अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
मेरा तरीक़ अमीरी नहीं, फ़क़ीरी है
खुदी ना बेच ग़रीबी में नाम पैदा कर
यूपीएससी में इस बार 339 रैंक लाने वाले शेख़ सलमान को शायर अल्लामा इक़बाल बहुत पसंद हैं. और ये शेर उनके पसंदीदी शेरों में शामिल है, जो हमेशा इनको प्रेरित करता रहा है.
महाराष्ट्र के औरंगाबाद ज़िला के खुलदाबाद के क़साबपुरा में जन्में सलमान की कहानी हौसलों से भर देने वाली है.
सलमान का परिवार अब औरंगाबाद शहर से 25 किलोमीटर दूर फुलंब्री तहसील के एक छोटे से गांव मनीलाल पाठी में रहता है. इनके पिता उमर पटेल और मां माजिदा जमीला बी इसी गांव में रहकर खेती करते हैं.
सलमान बताते हैं कि अब्बू पहले 407 टेम्पू चलाते थे. कुछ दिन मज़दूरी की. अब खेती करते हैं और खेत में पैदा हुई सब्ज़ियों को बेचकर ही घर चलता है.
सलमान अपनी चौथी क्लास तक गांव के ज़िला परिषद के स्कूल में पढ़े. फिर बारहवीं तक की पढ़ाई कुंजखेड़ा के एक सरकारी स्कूल से की. इसके बाद मौलाना आज़ाद कॉलेज से बीएससी कम्प्यूटर साईंस और एमएससी केमेस्ट्री की डिग्री हासिल की है.
सलमान बताते हैं कि, मैंने गांव की गरीबी, बेचारगी और बेरोज़गारी देखी है. मां-बाप की मज़दूरी व परेशानी देखी है.
वो कहते हैं कि मेरी ज़िन्दगी बहुत परेशानी वाली थी. कहीं कोई उम्मीद नहीं थी. मेरा इरादा गांव को कुछ बदलने का था. लेकिन मुझे पता नहीं था कि मुझे क्या और कैसे करना है.
सलमान के मुताबिक़ एक बार उन्होंने पढ़ाई के दौरान ही 2013 में औरंगाबाद शहर के रिसर्च सेन्टर में काविश फाउंडेशन की ओर से आयोजित एक सेमिनार में हिस्सा लिया था. इसमें ही सिविल सर्विस के बारे में बताया गया. बस मैंने यहीं से इरादा किया कि मैं अब सिविल सर्विस में जाउंगा और इंशा अल्लाह एक न एक दिन आईएएस बनूंगा.
सलमान में काविश फाउंडेशन से ही अपनी तैयारी की शुरूआत की. फिर वो पुणे और मुंबई के हज कमिटी ऑफ़ इंडिया के कोचिंग में गए. महाराष्ट्र में ही रहकर दो बार अपनी क़िस्मत को आज़माया और नाकाम रहे.
दो बार की नाकामी ने सलमान को तोड़कर रख दिया. साथ ही मां-बाप ने भी यह दबाव बनाना शुरू कर दिया कि अब बस बहुत हो गया. अब कहीं काम करो और पैसे कमाओ.
सलमान कहते हैं कि, सच पूछें तो घर के आर्थिक हालात ऐसे थे ही नहीं कि मैं तैयारी करता. इसलिए मैंने यूपीएससी की तैयारी छोड़ दी. नौकरी के लिए सैकड़ों जगह इंटरव्यू दिया. लेकिन कहीं किसी ने मुझे जॉब नहीं दिया. फिर मैंने अपने एक दोस्त के साथ 11वीं व 12वीं क्लास के लिए कोचिंग शुरू की. थोड़े-बहुत पैसे भी आने लगे. लेकिन दिमाग़ से यूपीएससी का भूत निकल नहीं रहा था. रातों को अचानक घबराकर उठ जाता. बार-बार यही सोचता कि अगले पांच साल बाद मेरी ज़िन्दगी कहां रहेगी. क्या मैं यूं ही ट्यूशन पढ़ाता रहूंगा. घर तो चल जाएगा, लेकिन गांव को बदलने का जो सपना देखा था वो कैसे पूरा होगा. इसी उधेड़बुन में फिर से फ़ैसला लिया कि करना तो यूपीएससी ही है. मैंने अपने अब्बू से सिर्फ़ एक साल का वक़्त मांगा. अब्बू ने कहा कि जाओ, तुम्हें दो साल दिए…
वो कहते हैं कि, इस बार मैंने दिल से वक़्त मांगा था. अब्बू का शुक्रगुज़ार हूं कि उन्होंने मेरे फिलिंग्स को समझा. मुझ पर भरोसा किया. मुझे हर तरह की आज़ादी दी. मेरी मां ने भी मुझे हमेशा हौसला देने का काम किया है.
