आस मुहम्मद कैफ़, TwoCircles.net
अलीगढ़/कासगंज : अकरम को बेटी हुई है. बहुत प्यारी है. अलीगढ़ मेडिकल कॉलेज में उनके बहनोई मंसूर रात में उसे लेकर पहुंचे. वो हमें बताते हैं कि अकरम अपनी बेटी को गोद लेकर बहुत खुश है. उन्होंने कहा —मंसूर भाई! कितनी प्यारी है. इसके नसीब से मेरी जान बच गई.
अकरम वही हैं, जिन्हें बंदायू से लौटते हुए कासगंज के क़रीब बलवाइयों ने घेर लिया और मुस्लिम पहचान देखकर उन पर हमला कर दिया था. उनकी पत्नी अनम प्रेग्नेंसी की हालत में अलीगढ़ में एडमिट थीं.
अकरम की अलीगढ़ में ससुराल है, वो पीलीभीत के हैं. यहां उनकी गाड़ी पर हुए पथराव के बाद कांच टूटकर उनकी आंख में घुस गया था. उनको बचाने में एसएसपी अलीगढ़ ने काफ़ी तत्परता दिखाई. वक़्त पर उपचार के बाद अकरम की जान बच गई है, मगर उनकी एक आंख की रौशनी चली गई.
अकरम अब बेइंतहा खुश हैं और अपनी इस ज़िन्दगी को अपनी बेटी का नसीब मानते हैं. अकरम कहते हैं —‘एक आंख ही सही मैं अपनी बच्ची को देख तो पा रहा है.’
लेकिन कासगंज में अभी लोग खुश नहीं हैं. यहां लोग दुखी ही हैं. आम जनमानस बुरी तरह प्रभावित हुआ है.
नदरई गेट के राहुल जिनके तीन छोटे बच्चे 3 दिन से दूध के लिए तरस रहे हैं. यहां सब्ज़ी की सबसे ज्यादा दुकाने हैं. बवाल के बाद बेचने वाले ऐसे ही छोड़कर भाग गए थे. इनको जानवर खा रहे हैं, मगर इंसान रूखी रोटी ही पा रहा है.
बड्डूनागर की वकीला का शौहर पुलिस से डरकर भाग गया है. यहां सिर्फ़ बुज़ुर्ग और बच्चे हैं. ज़्यादातर जवान या तो पुलिस ने दबोच लिए हैं या फिर वो छिप गए हैं. रोज़मर्रा की खाने-पीने की ज़रूरतों से वकीला भी तरस रही है.
अमन खान बता रहे हैं, कोई मदद के लिए नहीं आ रहा है. यहां का मुसलमान जिस पार्टी को वोट करता है, उनका एक नेता भी उनकी सुध लेने नहीं आया. मुसलमान यहां अलग-थलग से पड़ गए हैं. वो बुरी तरह खौफ़ज़दा हैं.
कासगंज तड़प रहा है. ख़ामोशी इसकी गवाह है. कल दिन भर पुलिस दौड़ती रही तो कोई अप्रिय घटना नहीं हुई. लेकिन रात में एक दुकान और एक मकान में आग लगा दी गई. बहुत सारे लोग स्टेशन पर हैं और कुछ वापस चले गए हैं.
कल दिन में कुछ यात्रियों पर पुलिस ने लाठी भी भांज दी. राघवेंद्र के मुताबिक़, ‘हम बवाल करने नहीं आएं, मगर फिर भी हमें पुलिस भगा रही है और बलवाई खुलेआम घूम रहे हैं.’
पुलिस पर एकतरफ़ा कार्रवाई करने का इल्ज़ाम भी लग रहा है. रिहान अहमद कहते हैं कि, एकतरफ़ा गिरफ्तारी हुई है और बलवाईयों को खुलेआम छूट मिली हुई है. हालात अब भी नाज़ुक हैं.