आस मोहम्मद कैफ, TwoCircles.net
रेनू मेघवंशी राजस्थान में दलित उत्पीड़न के खिलाफ लड़ाइयां लड़ने के लिए जानी जाती है,यह वही है जिन्होंने डांगबास में दलितों के विरुद्ध अत्याचार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाया,यह दिल दहलाने वाला हत्याकांड था जिसमे दलितों को तड़पा-तड़पा मारा गया, रेनू मेघवाल ने हत्या के खिलाफ आवाज़ उठाई और दलित दूल्हे को घोड़ी पर न चढ़ने देने की सामन्ती मानसिकता को करारा जवाब दिया, 45 साल की रेणु मेघवंशी राजस्थान महिला काँग्रेस की प्रदेश सचिव है और राजस्थान में महिलाओं और दलितों की मजबूत आवाज़ है,
#हर कोई आज भी जानना चाहता है कि डांगाबास में क्या हुआ था और उस लड़ाई में आपने पीड़ितों के किस तरह से संघर्ष किया था !
रेणु मेघवंशी –
आज़ाद भारत के इतिहास की वो बेहद शर्मनाक घटना थी, अत्याचार की ऐसी कहानी मैंने कहीं नही देखी,अज़मेर से 50 किमी दूर डांगबास एक जगह है,14 मई 2015 को सुबह लगभग 300-350 लोग लाठी,डंडे कुल्हाड़ी लेकर यहां आ पहुंचे यह लोग ट्रैक्टर,महेंद्र पिकअप गाड़ी और 30-40 मोटरसाइकिल पर सवार थे,यह सभी जाट समुदाय से थे,दलित समुदाय का एक परिवार अपने खेत पर काम कर रहा था,जाट समाज के यह लोग इस ज़मीन को छीनना चाहते थे, इन्होंने आते ही सब लोगो पर हमला कर दिया,65 साल के एक बूढ़े कमजोर आदमी की आंखो में जलती हुई लकड़ी घुसा दी,महिलाओं के गुप्तांगों को चोट पहुंचाई गई, कुछ लोगो को ट्रैक्टर के नीचे रौंद दिया गया ,5 लोगो की मौत हो गई और 11 लोगो के हाथ-पैर तोड़ दिए,हमलावरों ने साफ-साफ संदेश दिया कि उनसे जो उनके सामने नही झुकेगा उसका वो यही हश्र करेंगे,हमलावरों को कुछ लोगो ने गांव में आते देखा था और पुलिस को यह सब बताया ढाई घण्टे तक यह अत्याचार होता रहा मगर पुलिस उन्हें बचाने नही पहुंची, बाद में हमने यह लड़ाई लड़ी,वसुधंरा सरकार हमलावरों को बचाना चाहती थी, मामला यूनाइटेड नेशन तक गया,तब जाकर इसमें सीबीआई जांच हुई,हालांकि पुलिस ने सीबीआई जांच से पहले बहुत से सबूत मिटाने की साज़िश की जिससे न्याय मिलने में बाधा उत्पन हुई.
#डांगबास के सरपंच कहते थे कि यह जातीय अत्याचार नही था बल्कि जमीन को लेकर दो पक्षो का झगड़ा था!
रेनू मेघवंशी-
डांगबास में जांच में यह बात सामने आई थी हमलावरों के रिश्तेदार और उनकी जाति के पास के गांव के लोग पहले ही इकट्ठा हो रहे थे पुलिस को भी इसकी जानकारी थी ,कई धमकियां दी गई थी,हमले के बाद बड़े पैमाने पर जाट समुदायों ने व्हाट्सप पर इस घटना को गौरव से जोड़ते हुए मैसेज किये थे और इसके तुलना मुजफ्फरनगर दंगे से करते हुए कहा था कि जो भी हमसे टकराएगा उसका यही हश्र होगा, जाहिर है यह हमला दलितों को दबाने के लिए हुए जिसमे दलित विरोधी बड़े लोगो का हाथ था,यहां तक कि पुलिस पर दबाव था कि वो सूचना पर घटना पर नही पहुंची और बाद में उसने सबूत मिटाने का काम किया,अब यह सब बिना सरकार की मर्ज़ी के नही हो रहा था, वैसे भी मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अपनी ससुराल के लोगो की झुकाव रख रही थी.यह हमला बिना योजना के संभव ही नही था.हमले के बाद जाटो ने जश्न मनाया और इसे सभी दलितों के लिए सबक बताया गया.
