आस मुहम्मद कैफ़, TwoCircles.net
मुज़फ़्फ़रनगर : समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के मुज़फ़्फ़रनगर दंगे में किए जा रहे समझौते के प्रयासों में दंगा पीड़ितों की तरफ़ से सकारात्मक संदेश नहीं मिल रहा है. बल्कि मुलायम सिंह को इसे लेकर कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है.
पिछले बुधवार को मुलायम सिंह यादव ने दिल्ली में जाट और मुस्लिम समुदाय के प्रमुख लोगों की एक पंचायत की थी और मुक़दमों में समझौते और पीड़ितों को वापस गांव में लौटने की बात कही गई थी.
इसमें मध्यस्थता के लिए एक समिति का गठन किया गया था, जिसका रविवार को मुज़फ़्फ़रनगर में दोनों समुदायों की बैठक में विस्तार हुआ. इस बैठक में पूर्व सांसद क़ादिर राणा और अमीर आलम ने भी शिरकत की.
लेकिन अब मुलायम सिंह का यह अरमान परवान चढ़ता दिखाई नहीं दे रहा है. बहुत से दंगा पीड़ितों ने इस पर अपनी असहमति जताई है.
TwoCircles.net ने दंगा पीड़ितों के बीच जाकर उनकी मन की बात जानने की कोशिश की तो मुलायम सिंह से असहमति की आवाज़ें सुनाई पड़ी.
दंगे के बाद बिजनोर-मेरठ मार्ग में सिकरेड़ा गांव में हुई हिंसा के बाद दर्जनों लोगों ने अपना घर छोड़ दिया था और पास के गांव कैथोड़ा में शरण ली थी. यहां हिंसा में एक युवक नदीम की हत्या हो गई थी. वहां के नज़ाकत (48) कहते हैं, “अब क्यों वापस चले जाएं. वहां सब कुछ ख़त्म हो गया है. मुक़दमा चल रहा है. अदालत जो चाहे करे वरना इंसाफ़ खुदा के यहां होगा. मुलायम सिंह यादव तो यहां आए भी नहीं. वो क्या जाने हमारे अंदर का दर्द.”
मुलायम सिंह मुज़फ़्फ़रनगर दंगों के दौरान कई विवादित बयान भी दे चुके हैं. यही नहीं, कैराना के मलकपुर कैम्प में बुलडोज़र चलवाने की बात उन्होंने कही थी. और बाद में ऐसा ही हुआ था.
कैथोड़ा के ही राशिदा (51) कहती हैं, “हम बिल्कुल मुलायम सिंह की नहीं मानते. वो हमारे क्या लगते हैं. उन्होंने हमारे लिए क्या किया? यहां हममें से किसी को मुआवज़ा तक नहीं मिला. हमारा घर छिन गया. हम बिल्कुल उस गांव में नही जाएंगे. दंगे के बाद हम कभी नही वहां नहीं गए. मुक़दमा की लड़ाई अदालत में है, जो भी होना होगा, हो जाएगा. हम जाटों के साथ नही बैठेंगे.”
समीना (48) वापस जाने और जाटों से मेल-मिलाप करने से इंकार करती हैं. वो कहती हैं, “हम जिस हाल में हैं, ठीक हैं. और हम कभी वापस नहीं जाएंगे. अब हम उन लोगों के साथ नहीं रह सकते.”
युवाओं में अब तक गहरी नाराज़गी है. मोहम्मद साजिद (26) कहते हैं कि, “हमें इंसाफ़ की उम्मीद नहीं है. हमारा भाई वहां मारा गया. सरकार का नज़रिया दिख रहा है. मुलायम सिंह हमारा दर्द नहीं समझ रहे. हमें हमारे हाल पर छोड़ दिया जाए.”
मुज़फ़्फ़रनगर के मोहम्मद आसिफ़ कहते हैं कि, “यह पूरे समाज से जुड़ी बात है, जो लोग दंगे में प्रभावित हुए उनसे अलग वे सभी लोग जो उनसे जुड़े रहे हैं, उनकी राय भी महत्व रखती है. सरकार अगर चाहती है तो वो सारे मुक़दमे वापस कर दे.”
वो आगे कहते हैं कि, “अब असल मक़सद तो दिलों के मिलान का है. अब यह मुक़दमे वापस करवाने की क़वायद न हो, वही ठीक है.”
कुटबा के नदीम (17) कहते हैं, “घर वाले तो हमारे मर गए, फ़ैसला मुलायम सिंह कैसे कर लेंगे? दंगे में लगभग 50 हज़ार लोग वापस लौटकर अपने गांव नहीं गए.”
गौहर सिद्दीक़ी कहते हैं, “जिन लोगों ने उस मुश्किल वक़्त में दंगा पीड़ितों की मदद की, लोग उनकी बात सुनेंगे ना कि ज़रुरत पड़ने पर ग़ायब होने वाले नेताओं की.”
मुज़फ्फ़रनगर में मुलायम सिंह यादव की अपील का कोई असर दिखाई नहीं दे रहा है. राशिद अली कहते हैं, “दिल साफ़ होकर खुद बात हो नेताओं ने तो सबकुछ बिगाड़ा ही था.”