पूर्व विद्यायक योगेश वर्मा को रासुका में बंद किये जाने पर इसी तरह की नाराजगी है.उनके भाई राजन वर्मा के मुताबिक मेरठ नगर निगम चुनाव में भाभी सुनीता वर्मा की जीत के बाद एक दलित का उभार भाजपाइयों को गले नही उतरा और सत्ता के दुरुपयोग से हर प्रकार से उत्पीड़न पर उतर गए.भाजपा का दलित प्रेम झूठ है।उसका मूल वोटर दलितों से नफरत रखता है और भाजपा अपने मूल को कभी नाराज नही कर सकती.पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दलितों में इस उबाल को हर एक राजनीतिक दल समझ रहा है.हाल ही में कांग्रेस के प्रतिनिधिमंडल ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पीड़ित दलितों से मुलाकात की.सांसद असदुद्दीन औवेसी इससे पहले भीम आर्मी के सुप्रीमो चन्द्रशेखर रावण से मिलने की ख्वाईश जता चुके हैं.विधायक जिग्नेश मेवानी यहां गुप्त तरीके से कई बार कैम्प कर चुके हैं.
राहुल गांधी और मायावती भी यहां दौरा कर चुकी है और हाल ही में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी चन्द्रशेखर रावण से मिलने की इच्छा जताई जिसे स्वीकार नही किया गया हालांकि केजरीवाल फिर भी सहारनपुर आ रहे हैं और वो चंद्रशेखर के परिवार से मिलेंगे.
यह सब घटनाक्रम यह साबित करने के लिए काफी है कि 2019 के चुनाव की धुरी दलित साबित होने जा रहे हैं.मायावती की अहमियत बहुत बढ़ गई है शुरुवात में भीम आर्मी और मायावती में इख्तिलाफ की बात कही जा रही थी मगर अब भीम आर्मी समेत तमाम दलित संगठनों ने मायावती का विरोध न करने का सन्देश दिया है.भीम आर्मी के सहारनपुर के जिलाध्यक्ष कमल वालिया कहते हैं”दलितों ने अपने ऊपर हो रहे अत्याचार को अच्छी तरह समझ लिया है अब एकजुट होकर 2019 में जवाब देने का समय है”.
दलितों को अपनी और आकृष्ट करने के प्रयास में जुटी भाजपा को यह भी डर है कहीं ज्यादा तुष्टिकरण से उसका मूल वोटर ना नाराज हो जाए ऐसी परिस्तिथि में सवर्ण कांग्रेस का रुख कर सकता है बिना दलित के सहयोग के भाजपा का दोबारा सत्ता में आना मुश्किल है इसलिए दिल्ली के नजदीक पश्चिमी यूपी एक बार फिर प्रयोगशाला बन गया है और इस बार निशाने पर दलित है.इस घनघोर समस्या से निजात दिलाने के लिए भाजपा की संकटमोचक आरएसएस भी मैदान में उतर गई है.
आरएसएस अपने सामाजिक समरसता अभियान पर ध्यान केंद्रित कर रही है.
इसे आरएसएस के डिजिटल प्रचार माध्यम से समझा जा सकता है जिनपर ज्योतिबा फुले, डॉ आंबेडकर और गौतम बुद्ध की तस्वीरें लगाई गई है.इसके साथ एक नारा दिया गया है यह नारा है “समरसता मंत्र के नाद से हम भर देंगे सारा त्रिभुवन.’ रिटायर्ड प्रोफेसर कीर्तिभूषण शर्मा कहते है”आरएसएस यह बात समझती है कि हिन्दू अगर जाति में बंट गया तो 2019 में उनकी सरकार नही आ पाएगी इसलिए वो समरसता यानि बराबरी जैसा अभियान लेकर आई है मगर सवाल यह है क्या वाकई दलितों को सवर्णो के बराबर सम्मान मिल पाएगा,मोदी-योगी की जोड़ वाली दोनों सरकारों में तो अभी तक दलित सिर्फ शिकायत करते ही दिखाई दे रहे हैं.
हाल ही में नागपुर में संघ प्रमुख मोहन भागवत दलितो को अपना भाई बता चुके है जबकि संघ कार्यवाह सुरेश भैय्या जी जोशी पंचकूला में कह गए कि हमे जातिवाद की संकीर्णता से ऊपर उठकर देशहित में सोचना चाहिए.इस साल संघ ने वाराणसी, आगरा और मेरठ में तीन बड़े कार्यक्रम किये इनमे रविदास, कबीरदास और गौतम बुद्ध के कटआउट लगाए गए.मेरठ के ‘रास्ट्रोदय’ सम्मेलन में संत वाल्मीकि के विरुद्ध आपत्तिजनक होर्डिंग पर भारी विवाद हुआ था और मेरठ के वाल्मीकि समाज सड़को पर उतर आया था जिसके बाद होर्डिंग उतार लिए गए थे.
2014 में बहुजन समाज पार्टी लोकसभा में अपना खाता नही खोल पाई थी जबकि पश्चिम उत्तर प्रदेश की लगभग 17 लोकसभा सीटे दलित सीधे प्रभावित करते है.पूर्वार्ध में बसपा सुप्रीमो मायावती बिजनोर, कैराना और सहारनपुर से चुनाव लड़ चुकी है.
इस बार समाजवादी पार्टी उनके साथ मिलकर लड़ेगी इससे मुस्लिम और दलित वोटो का बिखराव रुक जाएगा..इसी एक अनुमान ने भाजपा खेमे को चिंतित कर दिया है क्योंकि इसका जीवंत उदाहरण गोरखपुर,फूलपुर और कैराना से मिल चुका है.गोरखपुर में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ,फूलपुर में उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य अपनी सीट हार गए जबकि कैराना और नूरपुर में सहानभूति कार्ड भी भाजपा के लिए कारगर नही रहा.
बस इसलिए भाजपा ने दलितों को अपने पाले में खींचना शुरू कर दिया है.
पूर्व सांसद हरेंद्र मलिक के अनुसार दलितों के साथ उत्पीड़न की बात सत्य है मगर भाजपा सरकार से किसान सबसे ज्यादा त्रस्त है इसलिए ऊंच नीच की कोई नीति कामयाब नही हो पाएगी.
इस सबके बीच एक महत्वपूर्ण बात यह है कि भाजपा के अधिकतर दलित सांसद खुद भाजपा से नाराज है नगीना से सांसद डॉ यशवंत सिंह दलितो के उत्पीड़न की शिकायत चिट्ठी लिखकर कर चुके है उन्होंने सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कठघरे में खड़ा किया था. अशोक दोहरे, उदित राज,छोटेलाल खिरवार और सावित्री बाई फुले भी नाराजगी जता चुके हैं.
गाजियाबाद के दलित चिंतक धनप्रकाश जाटव के मुताबिक दलितों में बहन जी लेकर बहुत अधिक उत्साह है दलितो के युवा अपने पूर्वजों के साथ हुए अत्याचार को भूलने लगे थे जिन्हें भाजपा सरकार ने फिर से याद दिला दिया है.