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टांडा कावरियां विवाद: आधी रात को दरवाजे तोड़कर बुजुर्गों तक को उठा ले गई पुलिस

TCN News 

टांडा में कांवड़ यात्रा के दौरान डीजे की आवाज को लेकर हुए तनाव के बाद अब तक 14 गिरफ्तारियां हुई जहाँ आधी रात को पुलिस लोगों के घरों के दरवाज़े तोड़कर बुजुर्गों तक को उठा ले गई।

ये मामला तब सामने आया जब लखनऊ के सामाजिक व राजनीतिक संगठन रिहाई मंच ने टांडा का दौरा किया। रिहाई मंच ने 13 अगस्त के विवाद के बाद टांडा के हयातगंज का दौरा करते हुए गिरफ्तार लोगों के परिजनों से मुलाक़ात भी की।

चैराहे पर स्थित आजाद टेलर की दुकान में जहां ताला बंद था तो वहीं इस विवाद के दौरान फैयाज की लूटी गई पान की दुकान पर कोई नहीं मिला। फैयाज की दुकान की पीछे ही उनके भतीजे के किराने की दुकान हैं।

अकबर अली बताते हैं कि उस रात उनकी दुकान के पास ही वाकया जब हो रहा था तो उनके भाई अबरार वहां से तुरंत चले गए थे। बाद में जब मालूम चला कि दुकानें लूटी जा रही हैं तो वे दुकान देखने के लिए आए तो पुलिस उन्हें उठा कर ले गई। वे कहते हैं कि इस मोड़ पर उनकी किराना की दुकान है, उनके चाचा फैयाज की पान की दुकान लूटने की खबर के बाद अबरार को लगा कि कहीं उनकी दुकान भी तो नहीं लूट ली गई, तभी वो आए।

ताजिमुन निशा बताती हैं कि उस रात डीजे की तेज आवाज से वे लोग परेशान थे, उन्हें नहीं मालूम था कि देर रात उनका दरवाजा तोड़ने पुलिस आ जाएगी।

ताजिमुन बताती हैं कि रात दो बजे के करीब पुलिस वाले दरवाजा पीटने लगे और कुंडे से मारकर तोड़ने लगे। वे शीबू का नाम ले रहे थे। डरते हुए दरवाजा खोला तो पुलिस-पीएसी वाले घर में घुस गए। हम लोग कह रहे थे कि घर में महिलाएं है पर उन्होंने एक न सुनी। मेरे पति मुन्नू मास्टर और बेटे अरशद को पूछताछ के नाम पर उठा ले गई। छापेमारी के दौरान महिला पुलिस नहीं थी।

घर के दो-दो दरवाज़े तोड़कर उस दिन पुलिस शकील और जमील को उठा ले गई। यह पूछने पर कि कैसे उठाया? ‘हम दरवाज़ा बनवा लेंगे आप लोग जाइए’ ये कहते हुए 75 वर्षीय तसरीफुन निसा अपने घर से जाने को कहती हैं।

प्रतिनिधिमंडल जब कहता है कि वो पुलिस नहीं है तो उन्हें थोड़ा राहत मिलती है। उन्हें लगता है कि कहीं फिर कुछ न हो जाए। यही डर मोहल्ले के लोगों को भी है।

शाहिदा बताती हैं कि उनके भाई शकील और जमील को उस दिन पुलिस घर का दरवाज़ा तोड़कर उठा ले गई. घर का पहले दरवाज़े की मरम्मत करवा ली है पर अन्दर का दरवाज़ा अब भी उसी हालत में पड़ा है।

पूर्व सभासद डा0 उमालिया बताती हैं कि उस रात दो बजे के करीब पुलिस दरवाजा पीटने लगी और मेरे शौहर जमाल कामिल का नाम लेकर चिल्ला रही थी। हमारे घर में चार परिवार हैं और बहुत सी महिलाएं हैं। हमने कहा कि वो नहीं हैं। जमाल कामिल मौजूदा सभासद भी हैं। पुलिस घर में घुसकर दोनों देवरों जमाल अख्तर और जमाल अजमल को उठा ले गई। वे बताती हैं कि चार तल्ले के मकान में घुसकर तलाषी की और उनके देवर जमाल अजमल को बंडी-लुंगी में ही उठा ले गई। कहा कि बस पूछताछ के बाद छोड़ देंगे पर उनको जेल भेज दिया। मैंने वारंट के बारे में पूछा तो वे कुछ नहीं बताए।

