आस मोहम्मद कैफ| नॉएडा/सहारनपुर/मुजफ्फरनगर -TwoCircles.net
9 मई 2017 को सहारनपुर में शब्बीरपुर हिंसा के विरोध में सड़क पर उतरी भीम आर्मी के उग्र प्रदर्शन के बाद एक दर्जन से ज्यादा पत्रकारो की बाइक आग के हवाले कर दी गई,मीडिया के लोगो पर हमला हुआ और कई पत्रकारो को जान बचाकर भागना पड़ा,इसके बाद पत्रकार डीएम आवास पर धरने पर बैठ गए और अपनी जलाई गई मोटरसाइकिल के मुआवज़ा मांगने लगे.किसी भी प्रदर्शन में यह एक नई बात थी जैसे प्रदर्शनों में मीडिया के लोगो को हमेशा से ‘सेफ ज़ोन’ मिलता रहा है, स्थानीय पत्रकार शोएब के अनुसार जिन गाड़ियों पर प्रेस लिखा हुआ था उन्हें कसदन(जानबूझकर) निशाना बनाया गया जबकि अन्य गाड़ियों को छुआ भी नही गया.
बात जाहिर हो रही है कि दलित प्रदर्शनकारी स्थानीय मीडियाकर्मियों से नाराज़ थे वो उनके द्वारा की जा रही रिपोर्टिंग से खार खाये हुए थे,इसके बाद कोई स्थानीय पत्रकार दलितों के गाँव में जाकर रिपोर्टिंग करने की हिम्मत नही कर सका,ऐसा क्यों हुआ यह हमें उस प्रदर्शन में शामिल रहा एक दलित युवक बताता है” दलितों पर अत्याचार की खबरें नही लिखी जा रही थी,वो मुश्किल में थे मगर उन्ही की गलती काढ़ी(निकाली) जा रही थी,हमारे समाज के लोग मीडिया नही है सब उनकी ही बात करते है,समाज के लोग इनकी लगातार छप रही एकतरफा खबरों से तिलमिला गये इसलिए वो प्रतिक्रिया हुई .”
दलितों के चिंतक दयाचंद भारती के अनुसार ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि मीडिया में दलितों का प्रतिनिधित्व न के बराबर है चूँकि उनके समाज का आदमी ख़बर नही लिखता है इसलिए ख़बर के उसके पक्ष में न होने की सम्भावना अधिक रहती है.दलितों में पत्रकार बनने की ललक जोर मार रही है.यह स्थिति उनकी उपेक्षा से पैदा हुई है.
दलितों के नोजवानों ने मीडिया के बढ़ते रुतबे और जरुरत को समझा है और पत्रकारिता की पढाई शुरू की है वो समझ रहे है कलम से जवाब देने के लिए मीडिया महत्वपूर्ण माध्यम है,मुजफ़्फ़रनगर में पत्रकारिता की पढाई कराने वाले शिक्षक रवि गौतम (46)कहते है “पिछले कुछ सालों से पत्रकारिता की पढाई करने वाले दलित छात्रों की संख्या में निश्चित इजाफा हुआ है,वो मेरे सरनेम(गौतम) की वजह से मुझे भी दलित समझते है और बताते है कि वो भी ‘आपसी’ है,हमारे कॉलेज में ऐसे युवाओं की संख्या डेढ़ दर्जन से भी ज्यादा है हालाँकि कुछ को मैं जानता भी नही हूँ,इनमे सीखने की ललक ज्यादा है”.
अभिषेक (19) पत्रकारिता के दूसरे वर्ष का छात्र है वो शामली के मखियाली का रहना वाला है,शामली में पत्रकारिता का कोई स्कूल नही है इसलिए वो मुजफ़्फ़रनगर में एक किराये के मकान में रहता है और यहाँ के एसडी मैनजमेंट कॉलेज में पढ़ता है,अभिषेक कहता है”मैंने राष्ट्रीय स्तर पर बहुत नाम खोजने की कोशिश की तो मुझे कोई बड़ा नाम नही मिला,अब जब हमारे लोग ही नही है तो हमारी बात कहेगा कौन!मैं अपने समाज को लेकर चिंतित रहता हूँ,कलम की ताकत से ही बाबा साहब सविंधान लिखकर हमें हक़ दिलाया है,मुझे लगता है कि दलितों के युवाओं को मीडिया के माध्यम से अपनी बात रखनी चाहिए मैं भी यही कर रहा हूँ,साथ ही हम उन लोगो को जवाब भी देना चाहते हैं जो यह कहते हैं कि जिन क्षेत्रों में आरक्षण नही है वहां दलित समाज के लोग संघर्ष करते है”.
यह कहानी एक अभिषेक की नही है पत्रकारिता के एक अन्य छात्र अर्जुन (21)ने अपनी जिंदगी के 8 साल मजदूरी की है और उन्होंने सीधे सातवीं कक्षा में दाखिला लिया अर्जुन भी मुजफ़्फ़रनगर के पास के ही एक गाँव के है वो बताता है “मेरे पिता अब मजदूरी करते है और यह मैं करता रहा हूँ,इसके लिए मुझे 100 रुपए रोज मिलते थे,अब भी कभी-कभार ऐसा करना पड़ता है,मुझे लिखना अच्छा लगता है और मैं कविताएं लिखता रहता हूँ, मैं पहली बार स्कूल 12 साल की उम्र में गया जब मुझे सीधे सातवीं में दाखिला मिला, उसके बाद से मैं लगातार पढ़ रहा अब मैं बीजेएमसी के पहले साल का छात्र हूँ,मेरे अंदर ही अंदर मेरे समाज और मुझे लेकर एक लड़ाई होती रहती है जिसे मैं कलम के जरिये दुनिया के सामने रखना चाहता हूँ”.
अर्जुन इस तरह का अकेला लड़का नही है निखिल(23) की कहानी और भी अनोखी है वो भी मुजफ़्फ़रनगर जनपद का ही रहने वाला है और वीडियो जर्नलिस्ट बनना चाहता है उसने दो बार पढाई छोड़ दी पहले दसवीं करने के बाद और दूसरी बार बारहवीं के बाद पहले 2 साल के लिए और अगली बार 7 साल के लिए,इस बीच वो फोटोग्राफी करता रहा,निखिल बताता है कि वो छह भाई-बहनों में तीसरे नम्बर पर है पिता मजदूरी करते है इसलिए मुझे घर में पैसा कमाने में सहयोग करने के लिए बार-बार पढाई छोड़नी पड़ी,जैसे ही स्थिति थोड़ी बेहतर होती मैं फिर से पढाई शुरू कर देता,
निखिल कहते है कि मैं कुछ बनना चाहता हूँ ताकि समाज में हमें हिकारत से देखने की प्रवर्ति बंद हो जैसे मुझे या तो वकील होना चाहिए या फिर पत्रकार ताकि सम्मान मिले,
एक अन्य युवक आकाश (19) के मुताबिक वो पत्रकारिता की पढाई इसलिए कर रहे हैं क्योंकि पत्रकारो का सब अफसर नेता सम्मान करते है,उन्हें यह सम्मान प्रभावित करता है।
नोयडा में पत्रकारिता की पढाई कर रहे श्याम कुमार(21)के मुताबिक अब अपनी बात को कलम के माध्यम से जोरदार तरीके से रखना का अपना फायदा है, दलित नोजवानों को सोशल मीडिया पर भी सक्रिय होना होगा।
https://www.youtube.com/watch?v=xAdLeZdLfk4&feature=youtu.be