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बिहार में बदहाल शिक्षा व्यवस्था : बच्चे पढ़ाई से अधिक खिचड़ी के लिए कटोरे पिटते नज़र आते हैं!

(Photo By: Afroz Alam Sahil)

अमृतांज इंदीवर

व्यक्ति समाज का एक अभिन्न अंग है. जैसा व्यक्ति होगा, वैसा समाज व राष्ट्र होगा. भावी समाज के कर्णधारों के व्यक्तित्व का निर्माण करने की मशीन पाठशाला ही है. सामाजिक बुराइयां तब मिटेगी, जब गुणवतापूर्ण शिक्षा की व्यवस्था होगी. इसीलिए तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का मानना था कि शोषण मुक्त समाज की स्थापना शिक्षा के ज़रिए ही संभव है.

पूरे मुल्क में शिक्षालय की दयनीय स्थिति किसी से छुपी नहीं है. प्राथमिक, मध्य व उच्च विद्यालय में पढ़ाई से ज़्यादा कागज़ी खानापूर्ति आम बात होती जा रही है. प्राथमिक विद्यालय में बच्चे पढ़ाई से अधिक खिचड़ी के लिए कटोरे पिटते नज़र आते हैं.

एमडीएम (मीड डे मील) को लेकर सरकार से लेकर शिक्षा विभाग तक में घोर अनियमितता व्याप्त है. शिक्षक अध्यापन से अधिक कागज़ी कार्यों में लगे रहते हैं.

सरकार की बेरूख़ी का आलम यह है कि शिक्षक समान वेतन की मांग कर रहे हैं, तो दूसरी ओर शैक्षिक व्यवस्था चौपट हो रही है. प्रदर्शन व हड़ताल की वजह से स्कूली पठन-पाठन बाधित हो रहा है. ऐसे में उन्नत व विकसित समाज की कल्पना करना बेमानी है. बच्चों के सर्वागीण विकास की ज़िम्मेदारी सरकार, समाज व शिक्षक की है.

मुज़फ़्फ़रपुर ज़िले के पारू प्रखंडान्तर्गत उत्क्रमित विद्यालय के शिक्षक अमरेन्द्र कुमार बताते हैं कि, शिक्षक पोशाक योजना, छात्रवृति योजना, जनगणना, पारिवारिक सर्वेक्षण, एमडीएम के हिसाब रखने में ही परेशान रहते हैं, भला शिक्षक अध्यापन कैसे करेंगे?

उनका का कहना है, दूसरी ओर वेतन के लिए 4-6 माह तक टकटकी लगानी पड़ती है. इस बीच साहूकार व गांव के महाजन से 5 रुपये मासिक ब्याज के दर से पैसे सूद पर लेने पड़ते हैं, तो घर का चूल्हा-चौकी चलता है.

अमरेन्द्र बताते हैं, फ्रांस में शिक्षकों का सम्मान देखना है तो अदालत में चले जाइए, जहां अध्यापक के पहुंचते जज साहब के आदेश पर कुर्सी की व्यवस्था की जाती है और सम्मान के साथ बैठाया जाता है. वहीं हम लोगों को तो एक वार्ड सदस्य के स्कूल पहंचते ही कुर्सी से उठकर अभिवादन करना पड़ता है.

वो आगे कहते हैं कि, अधिकतर अभिभावक एमडीएम, पोशाक, छात्रवृति राशि के लिए विद्यालय में आते हैं. यह कभी नहीं जानने की कोशिश करते कि मेरे बच्चों की शैक्षणिक प्रगति हुई या नहीं? किस विषय में कमज़ोर है?

सेवानिवृत शिक्षक रामस्वार्थ मिश्र कहते हैं कि, शिक्षक अधिकतर समय स्कूल के बदले संघ, संगठन और राजनीति में लगा रहे हैं. क्या अच्छा होता कि समान काम के लिए, समान वेतन की मांग के साथ-साथ बच्चों का पठन-पाठन भी चलता रहता. शिक्षाविद् व उपराष्ट्रपति सर्वपल्ली राधकृष्णनन ने कहा था कि यदि मुझे कोई काम चुनना पड़े, तो मैं एक शिक्षक बनना चाहूंगा. उन्होंने राष्ट्र निर्माण को अपने जीवन का ध्येय माना. हमारा काम है शिक्षा का अलख जगाना, समाज को शिक्षित करना. वेतन वृद्धि और सेवा शर्ते पठन-पाठन से इतर है.