एक मकान की सकरी सी गली में पिछले हिस्से में अपनी छोटी सी बेटी के साथ बैठी अफसाना बताती है कि उस रात भाभी और अब्बू ही घर पर थे। वसीम का नाम लेकर पुलिस दरवाजा पीटने लगी ऐसा लगा कि दरवाजा तोड़ न दें तो दरवाजा खोल दिया गया। पुलिस मेरे बूढ़े अब्बू को उठाकर ले गई। उनको तरस भी नहीं आया कि इतना बुजुर्ग आदमी क्या कोई बवाल करेगा। घर के हालात का जिक्र करते हुए कहती हैं कि अब बहुत मुश्किल हो गई है। लगातार डर बना रहता है और उस रात का मंजर आखों के सामने छाया रहता है।

मोहल्ले के 74 वर्षीय बुजुर्ग मोहम्मद इसराइल कहते हैं कि कावरियों का रास्ता पश्चिम से पूरब की तरफ था पर उन लोगों ने उत्तर और दक्षिण की दिशा में डीजे लगाकर कम्पटीशन शुरु कर दिया जो विवाद की वजह बना। वे पूछते हैं कि आखिर पुलिस कहां थी। पुलिस का काम बेगुनाहों को उठाने का है या फिर तनाव न पैदा होने देने का है। मैं यह बात एसपी-डीएम सभी के सामने कहने को तैयार हूं।

प्रतिनिधिमंडल को स्थानीय लोगों ने बताया कि टांडा पिछले कई सालों से लगातार सांप्रदायिक तत्वों के निशाने पर बना हुआ है। ख़ासतौर पर 2013 में राम बाबू हत्याकांड के बाद लगातार हिंदू युवा वाहिनी जैसे संगठनों की गतिविधियों का केन्द्र बना हुआ है।

यहां के लोगों का कहना है कि, रामबाबू की पत्नी मौजूदा भाजपा विधायक संजू देवी ऐसी घटनाओं में सक्रिय रहती हैं। इस मामले में उठाए गए दानिश इरफ़ान को पहले भी भाजपा विधायक संजू देवी के पति की हत्या के बाद हुई एक हत्या के मामले में उठाकर जेल भेजा गया था। यह पूरा मामूला राजनीतिक है, वरना जो कांवड़ यात्रा यहां से निकली उस पर कोई विवाद नहीं हुआ तो आख़िर में उसकी समाप्ति पर हुआ विवाद साफ़ तौर पर साज़िश की ओर इशारा करता है।

दरअसल डीजे का कंपटीशन पूर्वनियोजित सांप्रदायिक साजिश का हिस्सा थी और यही तनाव की मुख्य वजह बना। इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच कराई जाए जिससे भविष्य में सांप्रदायिक तत्व इस तरह की घटनाएं अंजाम न दे पाएं।

गौरतलब है कि इस मामले में धर्मेंन्द्र त्रिपाठी द्वारा कांवड़ियां पक्ष से एक एफ़आईआर में 21 लोगों को नामज़द और 50-60 अज्ञात के विरुद्ध एफ़आईआर दर्ज कराई गई है। वहीं दूसरी तरफ़ डीजे की तेज़ आवाज़ या उसके बाद हुई लूटपाट के संदर्भ में कोई एफ़आईआर नहीं दर्ज किया गया है।

रिहाई मंच का सवाल है कि जब पुलिस अपने बयानों में यह साफ़ कर चुकी है कि एक लड़की की तबीयत ख़राब थी, जहां पर तेज़ आवाज़ के चलते यह तनाव हुआ है और डीआईजी का भी यही बयान है, तो फिर पुलिस ने खुद इसकी एफ़आईआर क्यों नहीं दर्ज की. जब दो पक्षों में तनाव हुआ है तो एक पर ही एफ़आईआर क्यों?

रिहाई मंच का कहना है कि, अगर दूसरा पक्ष एफ़आईआर नहीं करता है तो यह ज़िम्मेदारी पुलिस की बनती है, क्योंकि उसे शांतिपूर्वक कांवड़ यात्रा निकलवाने का निर्देश है। पिछले दिनों कावड़ियों द्वाराशांति व्यवस्था बाधित करने पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की है। अगर ऐसे में कोई नया आदेश है कि कावड़ियों पर एफ़आईआर नहीं होगा तो पुलिस को उसे सार्वजनिक करना चाहिए।