ग़ाज़ीपुर के एजाज़ अहमद ने ये कारनामा कर दिखाया…

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net के लिए

एजाज़ अहमद को यूपीएससी में कामयाबी तो पिछले साल ही मिल गई थी, लेकिन ये अपने रैंक को लेकर संतुष्ठ नहीं थे, क्योंकि इन्हें बनना तो सिर्फ़ और सिर्फ़ आईएएस ही था, लेकिन उन्हें पिछली बार आईआरएस मिला. तब ही इन्होंने ठान लिया था कि आईएएस बनकर रहूंगा और इस बार इन्होंने ये कारनामा कर दिखाया है.


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एजाज़ अहमद की इस बार के यूपीएससी रिज़ल्ट में 282वीं रैंक आई है. पिछले साल इनका रैंक 697 था.

उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ीपुर ज़िला के जमानियां गांव के लोदीपुर मुहल्ला में जन्में एजाज़ अहमद पिछले चार महीनों से महाराष्ट्र के नागपुर शहर में इन्कम टैक्स डिपार्टमेंट में बतौर असिस्टेंट कमिश्नर कार्यरत हैं. इस दौरान वो लगातार यूपीएससी की तैयारी करते रहे.

एजाज़ कहते हैं कि, मेरी हमेशा से ख़्वाहिश थी कि मैं आईएएस बनूं. लेकिन 6 कोशिशों के बाद पिछली बार मेरा सेलेक्शन हुआ, लेकिन मेरी रैंक पर आईआरएस मिला. मैं ट्रेनिंग के साथ-साथ बचे वक़्त में तैयारी में भी लगा रहा. इस बार 7वीं कोशिश में 282वीं रैंक आई है और इंशा अल्लाह  इस बार मुझे आईएएस मिल जाएगा.

29 साल के एजाज़ अहमद के पिता मो. समीउल्लाह इंडियन आर्मी में लेफ्टिनेंट के पद से रिटायर हुए हैं. अम्मी घर का काम संभालती हैं. एजाज़ के घर में इनके अलावा 5  बहनें और 3 भाई हैं.

एजाज़ कहते हैं कि, दादा-नाना सब आर्मी में रहे हैं. मैंने जबसे होश संभाला कुछ अलग करने की सोचा. और मैंने तब ही तय कर लिया था कि मुझे आर्मी के बजाए सिविल सर्विस में जाना है. आम लोगों के लिए कुछ करना है.

एजाज़ की दसवीं तक की पढ़ाई जमानियां गांव से ही हुई. चूंकि गांव में इंटर करने के लिए कोई स्कूल या कॉलेज नहीं था, तब वो महाराष्ट्र के ठाणे के मुंब्रा में एक क़रीबी रिश्तेदार के यहां चले गएं. वहीं से उन्होंने 12वीं पास की. ठाणे से मरीन बायलॉजी में बैचलर डिग्री हासिल की. फिर दिल्ली आकर यूपीएससी की तैयारी के साथ-साथ इग्नू से पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में एमए किया.

तैयारी के बारे में पूछने पर एजाज़ बताते हैं कि, शुरू में तो मैंने खुद से ही पढ़ाई की. फिर बाद में जामिया मिल्लिया इस्लामिया के कोचिंग एंड गाईडेंस सेन्टर में रहकर इसकी तैयारी की.

एजाज़ ने बतौर सब्जेक्ट एंथ्रोपॉलोजी लिया था. वो कहते हैं कि, ये एक ऐसा सब्जेक्ट है, जिसे पढ़कर इंसानों के बारे में बहुत कुछ अच्छे से जान पाते हैं. इंसानों की ज़रूरतें क्या होती हैं. उसकी ज़रूरतों को पूरा करने का तरीक़ा क्या होना चाहिए. इंसानों की समस्याएं क्या हैं. ये सब्जेक्ट काफ़ी रोचक है. क्योंकि जब तक हम इंसानों की समस्याओं से रूबरू नहीं होंगे, उनकी इन समस्याओं का हल कैसे निकाल पाएंगे. ये सब्जेक्ट आपको आईएएस बनने के बाद काफ़ी मददगार साबित होता है.

एजाज़ को अल्लामा इक़बाल बहुत पसंद हैं और वो हमेशा इनके शेरों से प्रेरणा लेते रहे हैं. वो कहते हैं—

झपटना, पलटना, पलट कर झपटना

लहू गर्म रखने का है एक बहाना

परिन्दों की दुनिया का दरवेश हूं मैं

कि ‘शाहीन’ बनाता नहीं आशियाना

इस बार अगर आप आईएएस बन गए तो अपने ज़िले में पहला बदलाब क्या लाना चाहेंगे? इस सवाल के जवाब में एजाज़ कहते हैं कि, सबसे पहले मैं अपने ज़िले में एजुकेशन सिस्टम को चेंज करना चाहूंगा. हमें सबसे पहले इसे दुरूस्त करने की ज़रूरत है. क्योंकि एजुकेशन ही लोगों की ज़िन्दगी में बदलाव ला सकती है. इससे देश को बदला जा सकता है. एक बार इंसान पढ़ लेता है तो अपना भला-बुरा सोचने लगता है. मैं समझता हूं कि इंसानों में सोचने की सलाहियत पैदा कीजिए, फिर उसे छोड़ दीजिए. और ये काम सिर्फ़ और सिर्फ़ तालीम ही कर सकती है.

यूपीएससी की तैयारी करने वाले छात्रों से एजाज़ कहते हैं कि, आपमें सब्र का होना बहुत ज़रूरी है. आपको कभी हार नहीं माननी चाहिए. चाहे आप शुरू की कोशिशों में बार-बार नाकाम हो रहे हैं, फिर भी नाउम्मीद मत होईए. बस लगे रहिए. वैसे भी नाउम्मीदी कुफ्र है. अल्लाह सब देखने वाला है. आप मेहनत कीजिए, वो आपको एक न एक दिन कामयाब ज़रूर बनाएगा.

देश के युवाओं खास़ तौर से अपने क़ौम के नौजवानों से आप क्या कहना चाहेंगे? तो इस पर एजाज़ कहते हैं —

नहीं तेरा नशेमन क़स्र-ए-सुल्तानी के गुम्बद पर

तू शाहीं है, बसेरा कर पहाड़ों की चटानों में…

इस शेर में बहुत गहराई है. बस आप अल्लामा इक़बाल के इस शेर को ही समझ लें तो यक़ीनन आपकी ज़िन्दगी बदल जाएगी. और याद रखिए कि मेहनत से सबकुछ हासिल किया जा सकता है. बस हमें अपने टैलेन्ट का सही जगह इस्तेमाल करना होगा.

साथ ही मैं ये भी कहना चाहूंगा कि अपने दिमाग़ से सारी नकारात्मक बातों को निकाल दीजिए. ये भूल जाईए कि मुसलमानों का कुछ नहीं हो सकता. बस आख़िर में इन नौजवानों से अल्लामा इक़बाल के ही शेर के ज़रिए अपनी बात रखना चाहूंगा. और ये भी बता दूं कि ये शेर इक़बाल ने यूं नहीं लिख दिया, बल्कि ये क़ुरआन की रौशनी में लिखा गया है, जो अपने आप में एक फ़लसफ़ा बयान करता है.

न हो नाउम्मीद, नाउम्मीदी ज़वाले इल्म व इरफ़ां है

उम्मीद मर्दे मोमिन है, खुदा के राज़ दानों में…

       

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