फ़हमिना हुसैन, TwoCircles.net
सासाराम : सर्वाधिक नंबरों से पास होने के सुनहरे सपने दिखाकर शहर में तेज़ी से बड़े पैमाने पर कोचिंग सेन्टर चलाए जा रहे हैं. इस शहर की शायद ही कोई ऐसी गली होगी, जहां कोई कोचिंग सेन्टर न हो. लेकिन शहर की गलियों व नुक्कड़ों पर खुले ये कोचिंग सेंटर न ही सरकार से पंजीकृत हैं और न ही सरकार के ज़रिए जारी मानकों का अनुपालन करते हैं. ऐसे में परीक्षा का रिज़ल्ट आने के बाद छात्र अपने आपको ठगा महसूस करते हैं.
शहर के एक कोचिंग संस्थान में पढ़ने वाले छात्र विकास कुमार सिंह का कहना है, ‘स्कूल में टीचर सही से नहीं पढ़ाते हैं, इसलिए कोचिंग करना ज़रूरी हो जाता है.’
विकास 11वीं में विज्ञान के छात्र हैं. वो बताते हैं, ‘जो सर स्कूल में पढ़ाते हैं, वही अपने कोचिंग में मैथ की क्लास भी लेते हैं. सर हमें स्कूल में भले ही न पढ़ाएं, लेकिन कोचिंग में उनसे खूब मदद मिलती है. सर का गेस बहुत सटीक होता है. ज़्यादातर एग्ज़ाम में वही आता है.’
इशरत नाज़ बताती हैं, ‘स्कूल में सेलेबस पूरा नहीं होता है. अब क्योंकि एग्ज़ाम से पहले कोर्स भी कम्प्लीट करना होता है. ऐसे में कोचिंग करना बहुत ज़रूरी हो जाता है.’
कई एक कोचिंग सेंटरों में पढ़ने वाले बच्चों से बातचीत करने पर ये बात भी खुलकर सामने आती है कि ज़्यादातर टीचर्स ने सरकारी व गैर-सरकारी स्कूलों में कार्यरत होने के बावजूद खुद का कोचिंग सेंटर भी खोल रखा है. और यहां छात्र परीक्षा में अच्छे अंक पाने की लालच में ज़्यादा फ़ीस देकर पढ़ रहे हैं. ज़ाहिर है, इसका ख़ामियाज़ा इन छात्रों के अभिभावकों को भुगतना पड़ता है. जहां एक ओर स्कूलों की भारी भरकम फ़ीस तो दूसरी ओर ट्यूशन फ़ीस के बोझ तले दबे जा रहे हैं.
मोटी फ़ीस वसूल करने वाले इन कोचिंग सेन्टरों ने कमाने का एक और नया ज़रिया तलाश कर लिया है. जीएसटी के नाम पर छात्रों के अभिभावकों से अलग से पैसे वसूल किए जा रहे हैं.
एक अभिभावक रितेश कुशवाहा कहते हैं, ‘पहले कोचिंग की फ़ीस 300 थी, लेकिन कुछ दिन पहले मेरे बच्चे ने बताया कि जीएसटी की वजह से सर ने फ़ीस बढ़ाकर 400 रूपये कर दी है. अब समझ नहीं आ रहा है कि कोचिंग सेन्टरों का जीएसटी से क्या मतलब? जबकि शायद ही ये कोचिंग पंजीकृत हो या सरकार को किसी तरह का टैक्स भर रहा हो.’
वहीं अभिभावक संतोष कुमार व मनोज शर्मा ने बताया कि, कोचिंग संचालक कोर्स पूरा करने के नाम पर 3-4 महीने की फ़ीस एक साथ ले लेते हैं. जिसमें एक बार फ़ीस जमा हो जाने के बाद कोई रिटर्न पॉलिसी नहीं है.’
कोचिंग के इस पूरे ‘धंधे’ में एक और बात ग़ौरलतब है कि ये सेन्टर छात्रों के ज़रिए दी गई फ़ीस की कोई रसीद नहीं देते हैं.
