Home Lead Story ‘पुलिस ने एनकाउंटर के बाद 50 हज़ार का ईनाम घोषित किया’

‘पुलिस ने एनकाउंटर के बाद 50 हज़ार का ईनाम घोषित किया’

TwoCircles.net News Desk

आज़मगढ़/लखनऊ : ‘छन्नू सोनकर को पुलिस क़रीब के अमरूद के बाग से उठाकर ले गई थी. जब देर रात तक छन्नू नहीं आए तो उनकी मोबाईल पर फोन किया गया तो उधर से बताया गया कि उनके देवर को जहानागंज थाने पर रखा गया है. सुबह पास के बदरका चौकी से दो सिपाही आए और यह कहकर सदर अस्पताल ले गए कि छन्नू का इलाज हो रहा है. वहां जाकर पता चला कि छन्नू सोनकर की पुलिस ने हत्या कर दी है.’

ये बातें आज़मगढ़ में फ़र्ज़ी मुठभेड़ के दौरान मारे गए कटरा निवासी छन्नू सोनकर के पिता झब्बू सोनकर और भाभी सुभावती की हैं.

वहीं कानपुर से उठाकर फ़र्ज़ी मुठभेड़ में मारे गए मुत्कल्लीपुर, पवई निवासी मुकेश राजभर की बहन लक्ष्मी बताती हैं कि, भाई को मारने के 15 दिन पहले पुलिस आई थी. उस वक़्त घर में अकेली थी. पुलिस ने गालियां दी और मारा भी और भाई का पता लेकर चली गई. उसके बाद 26 जनवरी को साढ़े 9 बजे कानपुर से उठाकर हत्या कर दी.

वे बताती हैं कि, रामजन्म सिपाही ने 12 बजे फ़ोन किया कि कितना खेत है तो मां ने पूछा क्यों, तो कहा कि साहब पूछ रहे हैं. मां ने पुलिस से कहा कि मुकेश को तो सुबह ही उठाया था, आपके पास है क्या. अगर हो तो मारियेगा-पीटीएगा नहीं जो पैसा कहेंगे दे देंगे और उसके बाद तो भाई के मरने की ही ख़बर आई.

वो आगे बताती है कि उस पर कोई ईनाम नहीं था. लेकिन उस दिन मारने के बाद 50 हज़ार का ईनाम घोषित किया गया.

भाई सर्वेश ने कहा कि मेरा भाई 18 साल का भी नहीं हुआ था कि पुलिस ने बदमाश घोषित कर उसको मार डाला. लाश भी नहीं दी, जबरन जलवा दिया.

वो बताते हैं कि, 2016 में पहली बार एक अज्ञात केस में उसे उठाकर पैसे की मांग की गई थी कि अगर पैसा नहीं दोगे तो गैंगेस्टर लगा जेल भेज देंगे और जब नहीं दिया तो उसे जेल भेज दिया.

सर्वेश आगे बताते हैं कि, 15 दिन पवई थाने में जब रखा था तो रोज़ पुलिस आकर घर वालों से गाली गलौज और मारपीट करती थी और पैसे मांगती. बाद में जांच में गैंगेस्टर हट गया और वो जेल से बाहर आया. भाई जब जेल में था तब भी पुलिस आती थी और छूटने के बाद भी. उनका दबाव था कि वो कहीं बम्बई-दिल्ली चला जाए. वो गया भी इस बीच उसको भगोड़ा कह-कहकर बदमाश बताकर मार डाला.

फ़र्ज़ी मुठभेड़ के नाम पर पुलिस की गोली के शिकार ज़िला पंचायत चुनाव लड़ चुके पेडरा निवासी रईस अहमद की पत्नी बेबी ने बताया कि 30 दिसम्बर को कोहरे के वक़्त रात साढ़े सात के क़रीब आबिद नाम का एक आदमी मेरे पति को बुलाकर ले गया. थोड़ी देर में लोगों ने बताया कि एसओजी की टीम उनको अपनी गाड़ी में ठूसकर लेकर चली गई, वो बचाने के लिए चिल्लाए भी. उनको भेड़िया पुल अम्बारी के पास एन्काउंटर करने के लिए ले गए. लेकिन तब तक ख़बर फैल गई तो उनको ले जाकर कई दिन रखने के बाद बाराबंकी में गोली मारकर मुठभेड़ दिखाई गई.

उन्होंने बताया कि पिछली प्रधानी के चुनाव से विरोधी उनको फ़र्ज़ी केस में फंसाने के फ़िराक़ में थे. नहर काटने जैसे फ़र्ज़ी मुक़दमें उन पर लादे गए.

ये तमाम बातें इन लोगों ने रिहाई मंच के एक प्रतिनिधी मंडल को बताया है. इसके पहले रिहाई मंच का यह प्रतिनिधि मंडल मोहन पासी, रामजी पासी और जयहिंद यादव के परिजनों से भी मुलाक़ात की थी.

इस प्रतिनिधि मंडल में विनोद यादव, तारिक़ शफ़ीक़, लक्ष्मण प्रसाद, अवधेश यादव, राजीव यादव और अनिल यादव शामिल थे.

रिहाई मंच नेता लक्ष्मण प्रसाद, राजीव यादव और अनिल यादव ने मांग की कि आज़मगढ़ पुलिस अधीक्षक और भाजपा नेताओं के कॉल डिटेल की जांच हो, पूरा फ़र्ज़ी मुठभेड़ के नाम पर हो रही हत्या का सच उजागर हो जाएगा. आज़मगढ़ के पुलिस कप्तान अजय साहनी अपने आपराधिक कुकर्मों को छुपाने के लिए जगह-जगह सम्मान समारोह करवा रहे हैं.

रिहाई मंच ने कहा कि आज़मगढ़ में आतंकवाद के नाम पर पहले मुस्लिम नौजवानों को फंसाया गया, अब योगी सरकार में दलित-पिछड़े युवकों की मुठभेड़ के नाम पर हत्या हो रही है. यह आज़मगढ़ को बदनाम करने की साज़िश है.

रिहाई मंच का आरोप है कि आज़मगढ़ के पुलिस कप्तान ज़िले के सवर्ण अपराधियों और भाजपा नेताओं से मिलकर किसानों-मज़दूरों के बेटों की मुठभेड़ के नाम पर ठेके पर हत्या करवा रहे हैं. यह सत्ता और सवर्ण-सामन्तवाद का गठजोड़ है. सपा से भाजपा में गए पूर्व मंत्री यशवंत सिंह, दर्जनों हत्याओं के आरोपी अखण्ड प्रताप सिंह और जशवंत सिंह उर्फ गप्पू सिंह जैसे कई अपराधी हैं जिनको सत्ता का संरक्षण प्राप्त है और आज़मगढ़ का पुलिस प्रशासन इन्हीं के इशारे पर कई फ़र्ज़ी मुठभेड़ों को अंजाम दिया है.