अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
मोतिहारी : बिहार राज्य के मोतिहारी शहर की एक लाइब्रेरी जो बारात घर में तब्दील हो चुका था, फिर से अपने वजूद को हासिल कर चुका है. ये ‘चमत्कार’ मोतिहारी के कुछ क्रांतिकारी सोच के नौजवानों ने की.
इस लाइब्रेरी के इतिहास की बात करें तो 1935 में मौलाना इशरत हरगानवी ने ‘बज़्म-ए-सुख़्न’ नाम की एक अदबी तंज़ीम की बुनियाद डाली. इसी तंज़ीम की कोशिशों की वजह से अमला पट्टी मुहल्ला में डॉक्टर अली इमाम के मकान के एक कमरा में ये लाइब्रेरी वजूद में आई. फिर यहां से ये लाइब्रेरी मुहल्ला पठान पट्टी में सैय्यद अहमद हसन के मकान के एक हॉल में शिफ्ट हुई. डॉ. सैय्यद अहमद हसन के भागलपूर चले जाने की वजह से ये लाइब्रेरी रसूल खान के रिहाईशगाह (अब बशीर मंज़िल) में लाना पड़ा, लेकिन कुछ ही दिनों में ये लाइब्रेरी जामा मस्जिद के सदर दरवाज़ा के ऊपर बने हॉल में शिफ़्त कर दिया गया. कुछ दिनों तक यहां मोतिहारी के लोग इस लाइब्रेरी से फ़ायदा हासिल करते रहें.
लेकिन फिर (शायद 1937 में) जब कांग्रेसी नेता डॉ. सैय्यद महमूद (मौलाना मज़हरूल हक़ के दामाद) मोतिहारी तशरीफ़ लाएं तो उनकी मदद से एक खाली सरकारी प्लॉट लीज़ पर हासिल किया गया. यहां एक रिडिंग रूप और एक स्टेज का निर्माण किया गया और लाइब्रेरी पुरी तरह से यहां शिफ़्ट कर दी गई. तब से ये लाइब्रेरी यहीं बरक़रार है.
इस दरम्यान ये लाइब्रेरी कई बार मुश्किल दौर से गुज़रा, आपसी रंजिश का शिकार हुआ, बावजूद इसके हर बार शहर के नौजवानों व पढ़े-लिखे तबक़ा ने इसका वक़ार फिर से वापस दिलाने का काम किया.
बताते चलें कि इस ऐतिहासिक लाइब्रेरी में एक से बढ़कर एक जानकारियों का ख़ज़ाना मौजूद हुआ करता था, मगर वक़्त के थपेड़ों ने इसकी शक्ल बदल दी. किताबों की दिनों-दिन घटती क़ीमत के दौर में इसे न सिर्फ़ भूला दिया गया, बल्कि इसकी अहमियत को नक़ली रोशनियों के तराजू में तौल दिया गया. यहां हर रात बारातों की रौनक नज़र आने लगी. इस सूरत-ए-हाल से दुखी होकर मोतिहारी के कुछ ज़िन्दादिल नौजवानों ने इसका गौरव लौटाने का बीड़ा उठाया और ये लाइब्रेरी आज फिर से चमक उठी है.
इस लाइब्रेरी का फिर से नया जन्म 11 फ़रवरी को हुआ है. बिहार के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री खुर्शीद अहमद उर्फ़ फ़िरोज़ अहमद ने इस लाईब्रेरी के रिडिंग रूम का पुर्नउदघाटन किया. अब ये उर्दू लाइब्रेरी सोमवार से शनिवार शाम 6 से 8 बजे तक खोली जा रही है. सभी समाचार पत्र, मासिक पत्रिकाए, प्रतियोगी परीक्षाओं से संबंधित सभी पत्रिकाएं, बच्चों के लिए उर्दू, हिंदी इंगलिश में सभी पत्रिकाएं लाइब्रेरी द्वारा उपलब्ध कराई जा रही हैं. शांत वातावरण में अध्ययन के लिए पूरे मोतिहारी शहर में अब यह एक बेहतरीन जगह है.
इसे इस हालत में पहुंचाने में शहर में कई ज़िन्दादिल नौजवान शामिल हैं, इनमें ख़ास तौर पर सैफ़ुल्लाह खान, शाहिद जमील, साजिद हुसैन, शहज़ाद खान, राशिद फ़रहान, इरफ़ान शिकोह, रूमान फ़रीदी, ख़ालिद नदीम और खुर्शीद इमाम का नाम लिया जा सकता है.
ये नौजवान अपने आप में जीती जागती उम्मीद की फ़सल हैं. ये उम्मीद न सिर्फ़ एक लाइब्रेरी को फिर से ज़िन्दा करने की है, बल्कि आने वाली पीढ़ी को इल्म और दूरअंदाज़ी की रोशनी देने की है. एक लाइब्रेरी को फिर से ज़िन्दा करने का मतलब अंधेरे के ख़िलाफ़ एक मुकम्मल जंग की शुरूआत करने जैसा है, और ये शुरूआत मोतिहारी के इन नौजवानों ने कर दी है.