शिक्षा अधिकार अधिनियम में यह स्पष्ट है कि 6 से 14 आयुवर्ग के सभी बच्चों को निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा मुहैया कराना राज्य का कर्तव्य है, जो बच्चों का मौलिक अधिकार है. दूसरी तरफ़ क़ानून में गुणवतापूर्ण शिक्षा देने के संदर्भ में विशद वर्णन किया गया है.

बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर ज़िले के अधिकांश दलित बस्ती स्थित प्राथमिक विद्यालयों की स्थिति दयनीय है. स्कूल भवन बाहर से देखने में चकाचक लगता है और अंदर कचरा पसरा रहता है.

साहेबगंज स्थित शाहपुर दलित बस्ती में क़रीब 150 परिवार के इस मुसहर समुदाय का आज भी पेशा मूसा (चूहा) पकड़ना है. स्कूल में बच्चों की संख्या नदारद है जबकि 100 से अधिक बच्चे नामांकित हैं. शिक्षक हाज़िरी बनाकर बच्चों के आने की बाट जोहते रहते हैं.

समुदाय के पूर्व मुखिया किशोर मांझी कहते हैं कि, “इस समुदाय के लोगों में शिक्षा के प्रति जागरूकता का अभाव है. कम उम्र में ही बस्ती के बच्चे परदेस कमाने चले जाते हैं. कम उम्र में शादी हो जाती है. ऐसे भी परिवार इस समुदाय में है जिन्होंने शहर का मुंह तक नहीं देखा है. देश-दुनिया से अनजान लोगों का मात्र एक ही मक़सद है कि मज़दूरी करना और पैसे कमाना. इस इलाक़े के पढ़े-लिखे लोग इस मलिन बस्ती में क़दम नहीं रखना चाहते.

आगे किशोरी कहते हैं कि इस बस्ती में यदि शिक्षक ही लोगों को शिक्षा के महत्व से अवगत करा दे तो निःसंदेह इस समुदाय का कायापलट हो जाएगा.

निजी विद्यालय तक्षशिला स्कूल के प्राचार्य राजेश्वर दुबे कहते हैं कि,  यदि सरकारें निजी विद्यालयों की तरह संसाधनों का सही इस्तेमाल, स्मार्ट क्लास, गेम बोर्ड, योग्य शिक्षकों की बहाली, शिक्षकों के ऊपर शिक्षा देने की जवाबदेही, आचार-व्यवहार आदि पर ध्यान दे तो परिणाम सकारात्मक निकलकर आएगा.

वो बताते हैं कि, निजी विद्यालय के शिक्षक कम वेतन पाने के बाद भी अच्छे लिबास में स्कूल आते हैं. इससे इतर सरकारी विद्यालय के शिक्षक का अच्छा वेतन मिलने के बाद भी बुरा हाल है. यह बात ज़रूर है कि प्राइवेट स्कूल के शिक्षकों को समय पर वेतन मिल जाता है पर सरकारी स्कूल के शिक्षकों का वेतन 2-4 महीने पर मिलता है. गरीब व अशिक्षित लोगों को शिक्षा के प्रति जागरूक करना तथा काम करने का कल्चर क़ायम करना चुनौती से कम नहीं है.

सरकारी स्कूल की बदहाली का कारण केवल शिक्षक ही नहीं,  सरकार भी है. शिक्षा अधिकार अधिनियम में जो प्रावधान है, उसे ही पूरी कड़ाई से लागू कर दिया जाए, तो निःसंदेह शैक्षिक उन्नति के लिए वैश्विक स्तर पर भारत शिक्षा के क्षेत्र में नज़ीर पेश करेगा.

गुणवतापूर्ण शिक्षा के लिए शिक्षा विभाग, गांव के शिक्षित लोग, संकुल संसाधन केंद्र आदि को पूरी सक्रियता से मिशन की ओर लगना पड़ेगा, तब बदलेगी शिक्षा व्यवस्था तब बदलेगा राष्ट्र. (चरखा फीचर्स)