कैराना उपचुनाव को मोहब्बत का लिटमस टेस्ट मान रहे है जाट और मुस्लिम

आस मोहम्मद कैफ, TwoCircles.net 

कैराना /शामली : जाटो के बीच इस समय एक वीडियो बहुत अधिक लोकप्रिय है जाटो के चौधरी इससे बहुत खुश है हर चौपाल पर यह आकर्षण का केंद्र है. तीन मिनट की यह वीडियो कैराना के विधायक नाहिद हसन की सभा की है. जिस दिन रालोद प्रत्याशी के तौर पर उनकी माता तबस्सुम हसन ने नामांकन किया था. इस दिन समाजवादी पार्टी और रालोद के तमाम बड़े नेता मंच पर है. इस वीडियो में नाहिद हसन बिल्कुल अपने पिता दिवंगत मुनव्वर हसन की शैली में बोल रहे हैं. गौरतलब है कि भाजपा नेतागण यहां चुनाव प्रचार में कह रहे हैं कि अगर तब्बसुम जीतती है तो पाकिस्तान में दिवाली मनेगी.


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इस वीडियो में नाहिद कहते हैं “क्यों मनेगी दीवाली पाकिस्तान में, दीवाली चौधरी अजीत सिंह के घर बनेगी, चौधरियो के घर मनेगी, चौधरी चरण सिंह साहब के घर मनेगी. नाहिद हसन के पिता मुनव्वर यहां जाटो की पहली पसंद रहे है उनके पिता की मौत के वक़्त जाट नेता सुरेन्द्र तितावी उनके साथ ही थे और घायल हुए थे.

जाट- मुस्लिम एकता

कैराना लोकसभा सीट पर संयुक्त विपक्ष का प्रयोग जाट मुस्लिम एकता के तौर पर सफल होता दिख रहा है . इस लोकसभा उपचुनाव में सवा लाख जाट वोटरों को अपने पक्ष में करने के लिए भाजपा ने 16 जाट विधायको को लगाया है.

रालोद के प्रवक्ता अभिषेक चौधरी हमें बताते है “पूरी हरियाणा सरकार यहां एक लोकसभा क्षेत्र में काम करने आ गयी है. कुल 28 मंत्री घर -घर जाकर वोट मांग रहे हैं. गोरखपुर और फूलपुर ने इनके दिमाग की नसें हिला दी है. कैराना लोकसभा पर हार का सिग्नल मिल गया है. झूठे वायदों वाली बीजीपी सरकार से जनता त्रस्त हो चुकी है किसान परेशान है. प्रधानमंत्री कह रहे हैं गन्ने का भुगतान हो चुका है जबकि यह झूठ है यह चुनाव में जिन्ना को लाते है और हम गन्ने पर रहना चाहते है.”

कैराना लोकसभा सीट पर जाट वोटरों की संख्या 1 लाख से ज्यादा है. समीकरणों को देखते हुए यह इस चुनाव में निर्णायक वोटर साबित होगा. दलित और मुस्लिम पहले ही एकजुट हो चुके है कांग्रेस सपा बसपा के गठबंधन को समर्थन कर रही है जबकि नये राजनीतिक प्रयोग के तौर सपा विधायक की मां को रालोद के टिकट पर लड़ाया जा रहा है ताकि सम्पूर्ण विपक्ष में समन्वय स्थापित किया जा सके. वैसे इस समन्वय स्थापना में हसन परिवार का इतिहास भी काफी मददगार साबित हुआ जैसे नाहिद हसन के दादा अख्तर हसन कांग्रेस (1971) से सांसद रहे है और उनके पिता मन्नवर हसन लोकदल (1991) से विधायक बने और फिर वो सपा से सांसद (2005) रहे जबकि उनकी पत्नी तब्बुसम हसन बसपा से सांसद (2009) बन गई.

बनत के शहनवाज़ अली हमे बताते है कि “यही वजह है हसन परिवार के हर राजनीतिक दल से रिश्ते अच्छे है और इस तरह के प्रयोग के लिए उनका चयन ही सबसे बेहतर है.”