दिलचस्प बात यह है कि राज्य सरकार के नियमानुसार स्कूल-कॉलेज के समय, कोचिंग क्लास लेने की अनुमति नहीं है, लेकिन शहर के कई कोचिंग सेंटर्स स्कूल-कॉलेज के समय पर अपनी क्लासेज़ चलाते हैं, जिसकी वजह से छात्र नियमित रूप से अपने स्कूल या कॉलेज नहीं जाते.
इतना ही नहीं, इन कोचिंग सेन्टर्स के इंफ्रास्ट्रक्चर की बात की जाए तो एक दो कमरों में भेड़-बकरियों की तरह छात्रों को बैठाकर पढ़ाया जाता है. यहां तक कि शहर की हर आवासीय कॉलोनियों में भी धड़ल्ले से कोचिंग सेंटर्स खोल दिए गए हैं, जिससे लोगों को बहुत सी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
एक आवासीय कॉलोनी में रहने वाले योगेन्द्र सिन्हा बताते हैं, ‘मेरी गली में पिछले एक साल में 6 कोचिंग खुल गए हैं. पूरे दिन बच्चों का आना-जाना लगा रहता है, जिससे शोर तो होता ही है. साथ ही अपने ही घर में आना-जाना भी मुश्किल हो जाता है. बच्चे अपनी साईकिल सड़क पर ही लगा देते हैं, जिससे यहां जाम लगना स्वाभाविक है. आए दिन रास्ते और पार्किंग को लेकर बहस होती रहती है. लोगों की शिकायत करने के बाद भी कोचिंग संचालक सुनने को तैयार नहीं होते हैं.’
इस पूरे मामले में यहां के ज़िला शिक्षक पदाधिकारी महेन्द्र पोद्दार TwoCircles.net से बातचीत में कहते हैं, ‘कई कोचिंग संचालक पंजीकरण शुल्क अदा करने से कहीं ज़्यादा छात्रों को पढ़ा रहे हैं. लेकिन अभी तक कोई शिकायत नहीं आई कि ज़िले में अवैध कोचिंग चल रही है. यदि कोई कोचिंग बिना पंजीकरण के संचालित होती मिली तो उसके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाएगी.’
ज़िला शिक्षा कार्यालय के एक विभागीय कार्यकर्ता के अनुसार सासाराम में 64 कोचिंग संस्थाएं रजिस्टर हैं, लेकिन बिना पंजीकरण के कितने कोचिंग सेन्टर्स चलाए जा रहे हैं, ये कहना मुश्किल है.
वो ये भी बताते हैं कि, क़रीब आधा दर्जन से भी अधिक कोचिंग सेंटरों का पंजीकरण पिछले साल ही समाप्त हो चुका है, जिसका अभी तक रि-रजिस्ट्रेशन का फॉर्म नहीं आया है.
नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर एक विभागीय कर्मचारी ने बताया कि पूरे ज़िले में पिछले तीन साल से बिना रिन्यूवल के ही कोचिंग संचालित हैं. पिछले साल यानी 2017 में सिर्फ़ 5 नए कोचिंग सेन्टरों का पंजीकरण हुआ है.
बता दें कि बिहार के कई ज़िलों में अधिकांशतः कोचिंग सेंटर्स बिना पंजीकरण के ही चलाए जा रहे हैं. जिसमें पटना, गया, सासाराम और डेहरी जैसे शहरी क्षेत्र शामिल हैं. हालांकि कोचिंग चलाने के लिए ज़िला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय में पंजीकरण अनिवार्य है. और ये पंजीकरण सिर्फ़ तीन सालों के लिए मान्य होता है. इसके बाद दुबारा पंजीकरण कराना अनिवार्य है. लेकिन कोचिंग संचालक सरकार के सारे नियमों को ताक पर रखकर अपने व्यापार को बढ़ाने में लगातार लगे हुए हैं. सरकार की ओर से इस तरफ़ ध्यान देने वाला फिलहाल कोई नज़र नहीं आ रहा है.