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नाम बदले जाने की सियासत की रोशनी में ‘मेरा नाम मेरा सवाल’ अभियान जो की इंसानी बिरादरी द्वारा आयोजित की गई है. इस अभियान की शुरुआत लखनऊ से हुई है जहाँ अभियान के तहत समाज, सम्मान, सामाजिक न्याय और संविधान पर केंद्रित कई सवाल को उठाया गया.
दरअसल इस कार्यकम के तहत भाजपा और उत्तर प्रदेश की सरकार के शहरों के नाम बदलने को लेकर नाम बदलने की नीति पर आम जनता द्वारा सवाल खड़े किये हैं.
जरी के काम से जुड़े मोहम्मद शब्बू खान ने पूछा कि शहरों के नाम बदलने से क्या होगा. जरी का दो तिहाई से अधिक काम बंद हो गया. इस धंधे से जुड़े सैकड़ों कारीगर बेराजगार हो गए. यह कैसा विकास है जो लोगों से उनकी रोजी-रोटी छीन ले.
निजी कंपनी में कार्यरत मलिक शाहबाज ने कहा कि देश में आम लोगों की सुरक्षा खतरे में है. सबसे ज्यादा असुरक्षित महिलाएं और बच्चियां हैं. लेकिन सुरक्षा का सवाल सरकार की प्राथमिकता से बाहर है. यही हाल रोजगार के सवाल का भी है. इन जरूरी मुद्दों पर सरकारी चुप्पी खतरनाक है. उसे तो जगहों के नाम बदलने की पड़ी है. इसके खिलाफ लोगों को सामने आने होगा.
वही वरिष्ठ राजनैतिक कार्यकर्ता शकील कुरैशी ने कहा कि धर्म की राजनीति कर रही मोदी-योगी को बताना चाहिए कि सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर देश की सबसे बड़ी अदालत के फैसले को आस्था के नाम पर दरकिनार कैसे किया जा सकता है. सरकार संविधान की धज्जियां उड़ाने पर आमादा है. बड़ी कुर्बानियों और कड़ी तपस्या के बाद देश आजाद हुआ और संविधान ने धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक ढांचे का निर्माण किया. जन विरोधी सरकार इस ढांचे को ध्वस्त करने में लगी है.
पटरी दूकानदार भूपेंद्र ने कहा कि किसी का उद्धार नहीं हो रहा. केवल देश की लुटिया डुबाने का काम हो रहा है. हसनैन अब्बास ने कहा कि जगहों के नाम से क्या दिक्कत है. जहां का जो नाम है, उसे वैसा ही रहने दिया जाना चाहिए. जो नाम बचपन से सुनते आये हैं, उसकी जगह नया नाम जुबान पर कैसे चढ़ेगा.
इंसानी बिरादरी से जुड़े उन्नाव के किसान मुर्तजा हैदर ने कहा कि नाम बदल से आपाधापी मचेगी. करोड़ों रूपये स्वाहा होंगे. इससे जनता का क्या भला होगा. इस फिजूलखर्ची का बोझ उसे ही उठाना होगा. यह देश का और हमारा दुर्भाग्य है.
इंसानी बिरादरी के वीरेंद्र कुमार गुप्ता ने कहा कि स्वच्छता के नाम पर बड़े-बड़े सरकारी कार्यक्रम हैं, इसके लिए पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है. लेकिन जमीन पर कुछ नहीं हो रहा. गरीब बस्तियां गंदगी और उससे पैदा रोग-बीमारी से बेहाल हैं. सरकार को उनकी सुध नहीं. यह गरीबों के साथ भेदभाव है. सोचने की बात है कि शहरों का नाम बदल जाने से गरीबों को क्या मिलेगा.
अभियान के दौरान निजी बैंक में कार्यरत अभिनव सिंह ने कहा कि नोटबंदी ने गरीब आदमी समेत छोटे-मंझोले व्यापारियों तक को तबाह करने का काम किया. विकास में निवेश के नाम पर मोदी ने धुआंधार विदेश यात्राएं कीं लेकिन देश की जनता को उसका लाभ नहीं मिला. भला हुआ तो केवल कारपोरेट का. खेती-किसानी चौपट हो गयी और किसान की मेहनत मिट्टी के मोल हो गयी. राजनीति में व्यवस्था नहीं, व्यवस्था में राजनीति हावी हो गयी.