आस मोहम्मद कैफ, TwoCircles.net
निजी स्कूल में महँगी फीस अब शिक्षा को आम जनता से दूर करती जा रही हैं. निजी स्कूल भी अपनी फीस उगाहने के लिए मासूम बच्चो पर ज्यादती करने से नहीं चूकते. हाल ही में एक निजी स्कूल में बच्चो को बंधक तक बना लेने की बात सामने आई हैं.
दुर्भाग्यपूर्ण तऱीके से तमाम निजी स्कूल इसी नीति पर काम कर रहे हैं और बच्चों को फीस के नाम पर प्रताड़ित किया जाता है.इनमे तमाम बड़े नाम वाले स्कूल भी है. यह प्रताड़ना अलग-अलग तरह की होती है.अब तक आप निजी स्कूलों में महंगी फ़ीस,यूनिफॉर्म,किताबों में कमीशनखोरी और दूसरे तरीकों से पैसे बनाने की बात सुनते आए है मगर फ़ीस न देने इन स्कूलों में अमानवीय तऱीके से बच्चों का उत्पीड़न किया जा रहा है.इनमे बच्चों को कक्षा से बाहर निकाल देना,साथियों के सामने उन्हें बेइज्जत करना, स्कूल बैग देकर स्कूल के बीच मे ही वापस भेज देना, क्लास में हाथ ऊपर खड़े कराकर सज़ा देना, असेम्बली में “फ़ीस न लाने वाले बच्चे अलग खड़े हो जाओ” जैसे फरमान के बाद बच्चों को अपमानित करना,स्कूल बस से नीचे उतार देना और छुट्टी के बाद स्कूल में रोक लेना जैसे बुरे तरीके अपनाए जा रहे हैं.यह सब दबाव बनाकर स्कूल फ़ीस निकालने की नीतियां है.
लखनऊ की समीना बानो(33) अमेरिका में एक मैनेजमेंट कम्पनी में काम करती थी.समाज मे कुछ बेहतर करने की उनकी चाहत ने उन्हें उनके अपने शहर लखनऊ में वापस ला दिया.समीना ने गरीब बच्चो को अच्छे स्कूलों में पढ़ाने की अपनी ख्वाहिश परवान चढ़ाने की कोशिश को अमली बनाया और 4 साल में 17 हजार से ज्यादा बच्चे वो अब तक लखनऊ के आसपास में बिना किसी फीस के दाखिला करा दिया. इसके लिए समीना बानो को 2009 में बने शिक्षा के अधिकार कानून से शक्ति मिली और गरीब बच्चो को दाखिला देने से बड़े नाम और ऊंची पहुंच वाले स्कूल रोक नही सके.समीना बानो कहती है”2009 में बने शिक्षा के अधिकार कानून के मुताबिक प्राइवेट स्कूल को 25% दाखिला गरीब बच्चों को मुफ्त देना अनिवार्य है स्कूल को यह देना ही होगा अन्यथा उसके खिलाफ कार्रवाई तय है.समीना कहती है शुरुवात में वो इसके लिए सुप्रीम कोर्ट तक गई इसके बाद उन्हें कामयाबी मिली.
दरअसल निजी स्कूलों में मनमानी को लेकर अब तरह तरह की आवाज़ें उठ रही है इनमें समीना बानो जैसे लोग नजीर बन जाते है.निजी स्कूलों में फीस को बच्चो के शोषण की गहरी चर्चा है.एक महीने पहले दिल्ली के एक स्कूल में हुई एक शर्मनाक घटना ने इसे और अधिक गहरी कर दिया है.आपको याद होगा हमदर्द समूह के इस स्कूल में नोनिहालो को स्कूल फ़ीस न आने पर एक बेसमेंट में उनकी पढ़ाई रुकवाकर बैठा दिया था.
बाद में इस मामले ने तूल पकड़ लिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस मामले पर जांच बैठा दी दूसरी राजनीतिक दलों ने भी इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी.इस एक घटना के प्रकाश में आने के बाद पड़ताल में दूसरे निजी स्कूलों की पड़ताल करने पर बेहद चौकाने वाली जानकारी सामने आई है,कमोबेश इसी तरह तमाम निजी स्कूल बच्चों का मानसिक शोषण कर रहे हैं. कथित ऊंचे स्टैंडर्ड के स्कूलों में दबाव बनाकर फ़ीस लेने की दूसरी नीति अपनाई है जैसे दिल्ली के निवासी यूसुफ अंसारी हमे गाजियाबाद के नामी स्कूल प्रेजीडियम पब्लिक स्कूल की पिछले साल की एक घटना बताते है”पिछले साल इस स्कूल ने 40 बच्चों की टीसी काटकर उन्हें घर भेज दिया.स्कूल का तर्क था कि ऐसा फ़ीस समय पर जमा न होने की वजह से किया गया.मेरे बच्चे भी यहीं पढ़ते थे.सेशन के बीच मे ऐसा इसलिए किया गया ताकि दूसरों पेरेंट्स में डर पैदा हो और स्कूल का बिजनेस फले-फुले,मगर इसके बाद लोग गाजियाबाद डीएम से मनुहार लगाने पहुंच गए और स्कूल मजबूर हो गया.”
