भूख और गरीबी से जूझते बिहार की ज़मीनी हकीक़त

(Photo By: Fahmina Hussain)

फ़हमिना हुसैन, TwoCircles.net

9 साल की संगीता जिसके चेहरे पर अनगिनत मखियाँ बैठी थी जिसे देख कर एक पल को मुझे सकता सा हुआ के वो इस अवस्था में क्यों है. आखिर कार मैंने संगीता की माँ से पूछ ही लिया तब उन्होंने बताया कि संगीता काफी कमज़ोर है. डॉक्टर ने उसे उचित आहार और पौष्टिक भोजन देते के लिए कहा है.


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बिहार के भभुआ जिले में पहाड़ों पर बसा अधौरा गाँव जहाँ संगीता अपने परिवार के साथ रहती है. संगीता की माँ बताती हैं, “घर में कमाने वाला सिर्फ एक ही मर्द है. दिनभर मज़दूरी के बाद घर मुश्किल से चल पाता है. सरकार की तरफ से राशन कार्ड मिला है जिससे महीने भर का चावल-गेहूं मिल जाता है. जो पुरे परिवार के लिए पर्याप्त नहीं हो पता. अब इस स्तिथि में रोज फल-फूल का इंतज़ाम करना बहुत मुश्किल है.”

इंडियास्पेंड में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार बिहार में पांच साल से कम उम्र के करीब 56% बच्चे कुपोषित हैं। जबकि अधिकांश जिलों के 70 प्रतिशत महिलायें एवं बच्चे खून की कमी से पीड़ित हैं। सरकारी आकड़ें की बात करें तो बिहार के 12 जिलों में 51 प्रतिशत आबादी कुपोषण का शिकार है.

(Photo By: Fahmina Hussain)

इसी गांव में रहने वाले 43 वर्षीय चितरंजन बताते हैं गाँव पहाड़ पर बसा होने से पानी की बहुत समस्याएं हैं. खेती के लिए पर्याप्त पानी नहीं मिल पता ऐसे में बारिश पर निर्भर होना पड़ता है उस में भी यदि वर्षा समय से नहीं हुई तो फ़सल बरबाद हो जाती है. ऐसे हालत में घर पर खाने को भी मोहताज होना पड़ता है.

बिहार में गर्भवती महिलाओं की बात करें तो इनकी स्तिथि बहुत ही भयानक है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 के रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में हर पांच में से तीन महिलाएं एनीमिया की शिकार है.

इस मामले में बिहार की स्त्रीरोग विशेषज्ञ मालती सिंह बताती हैं कि बिहार की आधी आबादी गांव में बस्ती है जहाँ लोग औरतों के गर्भधारण को एक सामान्य प्रक्रिया मानते हैं. लेकिन गर्भावस्था के दौरान जहाँ नियमित देखभाल, आयरन, फोलिक एसिड गोलियां, और आहार शामिल है. गांव में अभी भी इस पूरी प्रक्रिया को नहीं अपनाया जाता। शहरी क्षेत्रों को छोड़ दे तो गांव में महिलाएं घरों के काम से साथ साथ खेतों में भी गर्भवस्था में काम पर जाती हैं.

वो कहती हैं कि ऐसे बहुत से केस आतें हैं जिसमे महिलाओं में खून की बहुत कमी होती है. कभी कभी तो बच्चा इतना कमज़ोर पैदा होता है जिसको बचाना मुश्किल पड़ जाता है. आज भी बिहार में पैदा होने वाला हर पांचवा बच्चा मौत का शिकार होता है.

यूनिसेफ व मिशन मानव विकास की सर्वे रिपोर्ट में बिहार में 6 महीने से 6 साल तक की उम्र के 44% बच्चे कुपोषण के शिकार है वही 51% महिलाएं एनेमिया रोग से ग्रसित हैं.

बिहार भभुआ सुदूर गाँव में रहने वाली 26 वर्षीय बन्दना देवी कहती हैं, वो दूसरी बार माँ बनने वाली है. उनके गाँव से सरकारी अस्पताल दूर है, आंगवाड़ी वाली दीदी भी भभुआ शहर रहती है. ज्यादा तरह आंगनवाड़ी बंद ही रहता है ऐसे में गर्भावस्था में मिलने वाला लाभ भी नहीं मिलता.

वो आगे कहती हैं कि पति शहर में दूसरे की दूकान पर रंगाई का काम करते हैं. दस लोगों का परिवार है. ऐसे में घर चलने में जो मिलता है वही पेट भरने के लिए काफी है.

सरकार भी यह मानती है कि यहां 1.45 करोड़ परिवार गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं. सरकार के ही द्वारा विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं आंगनवाड़ी, मध्याह्न भोजन योजना, जनवितरण प्रणाली, मातृत्व लाभ, स्वास्थ्य योजना पर 33 गांवों में कराए गए सर्वे के अनुसार उनकी स्थिति अत्यंत असंतोषजनक है.

(Photo By: Fahmina Hussain)

इस मामले में बिहार के रोहतास जिले की अकोढ़ीगोला की आंगनवाड़ी कार्यकर्त्ता नूपुर रानी कहती हैं कि अक्सर समाचार में मध्यान भोजन को लेकर कुछ न कुछ अफवाह छापते रहते हैं. जिसकी वजह से बच्चे आंगनवाड़ी केंद्र आते तो हैं लेकिन खाने से डरते हैं.

बिहार के रोहतास जिले में पड़ने वाले मौना प्रखंड के आंगनवाड़ी केंद्र में पढ़ने वाले चार से पांच साल के बच्चों से बात करने पर वो बताते हैं, “मैडम सिर्फ खिचड़ी ही पकाती हैं. एक दिन खीर मिलता है. रोज-रोज खिचड़ी अच्छा नहीं लगता है.”

हालांकि सरकार की ओर से आंगवाड़ी में मिलने वाला मध्यान भोजन में बच्चों के पौष्टिक आहार और न्यूट्रीशियन के माप दंड के अनुसार प्रतिदिन मिलने वाले भोजन तालिका निर्धारित की गई है.

रोहतास जिले में रहने वाले स्थानीय लोगों के मुताबिक बिहार में आंगनवाड़ी केंद्रों पोषाहार वितरण में जहाँ अनियमितता बरती जाती है. वही गर्भवती और दुध पिलाती माताओं को टेक होम राशन को भी निर्धारित मात्रा से कम दिया जाता है. इतना ही नहीं बच्चों को मध्यान भोजन के नाम पर आधापेट खिचड़ी दिया जाता है ऐसे में बच्चे क्या खाएगें ?

बिहार के डेहरी में निजी संस्थान द्वारा चलाये जा रहे रिहेबिटेशन सेण्टर में काम करने वाले कर्मचारी का कहना कि यहाँ ज्यादातर दिहारी मजदुर के बच्चे आते हैं. उनकी हालत इतनी ख़राब होती है कि समय सीमा के बाद भी उन्हें रखना पढता है. इनका मानना है की कुपोषण की मुख्य वजह गरीबी है. कुपोषण के शिकार बच्चों को ठीक से भोजन नहीं मिल पता जो भोजन मिलता है वो अच्छा नहीं होता है.

बिहार हाल के वर्षों में सड़क, बिजली आदि क्षेत्रों में सफलता हासिल की है, लेकिन शिक्षा और स्वास्थ्य दो ऐसे क्षेत्र हैं जो नीतीश सरकार के सामने चुनौती बनकर खड़े हैं. हालांकि कुपोषण ख़त्म करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार दोनों ही योजनाएं चला रही हैं लेकिन ज़मीनी हक़ीकत कुछ और है.

 

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