Home Lead Story मुज़फ़्फ़रनगर दंगे: जाटों के बीच राजनीतिक पकड़ मजबूत करने के लिए वापिस...

मुज़फ़्फ़रनगर दंगे: जाटों के बीच राजनीतिक पकड़ मजबूत करने के लिए वापिस लिए जा रहे मुक़दमे

आस मुहम्मद कैफ़, TwoCircles.net

मुजफ्फरनगर: मुज़फ़्फ़रनगर में साल 2013 में हुए दंगों के अधीन दर्ज किए गए मुक़दमों की वापसी की प्रकिया की कार्रवाई चल रही है. अब तक कुल 131 मुकदमों में मांगी गई रिपोर्ट लगभग तैयार हो गई है. स्थानीय प्रशासन प्रदेश सरकार के आदेश का इंतज़ार कर रहा है. जिन मुकदमों की वापसी की कार्रवाई चल रही है, उन सभी में नामजद आरोपी हिन्दू समुदाय से ताल्लुक़ रखते हैं, और बहुतायत में जाट समुदाय से हैं. यह प्रकिया ऐसे समय पर शुरू की गई हैं जब इसी क्षेत्र की लोकसभा कैराना में उपचुनाव होने वाला है इस एकतरफा कार्रवाई से यहां सियासत गर्म हो गई है, साथ ही साथ और दंगा पीड़ितों में भारी निराशा पनप रही है.

राजनीतिक शख़्सियतों पर दायर मुक़दमे वापिस लेने की कार्रवाई नवनिर्वाचित योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा पिछले साल शुरू की गयी थी. मुज़फ़्फ़रनगर दंगों के दौरान मुक़दमों को वापिस लिए जाने की प्रक्रिया प्रदेश सरकार द्वारा बीते हफ़्ते शुरू की गयी है. जानकारों का मानना है कि यह कार्रवाई पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ समय से पैदा हो रही जाट-मुस्लिम एकता को तोड़ने के लिए की जा रही हैं, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी हर कीमत पर कैराना लोकसभा का उपचुनाव जीतना चाहती है.

2013 के दंगों के दौरान दर्ज हुए 542 मुकदमों में 402 मुक़दमे अल्पसंख्यको के घरों में आगजनी और लूटपाट से जुड़े हुए थे. इनमें से 31 को रीरिपोर्ट (दो बार दर्ज हुआ मुकदमा) माना गया था, जिससे यह संख्या घटकर 511 हो गयी .अब इनमें से 169 को तत्कालीन अखिलेश यादव की सरकार में एसआईटी की जांच में ‘झूठा’ मानकर खारिज कर दिया गया. इसके बाद 171 मुकदमो में चार्जशीट दायर की गयी, जिनमें से 131 मुक़दमों के अब वापिस लिए जाने की कार्रवाई शुरू हो गयी है.

मुज़फ़्फ़रनगर और शामली के ज़िलाधिकारी को शासन की ओर से 131 मुकदमो में आख्या मांगे जाने का पत्र आया था, जिसपर पर ज़िला प्रशासन की ओर से जवाब तैयार कर लिया गया है. यह पत्र सरकार के न्याय विभाग ने भेजा. शासन के ज़रिए कुल 13 बिंदुओं पर रिपोर्ट मांगी गई है इसमें जिलाधिकारी का स्पष्ट मत कारण सहित मांगा गया है .

प्रदेश सरकार में कानून मंत्री बृजेश पाठक के अनुसार, “सरकार इन मुकदमों को वापस ले रही है क्योंकि यह गलत दर्ज किए गए थे. 2013 में दोनों जनपदों में जमकर हिंसा हुई थी. 511 दर्ज हुए मुकदमों की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया था, जिनमें से 170 मुकदमों को खारिज कर दिया गया जबकि 169 में अंतिम रिपोर्ट लगा दी गई. अब तक 41 मुक़दमों में पक्षद्रोही होने के कारण आरोपी बरी हो गए है. कुल 172 मामलो में चार्जशीट दायर की गयी थी. अब 131 मुक़दमे वापस हो जाएंगे.”

सारा गुणाभाग यह है कि दंगों में मारे गए परिजन इस दर्द में जीवन भर तकलीफ सहते रहेंगे कि उनके परिवार के लोगों को किसी ने नही मारा. अजीब यह है भाजपा सांसद संजीव बालियान कहते है, “ये मुक़दमे झूठे है और मुआवजा लेने के लिए लिखाये गये.” वो कह रहे है कि अगर किसी के घर पर कंकड़ भी फेंका गया तो उसने भी मुक़दमा लिखवा दिया. हत्या के 13 मुकदमों के बाबत सांसद बालियान इंकार करते हैं और कहते हैं कि यह आगजनी तोड़फोड़ के मुक़दमे हैं.

इन मुक़दमों की वापसी से सबसे ज्यादा खुश बुढ़ाना के विधायक उमेश मलिक है. बुढ़ाना विधानसभा दंगे के दौरान सबसे ज्यादा प्रभावित रही थी मगर इसमें सबसे ज्यादा आरोपी लांक बहावड़ी और फुगाना गांव के लोग है. दंगे के दौरान अजीब भौगोलिक स्थिति के कारण यहां पुलिस बल नही पहुंच पाने में नाकाम रहा और हिंसा निर्बाध रूप से होती रही.

