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जब जाट मुसलमान और दलित हुए एक तो फिर कैसे खिलता कमल का फूल!

आस मोहम्मद कैफ, TwoCircles.net

कैराना लोक सभा उपचुनाव में सब कुछ था–मुस्लिम प्रत्याशी, पांच लाख मुसलमान, प्रत्याशी किसी दल का, सिंबल दूसरे दल का, जिन्ना विवाद का उठान, दंगा प्रभावित क्षेत्र, समुदायों में दूरी, हिन्दुओ के पलायन का मुद्दा, मौजूदा सांसद की मृत्य और उनकी पुत्री को सहानुभूति–यूँ समझिये माहौल पूरी तरह भाजपा के पक्ष में.

लेकिन इस चुनाव में फिर भी राष्ट्रीय लोक दल की जीत तीन चीजों को साबित करती हैं. पहली जाट-मुज़फ्फरनगर दंगे के बाद मुसलमान कम ही सही लेकिन करीब आये, दूसरी रालोद के जयंत चौधरी का राजनितिक कौशल और दलितों का साइलेंट वोटिंग.

जाट और मुसलमान 

साल २०१३ में मुज़फ्फरनगर दंगे के बाद जाट और मुसलमान जो कभी एक साथ रहते थे ज़बरदस्त ध्रुवीकरण का शिकार हुए. दोनों में दूरी इतनी बड़ी हो गयी की पश्चिम में पहले २०१४ लोक सभा फिर २०१७ विधान सभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने स्वीप कर दिया. एक असर ये भी हुआ रालोद राजनितिक रूप से नेपथ्य में पहुच गयी.

इस चुनाव में रालोद के नेता चौधरी अजीत सिंह और जयंत चौधरी की मेहनत ने जाट-मुसलमान की दूरी काफी कम कर दी. नवनिर्वाचित सांसद तब्बुसम हसन भी इस बात पर सहमति जताती है वो कहती है “यह चुनाव जीत हार से बहुत ज्यादा महत्व रखता है. 2013 के दंगों में कुछ वक्त के लिए दिलो में फ़र्क़ जरूर आ गया था अब असलियत सामने आ गई है. जाट और मुस्लिमो के बीच जिस कटुता का प्रचार किया गया वो कभी थी ही नही यह थोड़े समय के लिए एक गलतफहमी का शिकार होने जैसे था. 2009 में जब उनके शौहर मन्नवर हसन की एक एक्सीडेंट में मौत हो गई तो मेरे शौहर का सर उनके एक जाट दोस्त सुरेन्द्र तितावी के घुटनो पर था और वो दहाड़ मारकर रो रहे थे और दूसरे साथी सतीश के हाथ पैर टूट चुके थे ये दोनों जाट थे जो मेरे शौहर के साथ आखिरी वक्त तक थे”. इस बात को साबित करने के लिए जयंत 147 गांवो में घर घर गए और उन्होंने कहा कि तब्बसुम हसन नहीं बल्कि यह चुनाव वो खुद लड़ रहे हैं.

समाजवादी पार्टी के विधायक और तबस्सुम हसन के पुत्र नाहिद हसन ने अपनी 18 बीघा जमीन दंगों पीडितो के घर बनाने के लिए दान कर दी.नाहिद हसन कहते है”हमने दंगा पीड़ितों की मदद की उनके साथ अत्याचार हुआ था मगर हमने जाटो से नफरत नही की क्योंकि हम जानते थे कि दंगा प्रयोजित था और जाटो का भावनायों का इस्तेमाल कर लिया गया”.

कांग्रेस के पूर्व विधायक पंकज मलिक जो स्वयं जाट कहते है “2013 में केंद्र में भाजपा सरकार बनने की सबसे अहम वजह मुजफ्फरनगर दंगा थी यहां की रक्तरंजित राजनीति से देशभर में धुर्वीकरण हुआ और स्थानीय लोगो मे बड़े पैमाने पर नफरत फैल गई अब सन्देश यह जा रहा है कि जाटो ने मुस्लिम प्रत्याशी को चुनाव जीताकर सदन में भेजने का काम किया जो बिल्कुल पलटी हुई बात है एकदम सिक्के के दूसरे पहलू की तरह.इस बार का सन्देश सकारात्मक है नकारात्मक सन्देश से सरकार बन गई थी सकारात्मक से बदल जाएगी”.

राजनितिक कौशल

राजनीति में हाशिये पर पहुँच चुके रालोद के लिए ये अस्तित्व का सवाल था. चुनाव लड़ना ही नहीं बल्कि जीत कर फिर से खुद को प्रासंगिक बनाना था. 4 मई को जब जयंत चौधरी समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव से मिलने पहुंचे तो खबरे आई कि जयंत चौधरी संयुक्त विपक्ष की और कैराना से चुनाव लड़ेंगे. एक दिन पहले सहारनपुर के कांग्रेस के पूर्व विधायक इमरान मसूद खुले तौर पर जयंत चौधरी को चुनाव लड़ाने की बात कह चुके थे. सूत्रों के अनुसार वो राहुल गांधी से भी मिले थे और सपा से समझौता न होने की स्थिति में कांग्रेस के रालोद के साथ मिलकर अपनी ‘हैसियत ‘दिखाने की बात हो रही थी .