राजनीतिक जीत हार से इतर इस प्रयोग का जाट मुस्लिम एकता पर गहरा असर हुआ है. शामली जनपद की तीनों विधानसभा इसी लोकसभा का हिस्सा है जबकि दो अन्य विधानसभा सहारनपुर जनपद में आती है. 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगो के शामली सबसे अधिक प्रभावित हुआ था यहां बड़े पैमाने पर हिंसा हुई और पुलिस सीमा विवाद में उलझी रही. कैराना में ही दंगा पीड़ितों के सबसे बड़े कैम्प लगे और यहां का मलकपुर कैम्प दंगो पीडितो का सबसे बड़ा कैम्प था. इस सबके बावूजद अब जाट और मुस्लिम यहां करीब आ रहे हैं इसके लिए रालोद मुखिया चौधरी अजित सिंह पिछले तीन महीने से लगातार जाटो के घर जाकर उन्हें दंगे के पीछे राजनीतिक कारणों को समझा रहे थे.

अजित सिंह के मित्र अजमल उर रहमान बताते है “अपना 80वे जन्मदिन मनाने के बाद ही चौधरी साहब ने मुज़फ्फरनगर जाने का इरादा कर लिया और कहा कि जब तक जिंदा रहूंगा जाट मुस्लिम एकता के लिए काम करूंगा इसके लिए उन्होंने गांव गांव दौरे किये अजित सिंह जैसे नेता ने इतनी मेहनत पहले कभी नहीं की थी. कैराना से रालोद के टिकट पर तब्बसुम का चुनाव लड़ना भी इसी प्रकिया का एक हिस्सा है.”

आमजन मानस पर भी इस गठजोड असर हुआ है और जाट और मुस्लिम करीब आ रहे हैं वो एक चारपाई पर बैठ रहे हैं और साथ -साथ हुक्का गुड़गुड़ा रहे है. झिंझाना के बुनियाद अली कहते हैं “जाट और मुस्लिम 2013 के दंगों से पहले तक बहुत अधिक करीब रहे हैं मगर उसके बाद दूरियां बढ़ गई अगर यह चुनाव सचमुच जीत हार से बड़ा बन गया है इस चुनाव में मोहब्बत का लिटमस टेस्ट होगा.”

बुनियाद अली के साथ ही बैठे चौधरी मल्लू सिंह कहते हैं “दंगा कुर्सी हासिल करने के लिए कराया गया और सब जानते है यह किसने कराया बीजीपी आपसी सौहार्द की दुश्मन है अभी जब जाटो मुस्लिमो में मुक़दमा वापसी की बात चल रही थी तो वो मुक़दमे वापसी का सरकारी फरमान लाने लगे सरकारें तो अदालती बदलती रहती है मगर आदमी कू काम ऐसे करने चाहिए कि सामने पड़ने पर उसकी नजरे नीची न हो” .

कैराना चुनाव में पलायन दंगा और एंकाउंटर जैसे मुद्दे प्रचार के केंद्र में है मगर करीब आते जाट मुस्लिम बीजीपी के इरादों पर पानी फेर रहे है हर तरफ यही चर्चा है अपनी मां के प्रचार की कमान संभाल रहे विधायक नाहिद हसन ने ऐलान किया है कि चुनाव के बाद वो दंगो में दर्ज हुए मुकदमों में फैसला करवाएंगे वो जाटो और मुस्लिमो में पहले जैसी बात लाने के लिए पूरी कोशिश करेंगे.

बीजीपी ने कैराना चुनाव में मुजफ्फरनगर के सांसद संजीव बालियान को जाटो को समेटने की जिम्मेदारी सौंपी है वही दूसरी ओर यहां पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के पोते जयंत चौधरी मेहनत कर रहे हैं तितावी के अमित कुमार कहते है “जाटो को रालोद के पक्ष में झुकाव की कई वजह है पहली यह है एक पार्टी के तौर पर रालोद को इससे फायदा होगा जयंत चौधरी को राष्ट्रीय स्तर पर तारीफ मिलेगी मुसलमानो से हमारे रिश्ते बेहतर होंगे और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रालोद मजबूत होगी. बीजीपी का अहंकार ध्वस्त होगा और वो किसानो पर ध्यान देगी वैसे भी जाट मुस्लिम गठजोड़ के दमपर एक समय जनपद की सभी सीट रालोद की थी.”

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