#क्या डांगबास के पीड़ितों को न्याय मिला!
रेनू मेघवंशी –
न्याय की बात ही मत कीजिये क्योंकि अत्याचार ही बंद नही हुए, इसमें 70 लोगो को नामजद कराया गया था, इनमे से 40 लोगो सीबीआई ने चिन्हित किया और 27 लोग गिरफ्तार हो चुके है,13 की गिरफ्तारी अभी भी शेष है,मगर इसके बाद भी नागौर जिले में अत्याचार बढ़ते रहे ,यहां 60 फीसद जाट है और इस जमीन को जाट लेंड भी कहते है,आज भी यहां दलित दूल्हा घोड़ी पर नही चढ़ सकता ,दलित विधायक भी जाटो के सामने नीचे जमीन बैठता है.डेल्टा मेघवाल की हत्या करने वाले शान से रह रहे है.
#डेल्टा मेघवाल की हत्या और डांगबास दलित संहार किस प्रकार से एक ही विचारधारा की घटनाएं है और इसमें सरकार की क्या भूमिका रही!
रेनू मेघवंशी-
आप दोनों घटनाओं के मनोविज्ञान को समझने की कोशिश कीजिए,डांगबास में दंबग जाति के हमलवारों ने दलित से जमीन छीनी क्योंकि उन्हें लगता था कि दलित सिर्फ मजदूर हो सकता है जमीन का मालिक नही,इससे बहुत से दलितों का आत्मविश्वास कुचला गया,डेल्टा मेघवाल वाले मामले में यह समझा जा सकता है कि वो एक होनहार लड़की थी ,आगे बढ़ना चाहती थी और अंग्रेजी में भाषण देती थी,मेधावी थी,वो प्रगतिशीलता का प्रतीक बन रही है,उसकी महत्वकांक्ष कुछ ऊंची जाति के लोगो की आंख में खटकने लगी जिसके परिणामस्वरूप उसकी हत्या कर दी गई और आत्महत्या का रूप दे दिया गया.डांगबास कि तरह यहां भी वसुंधरा राजे सरकार आरोपी शुक्ला को बचाने की कोशिश की.
# वसुंधरा सरकार में 32 दलित विधायक है जिनमे से अकेले मेघवाल जाति के 16 विधायक है ,फिर भी दलितों के साथ इतना अत्याचार हो रहा था और यह सब सहते रहे!
रेनू मेघवंशी-
राजस्थान दलितों के लिए नरक बन चुका है,डांगबास में विधायक खुद मेघवाल है उसने दलितों के फोन नही उठाए,वो जब जाटो में जाते थे तो उनकी जूती उठा लेते थे और नीचे जमीन पर बैठ जाते थे,वो इसी अहसान में दबे बैठे है कि बीजीपी ने उन्हें टिकट दिया और जाटो ने वोट देकर विधायक बना दिया,अब ऐसे तो 64 विधायक भी समाज के लिए अच्छे नही है।इनके मुँह पर टेप लगी है.इनमे से कम ही विधायको ने डांगबास के दलितों का साथ भी दिया.
#2 अप्रैल वाले भारत बंद में आपकी अग्रणी भूमिका थी इस दिन हजारों दलित सड़को पर उतर आए यह गुस्सा क्या इस तरह के अत्याचार से पनपा था!
रेनू मेघवंशी –
अब दलितों की स्थिति एकदम बदल चुकी है वो प्रतिरोध करने लगा है,अब मेरे जेठ आईएएस अफसर है ,पति प्रोफेसर है और मैं खुद पीएचडी कर रही हूँ ,इसके बाद मैं 2 अप्रैल वाले प्रदर्शन में क़दम से क़दम मिलाकर चल रही थी क्योंकि मैं जानती हूँ मेरे समाज को क्या चाहिए,दलितों में सामन्तवाद के विरुद्ध बेहद नाराजगी है वो अब गुलामी करने के लिए तैयार नही है,राजस्थान दलित उत्पीड़न के मामले में बेहद खराब स्थिति रखता है,खासकर महिलाओं की स्तिथि बहुत ज्यादा खराब है.