बसपा सुप्रीमो मायावती से बात की गई मगर उनके दिल्ली में होने के कारण जयंत की दावेदारी टल गई .जयन्त के करीबी सूत्रों के मुताबिक गठबंधन जयंत को प्रत्याशी बनाने की स्थिति में उनको समाजवादी पार्टी के सिम्बल पर लड़ाना चाहता था इसके बाद यह रास्ता निकाला गया कि प्रत्याशी सपा का होगा और सिम्बल रालोद का.इसपर सब राजी हो गए.

रालोद नेता जितेंद्र हुड्डा इस बात से पूरी तरह सहमत होते है वो कहते है “25 मई को शामली में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की एक सभा हुई इसमें बड़ी संख्या में जाट भी पहुंचे. तब तक जाट कंफ्यूज था और दोनों तरफ डोल रहा था. योगी ने कहा कि आज बाप बेटा(अजित और जयन्त) दोनों घर घर भीख मांग रहे है जाटो की भावनाओं ने उफान मारना शुरू कर दिया. योगी की रैली के बीच से जाट उठकर बाहर जाने लगे और कुछ ने हाय हाय भी की. इसके बाद गांव-गांव जाटो की पंचायत हुई और 24 घण्टे में सारा जाट एक पाले में आ गया अब वो भले ही सीएम हो मगर जयन्त हमारा अपना है हम उसके खिलाफ एक शब्द नही सुन सकते”.

लेकिन इस मौके पर भी जयंत चौधरी ने शालीनता से राजनीती की. उन्होंने अपनी मीटिंग्स में कहा ये मेरे लोग हैं और मैं इनके घर भी जाऊँगा. इसके बाद जाटो ने अपना सारा गुस्सा वोटिंग उतार दिया. ध्रुवीकरण के जवाब में उन्होंने गन्ना बनाम जिन्ना का नारा तक दे दिया

दलितों का साइलेंट वोट

वैसे बहुजन समाज पार्टी की तरफ से कोई एलान नहीं था लेकिन दलितों ने ज़्यादातर वोट रालोद को दिए. कुछ इस वजह से भी क्यूंकि इस बार जाट उनसे कंधे से कन्धा मिला कर खड़े थे. जज्बे के अंदाजा आप इस बात से लगा लीजिये कि नकुड़ विधानसभा क्षेत्र के एक गांव शुक्रताल में मशीन खराब हो गई तो रालोद कार्यकर्ता दलितो की वोट डलवाने को अड़ गए और खुद देर रात तक वोटिंग में सहयोग करते रहे .चुनाव में रालोद प्रत्याशी तब्बसुम हसन के चीफ इलेक्शन एजेंट व उनके भाई वसीम चौधरी बताते है कि “रालोद कार्यकर्ताओं के बूथ एजेंट होने से धुर्वीकरण और बूथ कैप्चरिंग दोनों की संभावना खत्म हो गई वरना यहां दलितो की वोट दंबंग ही डाल देते थे”.

दलितो में भीम आर्मी ने अच्छा काम किया .दलित मुस्लिम और जाट में कोई बंटवारा नही हुआ. अंत समय में जेल में बंद भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर रावण का के पत्र भी समर्थन में आया. सपा के एमएलसी वीरेंद्र सिंह इसे पश्चिम की राजनीति हिसाब से बेहद मजबूत और सकारात्मक बात मानते है वो कहते हैं इस घटजोड़ के बाद कुछ शेष नही बचता है.”

रालोद के सहारनपुर के जिलाध्यक्ष राव कैशर सलीम इस पर अपनी राय रखते हुए कहते है “आप इससे अंदाजा लगा लीजिये की अगर इतना सबकुछ झोंकने के बाद भी भाजपा के लोग यहां धुर्वीकरण करने में कामयाब नही हुए तो भारत मे भाजपा को कहीं भी हराया जा सकता है और 2019 में एक लोकसभा पर इतना अमल ला तो भाजपा लगा ही नहीं सकती इसलिए इस गठबंधन के बाद भाजपा की केंद्र में वापसी नही हो पाएगी”.

वैसे कैराना लोकसभा सीट पर आम आदमी पार्टी ने भी विपक्ष को अपना समर्थन दिया था.आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता लोकेश गुर्जर एक रोचक बात बताते है वो कहते है कि हिन्दू गुर्जरो ने भाजपा की इज्जत रख ली ,चुनाव मृगांका सिंह लड़ रही थी वो हमारी बहन है.अगर कोई और प्रत्याशी होता तो यह डेढ़ लाख गुर्जर तब्बसुम हसन को वोट करता तब बीजीपी की जमानत जब्त हो जाती .

तब्बसुम हसन के भाई वसीम चौधरी अब लगभग 10 हजार हिन्दू गुर्जरो को उनकी बहन को वोट करने की बात कहते है. लेकिन ये बात गले नहीं उतरती. कैराना विधान सभा से खुद तबस्सुम के बेटे नाहिद विधायक हैं लेकिन यहाँ से वो हार गयी थी. अगर कुछ गुर्जर वोट मिले भी तो वो भाजपा से नाराज़गी के कारण थे. युवा सतीश भड़ाना (27) बताते है “मैं मृगांका (बीजीपी प्रत्याशी) से पूरी सहानभूति रखता हूँ मगर मैंने दिल पर पत्थर रख लिया और भाजपा के खिलाफ वोट की क्योंकि मुझे झूठी सरकार को आइना दिखाना था मैं भी किसान हूँ मेरे गन्ने का पेमेंट अब तक नहीं आया हां अगर मृगांका संयुक्त विपक्ष से लड़ती और मोदी भी यहां बीजीपी प्रत्याशी होते तो भी उन्हें हरा नही पाते”.