राज्य सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त निजी स्कूलों की स्थिति तो और भी खराब है. इनमे मध्यमवर्गी बच्चे पढ़ते है और फ़ीस समय पर न आने पर प्रबंधन बच्चों के साथ बुरा बर्ताव करते है.मुजफ्फरनगर के ऐसे ही एक स्कूल में 11वी में पढ़ रहे रेयान अली कहते है, “एक दिन क्लास में बड़े सर (प्रबंधक) आये और कहा जिनकी फ़ीस जमा नही है वो सब खड़े हो जाओ.मैं भी खड़ा हो गया सबके सामने डांटना शुरू कर दिया उनकी भाषा बेहद खराब थी”.उन्होंने कहा “तुम्हारे बाप का स्कूल है ये,धर्मशाला समझ रखा है”. रयान बताते है अब इतनी बेइज्जती के बाद वहां कैसे पढ़ते और दूसरे बच्चों से कैसे आंख मिलाते,मैंने स्कूल छोड़ दिया.
सवाल यह भी है कि आखिर क्या कारण है कि अभिभावक निजी स्कूलों की फ़ीस नही दे पा रहे हैं ?
इमरान अहमद(43) के अनुसार फीस बहुत ज्यादा है और दूसरे खर्च भी स्कूल बताता रहता है अब बताए दिल्ली की जिस राबिया स्कूल में बच्चों को कथित तौर पर बंधक बनाने की बात कही जा रही है उसमे केजी की फीस 3 हजार रुपए महीने है.अब एक आदमी 12 हजार रुपये महीना कमाता है और उसके 3 बच्चे है तो वो परिवार कैसे चलाएगा! राबिया गर्ल्स स्कूल की हेड मिस्ट्रेस फराह खान के मुताबिक चूंकि स्कूल के सारे खर्चे फीस पर ही निर्भर करते है और अभिभावकों में फ़ीस देने की ललक कम है इसलिए कभी-कभी ऐसा करना पड़ता है जिससे उनके परिजन जाग जाएं.
खास बात यह है तमाम नामी गिरामी स्कूल परिजनों को ‘जगाने’के ऐसे काम करते रहते है.मेरठ के ट्रांसलम पब्लिक स्कूल बिना पूरी फ़ीस लिए किसी बच्चे को परीक्षा में नही बैठना देता.यहां का प्रबंधन एक महीने की फ़ीस जमा न होने की स्थिति में परिजनों को नोटिस भेजता है उसके बाद पेनल्टी लगाता है. तीन महीने तक अगर फ़ीस जमा नहीं हुई तो स्कूल से निकाल देता है. यहां एक बच्चे के परिजन शंशाक शर्मा हमें बताते है कि पूरे मेरठ का यही हाल है स्कूल अब दुकान है मर्जी है समान खरीदो और वरना मत खरीदो,नैतिकता और धर्म से इनका कोई वास्ता नही है.
खास बात यह है कि स्कूल चलाने की मान्यता देते वक्त सरकार बेहद कड़े नियम बनाती है जैसे यूपी में कोई निजी मान्यता प्राप्त स्कूल 60 रुपये प्रतिमाह से अधिक नही ले सकता. मगर यूपी बोर्ड से मान्यता लेकर कुछ स्कूल सीबीएसई जैसे आवरण बना लेते है हजारो रुपए फीस के वसूलते है.इसी तरह कुछ स्कूल ईसाई मिशनरी द्वारा संचालित किए जाने का भृम पैदा करते है.सीधे तौर पर यह धोखाधड़ी का मामला है.
मुजफ्फरनगर में शिक्षाअधिकारी रहे कौस्तुभ कुमार सिंह ने अपनी बेटी का दाखिला सरकारी स्कूल में करवाकर वाहवाही लूटी थी वो कहते है “जब अभिभावक यह समझ रहे है कि निजी स्कूल उनके इमोशन का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं तो वो सरकारी स्कूलों में अपने बच्चो को पढ़ाये.यहाँ तो कुछ भी खर्च नहीं हो रहा जबकि उन स्कूलों से ज्यादा काबिल टीचर भी यहीं है !
संजय कुमार(34) इसका जवाब देते है वो कहते है”सरकारी स्कूलों की हालत बेहद खराब है यहां बच्चे स्कूलों में झाड़ू लगाते है .टीचर्स की पढ़ाने में कोई रुचि नहीं है.लोग तंग आकर अपने बच्चों को निजी स्कूल में भेजते है. कुछ जगहों पर फ़ीस के लिए प्रताड़ित करने को लेकर स्कूल मैनेजमेंट के विरुद्ध मुकदमा भी दर्ज हुआ है और जांच तो लगभग हर स्कूल के खिलाफ बैठ जाती है मगर बदलाव तब भी नही आता!
शिक्षा अधिकारी अनूप कुमार बताते है शिक्षा सभी का अधिकार है और संविधान में 86वे संशोधन के तहत शिक्षा सरकारी स्कूलों में सभी को मुफ्त शिक्षा मिलती है इसके अलावा आरटीई कानून 2009 के मुताबिक सभी निजी स्कूल अपने यहां 25 फीसद गरीबो के बच्चो को मुफ्त शिक्षा देंगे.ऐसा न करने पर उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।