‘रासुका’ माने औक़ात में रहने की नसीहत

By TCN News

निशाना जैसे तय था. बस, किसी बहाने का इंतज़ार था. कुछ इसी तरह कहीं ढाई तो कहीं छह माह पहले आफ़त का पहाड़ टूटा. इसकी जद में आये मुसलमान और ज़ाहिर है कि उनका घर-परिवार भी, नाते-रिश्तेदार और दोस्त-असबाब भी. सब कुछ बदहवास हो गया, बहुत कुछ बर्बाद हो गया.


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दुख और तकलीफ़ों में डूबी इस दास्तान में लाचारियों के सिलसिले का नया अध्याय जोड़ दिया. यह क़ानून का बेरहम शिकंजा जिसमें केवल मुसलमान फंसे

बहराइच जिले के नानपारा में और बाराबंकी जिले के महादेवा में हुआ. इसने दो समुदायों के बीच की पहले से मौजूद लकीर को कई गुना गाढ़ा कर दिया. दोनों जगह कुल मिला कर 45 लोग गिरफ़्तार हुए जिसमें नौ पर रासुका लगा. कानपुर में भी तीन लोग रासुका के फंदे में फंसे.

नानपारा के गुरघुट्टी गांव में हमेशा की तरह पिछले साल 2 दिसंबर को भी बारावफ़ात का जुलूस निकला. तयशुदा रास्ते पर कुछ दूरी तक सड़क इस बुरे हाल में थी कि तालाब हो चली थी. इससे बचने को जुलूस ने रास्ता बदल दिया और बस बवाल मच गया. पत्थर भी चले. इस आपाधापी में दो दुकानें भी तोड़ी और लूटी गयीं. जुलूस बिखर गया.

पुलिस हरकत में आयी और धरपकड़ में लग गयी. जो भी आसानी से हाथ लगा, बवालियों की कतार में खड़ा कर दिया गया. यह संख्या 33 थी, बाद में उनमें से पांच को रासुका के हवाले कर दिया गया. पुलिस कार्रवाई की आंच ने दूसरे पक्ष को छुआ तक नहीं.

गुनाहगारों की सूची में केवल मुसलमान?

मामला 14 मार्च, महादेवा का है मोटरसाइकिल से 17 साल का लड़का अपनी बहन के साथ घर लौट रहा था कि किसी ने पीछे बैठी बहन पर गुलाल फेंक दिया. भाई ने इस बदतमीजी पर एतराज़ जताया तो मामला कहासुनी और धक्कामुक्की से होता हुआ मारपीट में बदल गया. दो पक्ष बन गये, एक-दूसरे के खिलाफ़ खड़े हो गये.

पुलिस यहां भी बहुत देर से आयी. तब तक मामला ठंडा हो चुका था. लेकिन अगले दिन हिंदू युवा वाहिनी और हिंदू साम्राज्य परिषद के संग स्थानीय भाजपा विधायक शरद अवस्थी और महादेवा मंदिर के महंत आदित्यनाथ तिवारी ने पुलिस पर दबाव बनाते हुए मामले को गरमा दिया. स्थानीय पुलिस ने उनके कहे पर फ़ौरन अमल किया और 12 लोग गिरफ्तार हुए. सबके सब मुसलमान.

यह कार्रवाई दूसरे पक्ष द्वारा की गयी प्राथमिकी के आधार पर हुई जिसमें कहा गया था कि मुसलमानों ने उनकी शोभा यात्रा पर हमला बोला और मूर्तियों का अपमान किया.

रामनगर के थानेदार ने भी अपनी प्राथमिकी में मुसलमानों पर तोहमत मढ़ी और उन्हें सांप्रदायिक बिगाड़ के लिए जिम्मेदार बताया. दोनों प्राथमिकी में गुलाल फेंकने की घटना सिरे से नदारद थी.

हालांकि स्थानीय मीडिया में आया पुलिस अधीक्षक का बयान दोनों प्राथमिकी के ठीक उलट था. उन्होंने विवाद की जड़ में गुलाल फेंके जाने का हवाला देते हुए स्थिति को सामान्य बताया था. लेकिन थानेदार की प्राथमिकी के मुताबिक़ स्थिति असामान्य थी- ‘अभियुक्त’ नेपाल भागने की फ़िराक में थे कि उन्होंने ड्राइवर समेत अपने पांच सहयोगियों के दम पर सभी बारह शातिरों को गिरफ़्तार कर जेल भिजवा दिया.

बड़ी संख्या में मुसलमानों को ‘धर दबोचा’ गया और बिना किसी देरी के जेल रवाना कर दिया गया. किसी तरह ज़मानत पर रिहाई का सिलसिला चला लेकिन नानपारा के पांच और महादेवा के चार लोगों की रिहाई में भारी पेंच फंस गया. उन पर रासुका लग गया. मतलब कि उनसे देश की सुरक्षा को ख़तरा पैदा हो गया था.

