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ठीक 10 साल पहले, एनकाउंटर के बाद सन्नाटा पसर गया था, जिसमें दो संदिग्ध आतंकियों समेत एक पुलिस वाले की मौत हो गई थी लेकिन सालों बाद बाटला हाउस अभी भी उस एनकाउंटर पर हज़ारों सवाल लिए खड़ा हैं। इन्ही के मद्दे नज़र 19 सितम्बर यानी आज बाटला हाउस फर्जी एनकाउंटर की दसवीं बरसी पर यूपी प्रेस क्लब लखनऊ में रिहाई मंच द्वारा ’सदमा, साजिश और सियासत: बाटला हाउस के दस साल‘‘ शीर्षक रिपोर्ट जारी की गई।
इस रिपोर्ट में बाटला हाउस फर्जी मुठभेड़ के बाद विभिन्न राज्यों और जनपदों से गिरफ्तार नौजवानों के मुकदमों की ताज़ा स्थिति, घरेलू हालात, उन्हें अदालती दांवपेंच में उलझा कर कैदी बनाए रखने की साज़िशों पर विस्तार से चर्चा की गई। गिरफ्तार और लापता नौजवानों से सम्बंधित व्यक्तिगत जानकारी को इस रिपोर्ट में पेश किया गया।
रिहाई मंच नेता मसीहुद्दीन संजरी ने आंकवाद के नाम पर किये गिरफ्तार नौजवानो के परिवार वालो में बारे में बताते हुआ कहा, बाटला हाउस के बाद सूत्रों के जरिए आने वाली अपुष्ट सूचनाओं और अपने बच्चों के बारे में सोच-सोचकर अधिकतर परिजन गहरे सदमे में पहुंच गए और दिल की बीमारी के शिकार हो गए। साजिद छोटा के पिता डाक्टर अंसारुल हस्सान बेटे की मौत की खबर के बाद बुत बन गए तो वहीं मां ने बिस्तर पकड़ लिया। आखिरकार डाक्टर साहब दुनिया का अलविदा कह गए। आरिफ बदर के पिता बदरुद्दीन चल बसे तो वहीं उसकी मां का दिमागी संतुलन बिगड़ गया।
उन्होंने बताया कि बाटला हाउस के बाद अब तक आज़मगढ़ के 15 नौजवानों को इंडियन मुजाहिदीन का आतंकी कह कर गिरफ्तार किया जा चुका है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि जहां तक मुकदमों की स्थिति का सवाल है तो दिल्ली में अभी लगभग आधे ही गवाह गुज़रे हैं। जयपुर में तेज़ी से मुकदमें की कार्रवाई आगे बढ़ी है और एक साल में फैसला आने की उम्मीद की जा सकती है। अहमदाबाद में, जहां सबसे अधिक 3500 के करीब गवाह हैं। इस हिसाब से मुकदमा वर्षों तक चलता रहेगा इस तरह उसे कैद में रखना अन्यायपूर्ण होगा इसलिए उसे ज़मानत दी जाए।
रिपोर्ट में आज की परिस्थितियों में अदालती मामलों में सत्ता संरक्षण प्राप्त तत्वों की कारस्तानी और इंसाफ ही राह में रुकावटों के उल्लेख के साथ उत्तर प्रदेश कचहरी धमाकों में हूजी के साथ इंडियन मुजाहिदीन को जोड़कर उसे दोनों संगठनों की संयुक्त कार्रवाई बताए जाने पर उठे सवालों पर भी चर्चा की गई है।
इस सम्मलेन में वरिष्ठ पत्रकार भारत भूषण शामिल रहें उन्होंने सभा को सम्बोधित करते हुए देश की सरकार और उनकी जनविरोधी नीतियों के विषय में चर्चा की। उन्होंने कहा कि जन अधिकारों की बात करने वालों को जेल में ठूंसा गया। फिर भी आज स्थिति अलग है, नरेंद्र मोदी जैसा असामान्य व्यक्ति प्रधानमंत्री है।
उन्होंने देश के ताज़ा हालत के विषय में कहा कि साम्प्रदायिकता और आर्थिक गैर बराबरी बढ़ी है, दलितों, आदिवासियों पर जातीय हमलों में इज़ाफा हुआ है। छुपी हुई साम्प्रदायिकता को हिंदुत्व के नाम पर अब वैधानिकता मिल गई है।
उन्होंने मीडिया पर कटाक्ष करते हुआ कहा कि मीडिया का वह हिस्सा भी ज़िम्मेदार है जिसे ’गोदी मीडिया‘ के नाम से जाना जाने लगा है। साम्प्रदायिक और जातीय हिंसा, माॅब लिंचिंग और यहां तक कि बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों के मामले में भी मीडिया के एक वर्ग की भूमिका निम्न स्तरीय और पक्षपातपूर्ण रही है।
दस्तक पत्रिका की सम्पादक और मानवाधिकार नेत्री सीमा आज़ाद भी इस कार्यकर्म में शामिल हुई। सीमा आज़ाद ने दलित समाज पर सत्ता पोषित तत्वों द्वारा सुनियोजित हमला और उसके बाद चंद्रशेखर समेत दलितों की गिरफ्तारी व रासुका लगाना सत्ता के उसी फासीवाद को दर्शाता की बात कही। साथ ही उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यकों खासकर मुसलमानों को जेलों में डालना और फर्जी मुठभेड़ों में उनकी हत्या करना पहले की सरकारों में भी होता रहा है। कई बार नीतिगत स्तर पर भी हुआ है जिसे इस मनुवादी-फासीवादी सरकार ने और तेज़ किया है। बाटला हाउस फर्जी मुठभेड़ उसका उदाहरण है।
रिहाई मंच अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने कहा कि दस साल पहले जो संघर्ष बाटला हाउस फर्जी मुठभेड़ के बाद सड़कों पर खड़ा हुआ वह आज इस मनुवादी फासिस्ट व्यवस्था के खिलाफ सहारनपुर से लेकर भीमाकोरेगांव तक आवाज़ बुलंद कर रहा है।