इन मुक़दमों में 1455 लोग नामजद हैं. ज्यादातर मुक़दमों में पीडित पलट गए है, और ग़ौरतलब बात यह है कि इन मुकदमो में सरकार खुद वादी है. कैराना सांसद हुकुम सिंह के निधन होने के बाद यहां अब उपचुनाव होने की घोषणा होने वाली है. इस दृष्टि से देखा जाए तो जिन 131 मुक़दमों को वापिस लिए जाने की कवायद चल रही है, उनमें नामज़द आधे से ज्यादा आरोपी इस लोकसभा से अपना सांसद चुनते है. गोरखपुर और फूलपुर हार के बाद कैराना जीतना अब भाजपा के लिए जीवन मरण का प्रश्न बन गया है जिसकी संभावना कम ही है.

दोनों जनपदों का प्रशासन इन मुकदमो की वापसी की कार्रवाई में काफी तेजी दिखा रहा है. मुजफ्फरनगर के ज़िलाधिकारी राजीव शर्मा कहते हैं, “जिन बिंदुओं पर जानकारी मांगी गई है, उन्हें भिजवाया जा रहा है.”

समाजवादी पार्टी के कुछ स्थानीय नेताओं ने इस पर विरोध के स्वर उठाए हैं. सपा ज़िलाअध्यक्ष गौरव स्वरूप और चंदन चौहान ने इस कार्रवाई को इंसाफ का एक और क़त्ल बताया है . गौरव स्वरूप कहते हैं, “राजनीति में लोग अनैतिक हो जाते हैं, निर्दयी नहीं. भाजपा के लोग सारी सीमाएँ लांघ रहे हैं. इन मुकदमो में पुलिस वादी है. ज़ाहिर है कि मुक़दमे जांच पड़ताल कर लिखे गए. जो गलत थे उन्हें खारिज कर दिया गया. इन लोगों के खिलाफ जांच दल को साक्ष्य मिले. भाजपा राजनीतिक लाभ के लिए अनैतिक काम करती रहती है.”

दंगे के दौरान रासुका के तहत जेल में रहे सरधना के विधायक संगीत सोम इस कार्रवाई से बहुत खुश हैं. वो कहते हैं, “हमने इन मुक़दमों की वापसी का वादा किया था. ये मुक़दमे उस समय की सरकार ने मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए दर्ज किए थे.”

स्थानीय जानकारों का मानना है मुलायम सिंह की शांति पहल, अजित सिंह के कैम्प की जाट-मुस्लिमों में बढ़ती नजदीकी और गोरखपुर और फूलपुर में हार के बाद बाद भाजपा ने यह कार्ड खेला है, मगर इसकी सफलता की उम्मीद कम ही है. मुज़फ्फरनगर के अधिवक्ता मनोज सौदाई बताते हैं, “इस प्रकिया में 15 दिन का समय लगेगा. उसके बाद अगली कार्रवाई होगी. चूंकि कैराना में उपचुनाव है इसलिए जल्दी ही आचार संहिता भी लग सकती है, फिर यह कार्रवाई रुक जाएगी.”

इस दौरान इस मुक़दमा-वापसी से नाराज पक्ष अगर अदालत में चला गया तो इस आदेश पर रोक लग जाएगी. इस तरह यह मुक़दमे तो वापस नही होंगे, मगर कहानी विषैली हो जाएगी.

यह दाँव भाजपा का चुनावी दाँव है, इसे समझने के लिए भाजपा नेतागणों के वक्तव्य से आसानी मिलती है. क्योंकि खुद सांसद संजीव बालियान ने मीडिया से हुई बातचीत में यह कहा है कि जिन लोगों के मुक़दमे वापिस हो रहे हैं, वे सब हिन्दू है और सभी निर्दोष हैं. बुढ़ाना के विधायक उमेश मलिक कह रहे हैं कि इनमें कोई भी मुसलमान नहीं है.

मुजफ्फरनगर का राजनीतिक पारा गर्म हो गया है. पिछले कुछ समय से यहां जाटों में भाजपा सरकार को लेकर गहरी नाराजगी है. 2013 में यहां जाटों और मुसलमानों के बीच भारी दंगा हुआ था, मगर पिछले कुछ समय से जाटों और मुसलमानों में दूरियां मिटने लगी थी. सरकार ने जिन मुकदमों को वापस करने की पैरवी की है, उनमें हत्या, लूट और साम्प्रदयिक हिंसा जैसे गंभीर अपराध शामिल हैं. अगर यह मुक़दमे वापिस हो जाते हैं तो पूरी संभावना है कि जाट और मुस्लिम फिर से अलग-अलग हो जाएँ.

रालोद के प्रवक्ता अभिषेक गुर्जर कहते हैं, “जाटों और मुसलमानों को नजदीक लाने में बहुत बड़ी भूमिका रालोद सुप्रीमो अजित सिंह जी की है. उन्होंने दो दिन मुज़फ्फरनगर और और दो दिन शामली में गुज़ारे. जाट व मुसलमान समुदायों के घर-घर गए. उन्हें करीब लाने की कोशिश में जुटे रहे. यहां जाटों और मुसलमानों में नजदीकी बढ़ रही थी. भाजपा इस समीकरण की राजनीतिक ताक़त से डर गयी तो उसने यह चाल चाल दी.”

भाजपा के मुजफ्फरनगर नेताओं को इस बात पर किंचित अभिमान है कि 2014 में देश में बनी भाजपा सरकार में मुजफ्फरनगर दंगे से पैदा हुए ध्रुवीकरण की महत्वपूर्ण भूमिका थी. यहां के सांसद संजीव बालियान का यह पहला चुनाव था, जिसे जीतने के बाद उन्हें केंद्र सरकार में मंत्री बनाया गया. बाद में उन्हें मंत्री पद से हटा दिया गया. हाल फिलहाल राजनीतिक हलकों में यहां लोकसभा प्रत्याशी बदलने की भी चर्चा आम है, मगर मुक़दमे वापसी की इन चर्चाओं के बीच अचानक से संजीव बालियान फिर केंद्र में आ गए हैं.