सादिक़ ज़फ़र
4 सितम्बर को नजीब अहमद के केस की सुनवाई दिल्ली उच्च न्यायलय में थी, मामला देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई के पास है। सीबीआई ने मंगलवार को दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया कि उसने जेएनयू छात्र नजीब अहमद के मामले को बंद करने की रिपोर्ट दर्ज करने का फैसला किया है। एजेंसी ने इस मामले में जांच पूरी होने की दलील दी जबकि नजीब की माँ फ़ातिमा नफीस के वकील कॉलिन गोंसाल्वेस ने जवाब में अपना विरोध दर्ज करते हुए कहा कि सीबीआई आरोपी छात्रों से पूछताछ नहीं कर रही है जो कथित रूप से ABVP से जुड़े हुए हैं।
केस के दौरान जिस तरह से सीबीआई ने जेएनयू छात्र नेता उमर ख़ालिद और युनाइटेड अगेंस्ट हेट के नदीम ख़ान को बतौर गवाह एक ऐसे केस मे पेश होने के लिए नोटिस भेजा जिस घटना का ज्ञान उमर को घटना बीतने के चौबीस घंटे बाद हुआ और नदीम को तक़रीबन तीन दिन बाद। यह नोटिस अपने आप में इस केस को लेकर सीबीआई की गुणवत्ता पर सवाल खड़े करती है।
19वीं शताब्दी के राजनीतिक विचारक एलेक्सिस डी टॉकविले और जॉन स्टुअर्ट को पढ़ें तो बहुसंख्यक आबादी के अत्याचारों की धारणा का पता लगता है जो कि एक ऐसी स्थिति को बताता है जिसमें बहुसंख्यक आबादी लोकतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से वंचित अल्पसंख्यक पर अत्याचार और अपनी इच्छा को लागू करती है।
दिल्ली की चकाचौंध, लालबत्ती, पुलिस साईरन और सीसीटीवी के बीच से जेएनयु का एक छात्र अक्टूबर 2016 से ग़ायब है, वो भी एक ऐसे समय में इतने लम्बे अरसे से ग़ायब है कि जब जांच एजेंसियों की दिलचस्पी गोश्त किस जानवर का है ये जान्ने में ज़्यादा है, और मोबाइल कॉल रिकार्ड्स की फॉरेंसिक लैब से जांच नहीं हो पाती। ‘Lie Detector’ टेस्ट अब्दुल वाहिद शेख़ का तो हो सकता है पर इन संघ से जुड़े छात्रों का नहीं।
ये बातें जानना आज इस लिए ज़रूरी हैं क्यूंकि नजीब पर जो हमला हुआ वो हमला उसी सोच का हमला है कि जिसके चलते कश्मीरी छात्र जब कश्मीर से निकल कर हिंदुस्तान में पढ़ने के लिए आते हैं तो उनको राष्ट्रवाद के नाम पर निशाना बनाया जाता है। ये वही हमला है जिसके चलते इलाहाबाद में दलित छात्र दिलीप सरोज को निशाना बनाया गया, जिसके चलते दलित रिसर्च स्कॉलर रोहित वेमुला को एहसीयू में निशाना बनाया गया।
जहाँ छात्रों पर हमले बढ़ रहे हैं वहीं उत्तर प्रदेश की सत्ता में बैठे अजय सिंह बिष्ट ‘योगी आदित्यनाथ’ हों या फिर राज्य सभा में बैठे अमित शाह हों जिन पर फ़र्ज़ी एनकाउंटर करवाने के आरोप हैं , जांच एजेंसियों का रवैया देख कर ये कहने में कोई संकोच नहीं है कि इन ‘हार्ड-कोर’ अभियुक्तों को प्रशासनिक संरक्षण हासिल है और नजीब के केस में जांच एजेंसियों का रवैया देख कर ये कहना कोई मुश्किल नहीं कि संघ से जुड़े इन छात्रों, एबीवीपी के इन गुंडों को भी प्रशासनिक और इनके आकाओं का राजनितिक संरक्षण हासिल है जिसके चलते ये लोग पूरी आज़ादी से कॉलेज कैंपसों में नफरत के बीज इतनीं आसानी से बो रहे और छात्रों को अपनी दहशत का निशाना बना रहे हैं।