सलमान आगे की तैयारी के लिए दिल्ली आ गएं. यहां इन्होंने हमदर्द स्टडी सर्किल में रहकर तैयारी की. उसके बाद जामिया मिल्लिया इस्लामिया के कोचिंग सेन्टर का फ़ायदा उठाया.
वो बताते हैं कि मेरी पूरी पढ़ाई और तैयारी स्कॉलरशिप से ही हुई है. ये पूछने पर कि आपका नाम ज़कात फ़ाउन्डेशन की लिस्ट में भी शामिल है. इस पर वो बताते हैं कि ज़कात फ़ाउंडेशन में सिर्फ़ एक दिन मौक इंटरव्यू देने गया था. वहां न तो रहा हूं और न ही कोई मदद ली है.
शेख़ सलमान को उम्मीद है कि 339 रैंक पर आईपीएस मिल जाएगा, लेकिन इन्हें बनना तो आईएएस ही है. इसलिए सलमान कहते हैं कि मेरा इरादा एक बार और इम्तेहान देने का है. इस बार इंशा अल्लाह मैं आईएएस ज़रूर बनूंगा. इन्हें ये कामयाबी चौथी कोशिश में मिली है.
सलमान की पूरी स्कूलिंग उर्दू मीडियम से हुई है और इन्होंने यूपीएससी के इस इम्तेहान में भी बतौर सब्जेक्ट उर्दू ही लिया था. वो बताते हैं कि उर्दू में मेरी हमेशा से दिलचस्पी रही है. इसलिए मुझे लगा कि शायद मैं इसमें अच्छा परफॉर्म कर पाउंगा. ख़ास बात ये है कि मादरी ज़बान होने के कारण पढ़ने और समझने में भी कोई मुश्किल नहीं आती है. सिलेबस काफ़ी अच्छा है. सही से पढ़ा जाए तो अच्छे नंबर आ सकते हैं.
ये पूछने पर कि यूपीएससी की तैयारी करने वालों को क्या संदेश देना चाहेंगे? वो कहते हैं कि, सिर्फ़ यूपीएससी ही नहीं, चाहे आप किसी भी कम्पीटिशन की तैयारी कर रहे हैं. अगर आपके पास उसे पाने की लगन है, तो ज़रूर कामयाबी मिलेगी. फिर से एक शेर के ज़रिए अपनी बात रखते हैं—
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बन्दे से ख़ुद पूछे कि बता तेरी रज़ा क्या है…
यक़ीनन आप मेहनत करेंगे तो खुदा आपकी हर संभव मदद ज़रूर करेगा. आपकी हर समस्या पीछे चली जाएगी. इसलिए कभी हार नहीं माननी चाहिए. कभी ये नहीं सोचना चाहिए कि हम पढ़ने में कमज़ोर हैं, या गरीब हैं. या हमें अंग्रेज़ी तो आती ही नहीं है. उर्दू मीडियम के छात्र भी बहुत कुछ कर सकते हैं.
इस मुल्क के नौजवान जो तालीम से दूर हैं या दूसरी चीज़ों में लगे हुए हैं, उनके लिए सलमान संदेश देते हुए कहते हैं कि, तालीम ही एक ज़रिया है, जो हमारी ज़िन्दगी सुधार सकती है. जिसके ज़रिए हम परिवार की ज़िन्दगी को सुधार सकते हैं. हमारे चाहने वाले या जो रिश्तेदार हैं, उनकी ज़िन्दगी सुधर सकती है. सबसे बड़ी बात यह है कि हम अच्छे इंसान बन सकते हैं. नौकरी और पैसा तो हम पा ही लेंगे, लेकिन अच्छा इंसान बनना सबसे बड़ी बात है, जो सिर्फ़ और सिर्फ़ तालीम से ही मुमकिन है.