इतना ही नहीं जमानत पर रिहाई का समय आया तो जेल से बाहर क़दम रखने से ठीक पहले चार लोगों पर रासुका लगाये जाने का फ़रमान आ पहुंचा, हिंदू साम्राज्यवादियों को स्थानीय पुलिस का साथ मिला और पुलिस को प्रशासन का. तीनों का गठबंधन मुसलमानों पर कहर बन कर टूटा.

घिसट-घिसट कर चल रही ज़िंदगी

ना जाने कब से घिसट-घिसट कर चल रही ज़िंदगी को गहरे सदमे में झोंक दिया. कोई मज़दूरी करता है, कोई रिक्शा खींचता है, कोई फेरी लगाता है, कोई साइकिल का पंक्चर बनाता है तो कोई गुमटी चलाता है. उनके घर बिना कहे भूख, अभाव और ग़रीबी की दास्तान सुनाते हैं.

नानपारा में ईंट-भट्टे के मज़दूर मुन्ना पर रासुका लगा. पुलिस की दबिश ने उनके भाई अब्दुल ख़ालिक का कारोबार भी चौपट कर दिया. उनका मुर्गा-मछली का धंधा है. पुलिस के छापे से पहले वे निकल चुके थे लेकिन छोटा भाई और दो भतीजे पुलिस के हत्थे चढ़ गये. दूकान 16 दिन बंद रही और तीन लाख रूपये से अधिक का नुकसान हो गया. ख़ाली हो चुकी दूकान को दोबारा जमाने के लिए तीन बीघा ज़मीन बिक गयी.

नानपारा के अरशद पर रासुका लगा. वह होश संभालते ही केरल के मदरसे में आलिमत कर रहा था. पढ़ाई का आख़िरी साल बाक़ी था. छुट्टियों में घर आया हुआ था कि धर लिया गया. गांव में मदरसा चला रहे उसके वालिद शाहिद रज़ा भी पुलिस की गिरफ़्त में आने से नहीं बचे और उसके ननिहाल से आये तीन लोग भी. इनमें 14 साल का कलीम भी था.

महादेवा में रिज़वान पर रासुका लगा. उनके वालिद जान मोहम्मद जेल जाते-जाते बचे. एक साल पहले उन पर फालिज गिरा था जिसने उनके शरीर का दाहिना हिस्सा बेजान कर दिया. वह साइकिल का पंक्चर बनाने का काम करते रहे हैं. फालिज ने उन्हें इस काम के लायक़ नहीं छोड़ा. मजबूरी में यह काम उनके बड़े बेटे को संभालना पड़ा जो ख़ुद भी एक पैर से विकलांग है. रिज़वान के दो छोटे बच्चे हैं. वह जेल गया तो उसका परिवार संकट में आ गया. उसके किसी भाई की माली हालत ऐसी नहीं कि रिज़वान के परिवार का बोझ उठा सके.

‘रासुका’ माने राष्ट्रीय सुरक्षा कानून

जिन पर रासुका लगा, उनके घरवालों और पड़ोसियों में से अधिकतर को पता ही नहीं कि रासुका आख़िर किस बला का नाम है, उन्हें यही पता नहीं कि राष्ट्रीय सुरक्षा कौन सी चीज होती है भला, उस पर ख़तरे का मतलब क्या होता है. सच तो यह है कि रासुका के फंदे में फंसे लोग किसी कोने से राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा नहीं हैं और ना हो सकते हैं. लेकिन रासुका ने उनके परिवार के ज़िंदा रहने के अधिकार के सामने ज़रूर बड़ा ख़तरा पैदा कर दिया.

जून के मध्य में इसकी मियाद ख़त्म होने को है जिसे और आगे बढ़ाये जाने का अंदेसा भी बना हुआ है. जो भी हो लेकिन पीड़ित मुसलमानों के दिमाग़ के किसी कोने में यह समझ ज़रूर घर कर गयी कि उनके साथ मुसलमान होने के नाते नाइंसाफ़ी हुई.

गैरतलब रहे कि 11 जून को रिहाई मंच के प्रतिनिधि मंडल ने महादेवा के मामले में बाराबंकी के जिलाधिकारी से मुलाक़ात की और उनसे यह मांग रखी कि रिज़वान, जुबैर, अतीक़ और मुमताज पर लगा रासुका ख़ारिज करने की सिफ़ारिश की जाये. साथ ही पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच कराई जाये ताकि सियासी मक़सद के चलते किसी ख़ास समुदाय के इंसानी और जम्हूरी हुक़ूक़ पर आंच न आये.

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