उधर नजीब की माँ फातिमा नफीस की नम आँखों को देखकर यक़ीनन कभी बहुत बेबसी सी लगती है तो कभी उनकी बातें ज़ुल्म के खिलाफ इन्साफ के लिए लड़ने में हिम्मत भी देती हैं। ठीक उसी तरह जैसे गुजरात दंगों में मारे गए एहसान जाफ़री की पत्नी ज़किया जाफ़री और रोहित वेमुला की माँ राधिका वेमुला इन्साफ की हर लड़ाई में संघर्ष करते छात्रों के लिए प्रेरणा का स्रोत मानी जाती हैं।
सीबीआई के दफ्तर में बैठे अफसरान हों या दिल्ली पुलिस के जवान, इनसे बस इतना ज़रूर कहिये कि ये जाएं और अपने बच्चों की तरफ नज़र करके देखें, फातिमा नफीस की बेचैनी समझ में आने लगेगी, और इस माँ की आँखों से निकलने वाले आंसूं यक़ीनन इन्हें चैन से सोने नहीं देंगे। ये बातें इसलिए समझना ज़रूरी है कि हमला करने वाली भीड़ के निशाने पर नजीब तो था पर अगर खामोश रहे तो कल कोई और होगा और ये तादाद बढ़ती ही चली जाएगी।
तमाम जज़्बाती बातों से हटकर, बतौर नागरिक नजीब के लिए आवाज़ उठाने वाले हर छात्र, इन जांच एजेंसियों से सवाल करना चाहते हैं कि आप हमारे रसोई में घुस जाते हैं सिर्फ ये देखने के लिए कि हमने क्या खाया है क्या नहीं, फ्रिज तलाशते हैं तो फिर ऐसी क्या वजह है कि वही आप जो हमारे लिए इतने सख्त हैं इन संघ से जुड़े छात्रों पर हाथ डालने से भी डरते हैं। आपका ये डर कमज़ोर तबक़े को सरकार और पूरी लोकतान्त्रिक व्यवस्था से बहुत दूर कर देगा जो कि लोकतंत्र के स्वास्थ और सामाज के विकास के लिए कोई अच्छी बात नहीं होगी।
और कार्यवाही तो उन लोगों पर भी होनी चाहिए, उन अखबारों और वेरिफाइड ट्विटर अकाउंट चलाने वाले उन चेहरों के खिलाफ भी जिन्होंने नजीब के बारे में झूठ फैलाकर इस केस को डायलूट करने की कोशिश करी। पूरा आईटी सेल लगा हुआ है झूठी बातों को फैलाने में कि किसी तरह भाजपा के छात्र संघ से जुड़े ये छात्र नजीब पर किये हुए हमले से बच जाएँ
पर डर जिस बात का है कि मोदी से लेकर योगी तक नफरत फैलाओ सत्ता हाथियों का जो खेल चल रहा है उसमें कहीं ये संघ से जुड़े छात्र अगर सत्ता के गलियारों तक पहुँच गए तो यक़ीनन इनके आकाओं पर लगे केस की तरह ये केस भी ख़त्म हो जायेगा और अगर केस किसी ईमानदार जज के पास हुआ तो वो जज भी, कम से कम पिछले चार सालों में तो यही सब देखने को मिला है।
इसी लिए आज के वक़्त और माहौल को देखते हुए ज़रुरत इस बात की है कि नजीब के लिए उठने वाली हर आवाज़ को हिन्दुस्तान के कोने कोने में बसने वाले कॉलेज कैंपसों तक ले जाया जाये। इस लड़ाई को नेशनल स्टेज पर एक मूवमेंट बनाकर लड़ने की भी ज़रुरत है जिससे कि एक माँ को उसका बेटा मिल सके और इन संघ से जुड़े छात्रों को जेल के पीछे डाल कर इनकी इस आतंकी हरकत की सजा इन्हें मिल सके। और ये हमारी बतौर नागरिक ज़िम्मेदारी भी है और संवैधानिक हक़ भी।
सादिक़ ज़फ़र, अर्बन प्लानर, आर्किटेक्ट, लेखक, संयोजक, गोण्डा विकास मंच,, गोण्डा (उत्तर प्रदेश)