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पटना : साल के आखिरी महीने का 19वां दिन इतिहास में दो बड़ी घटनाओं के साथ दर्ज है. भारत की आजादी के दीवाने राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां के शहादत दिवस पर बुधवार को कार्यकर्म का आयोजना किया गया जिसमें वक्ताओं ने कहा कि कुर्बानियों से मिली आजादी को बचाये रखने की जिम्मेदारी हर नागरिक की है.
बिहार की राजधानी पटना में बिहार एक्शन ग्रुप फ़ॉर हार्मोनी एंड इंटेग्रिटी की ओर से इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बिहार प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष जनाब मदन मोहन झा रहें.
जनाब मदन मोहन झा ने अपनी बात रखते हुए कहा के आज के इस नाजुक दौर में जब देश का ढांचा धर्म के नाम पर छिन्न भिन्न हो रहा है तब अशफाक उल्ला खान और राम प्रसाद बिस्मिल जैसे दो व्यक्ति जो समाज के दो छोर से आते थे परंतु राष्ट्र के हित में बिल्कुल एक जिस्म और एक जान की तरह काम किया ऐसे लोगों को देश के युवाओं के सामने आदर्श के तौर पर पेश करने की जरूरत है.
इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में मौजूद हसन इमाम साहब ने कहा कि बहुत ही छोटी उम्र में इन दोनों ने एक बड़े आदर्श की स्थापना कर दी. उन्होंने कहा कि अशफ़ाक़ुल्ला खान और रामप्रसाद बिस्मिल की ज़िंदगी का सपना था शोषणमुक्त और साझी संस्कृति के भारत का निर्माण. इनदोनो की कुर्बानी का असली मक़सद तभी पूरा होगा जब हम इस देश की लड़ाइयों को ख़त्म कर दे.
कार्यक्रम की अध्यक्षता बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रतिनिधि मोहम्मद काशिफ़ यूनुस ने कहा कि शहीद रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान ने जिस तरह की कुर्बानी दी उसी तरह की कुर्बानी की जरूरत आज देश के प्रजातंत्र को बचाने के लिए है. आने वाले दिनों में सामाजिक और राजनीतिक जीवन में युवाओं को ऐसी कुर्बानी देनी पड़ेगी अगर वह इस देश का और अपना सुनहरा भविष्य बनाना चाहते हैं.
इस अवसर पर डॉ ख़ालिद आज़मी की पुस्तक “पसीने की ख़ुशबू” का भी विमोचन किया गया.
बताते चलें कि 19 दिसंबर, 1927 के दिन राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां को काकोरी कांड का आरोपी बनाकर अलग-अलग जेल में फांसी दी गयी थी. उस समय काकोरी कांड का आरोपी बनाकर तमाम युवाओं को पकड़कर जेल में डाल दिया गया. इनमें से काकोरी कांड के आरोपी बनाकर राम प्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर, अशफाक उल्ला खां को फैजाबाद और रोशन लाल को नैनी इलाहाबाद में 19 दिसम्बर 1927 में फांसी की सजा दी गयी थी. देश को गुलामी की जंजीर से मुक्त कराने के लिए बेताब अमर सपूतों ने हंसते-हंसते अपना बलिदान दे दिया.