आस मुहम्मद कैफ़, TwoCircles.net
आगरा : इस शहर की एक बेटी देशभर की लड़कियों के लिए एक मिसाल बन गई है. उसकी बहादुरी, हिम्मत और मुश्किल हालात से जूझने के आत्मबल ने उसे आर्दश बना दिया है.
संकरी गली, पिछड़े इलाक़े और जुआ, सट्टे व नशाखोरी में बर्बादी की दास्तां लिखते मंटोला के लिए यह लड़की अद्भुत है. हाल ही में आगरा की सबसे बहादुर लड़की नाज़िया खान को राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया है.
18 साल की नाज़िया खान 6 भाई बहनों में सबसे छोटी हैं. माँ शहनाज़ की ज़िन्दगी चूल्हे चौके तक है. पिता क़दीर 6 हज़ार रुपये महीने में आगरा की एक जूता फैक्ट्री में काम करते हैं. हालात उतने ही मुश्किल हैं, जितने 6 हज़ार रुपए प्रतिमाह कमाने वाले एक 8 सदस्यों के परिवार में हो सकते हैं.
मगर इस परिवार में नाज़िया खान जैसी बेटी भी है, जिसके साथ सेल्फी पोस्ट कर उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक खुद को गौरवशाली महसूस करते हैं.
जिस परिवार के 5 बच्चों की पढ़ाई पैसा ना होने की वजह से छूट गई हो, उसी परिवार की सबसे छोटी सदस्य नाज़िया खान को देश के प्रधानमंत्री और प्रदेश के मुख्यमंत्री बुलाकर सम्मानित करते हैं. इसी नाज़िया खान को राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार के साथ-साथ रानी लक्ष्मीबाई पुरस्कार और अन्य कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है.
2015 में सरेआम एक 7 साल की बच्ची को अपहर्ताओं से छीनने वाली नाज़िया आगरा में जुआ, सट्टा, शराब और नशाखोरी के लिए अभियान चलाने के लिए ‘आगरा की मर्दानी’ का तमग़ा पा चुकी हैं.
TwoCircles.net के साथ बातचीत में नाज़िया खान बताती हैं कि, 7 अगस्त 2015 को वो अपने स्कूल से वापस आ रही थी. तब वो दसवीं में पढ़ती थीं. उसने 6 या 7 साल की एक बच्ची को स्कूल के बाहर ज़बरदस्ती दो लोगों को बाइक पर बैठाते हुए देखा. बच्ची इनसे छूटने की कोशिश कर रही थी. उसने मुझे बहुत तेज़ आवाज़ दी. दीदी! मुझे बचाओ… मैंने दौड़कर अपना बैग बाइक चलाने वाले के सर में मार दिया. इससे उनका बैलेन्स बिगड़ गया और मैंने बच्ची को पकड़ लिया. उसके बाद हम में बच्ची को छीनने का संघर्ष होने लगा. अपहरणकर्ताओं ने उसके बाद मुझे पीटना शुरू कर दिया, मगर मैंने बच्ची नहीं छोड़ी. हालांकि सैकड़ों लोग वहां खड़े तमाशा देख रहे थे. जब भीड़ और बढ़ गई तो दोनों बदमाश भाग गए. इसके बाद मुझे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जी ने रानी लक्ष्मीबाई वीरता पुरस्कार से नवाज़ा.
मंटोला के ही नदीम मंसूरी कहते हैं, यह ‘आगरा की मर्दानी’ का पहला कारनामा था, मगर इसके बाद वो रुकी नहीं. उसने इलाक़े में हो रहे ग़लत धंधों के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद कर दी.
नाज़िया की मां शहनाज़ बताती हैं, यहां आसपास बहुत सारे ग़लत धंधे होते थे. नाज़िया मुझसे कहती थी कि वो इन्हें बंद कराना चाहती है. क्योंकि यहां की मज़दूर आबादी की कमाई इन बुरे धंधों की भेंट चढ़ रही थी और घर परिवार बर्बाद हो रहे थे. इसके बाद नाज़िया ने अभियान छेड़ दिया.
नाज़िया कहती हैं, शराब के नशे में धुत बाप नाली में पड़ा होता था और मासूम औलाद आंखों में आंसू लिए बाप को पकड़कर जब यह कहती थी कि पापा घर चलो तो कलेजा बाहर निकलने को करता था. इसी तरह की कहानी जुआ और सट्टे की थी. आदमी 200 रुपए कमाकर घर आता था और दुगना-तिगुना के लालच में सब गवां बैठता था. उसके बाद बच्चे भूखे रहते थे और घर में कलह रहती थी.
वो आगे बताती हैं कि, जब मैंने इसका विरोध शुरू किया तो मेरा भारी विरोध होने लगा. एक दिन मेरे घर पर ग़लत धंधा करने वाले इन लोगों ने हमला कर दिया. हमें लोहे के तारों से पीटा गया. मेरी बहन के अब भी निशान हैं. मेरी माँ इतनी दुखी हो गई कि उन्होंने घर के बाहर ‘मकान बिकाऊ है’ का बोर्ड लगवा दिया. मगर मैंने हिम्मत नहीं हारी. अब यहां यह ग़लत धंधे बंद हो गए हैं. इसके बाद मुझे राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों ने बुलाकर सम्मानित किया.
शहनाज़ के अनुसार उनकी बेटी ने उनकी ज़िन्दगी बदल दी है. अब हर तरफ़ हमारी इज़्ज़त होती है. कभी पैसा न होने की वजह से हमने इसे स्कूल से भी हटाने की सोची थी. लेकिन नाज़िया अब बीए फर्स्ट ईयर की छात्रा है. उसके कॉलेज में उसकी ज़बरदस्त लोकप्रियता है.
आईएएस बनने का ख्वाब रखने वाली नाज़िया को पिछले बुधवार को ही उत्तर प्रदेश के डीजीपी ओ.पी. सिंह ने स्पेशल पुलिस ऑफिसर बनाया है और दो दिन पहले ही उन्हें यूपी के गर्वनर राम नाईक ने वीरता पुरस्कार दिया है.
नाज़िया हमसे कहती हैं कि उसके अंदर बुराई से लड़ने की आग है और वो इसे ठंडी नहीं पड़ने देगी.
आगरा की रोली तिवारी हमसे कहती हैं, नाज़िया शहर की बेटी है और शहर को उस पर नाज़ है…