फोटो सीरीज़ – लोकसभा चुनाव

image used for representational purposes only. Courtesy : businesstoday
आस  मुहम्मद कैफ, TwoCircles.net
Twocircles.net की सीरीज में ऐसे लोगों का तज़किरा किया गया है जो भारत मे हो रहे लोकसभा चुनाव में वोट कर रहे है.इस चुनाव में उनके क्या मुद्दे है!
वो क्या सोच कर वोट करने वाले है!देश के राजनीतिक मामलों पर उनका क्या कहना है!उनका वोट डालने का अनुभव कैसा रहा है और वो कैसी सरकार चुनाव चाहते हैं!
जबुन्निसा
जबुन्निसा-52
अमन ओ अमान के लिए वोट करना चाहती है जेबुन 
जेबुन खुद कभी स्कूल नही गई है.पढ़ाई के नाम पर वो कुरान पढ़ लेती है.उनके चार बच्चे है.2 लड़के और 2 लड़कियां.इन चार में तीन ने वकालत की पढ़ाई की है जबकि चौथा सामाजिक कार्यकर्ता है.जाहिर है घर एक मिनी संसद बना रहता है.बच्चों की आपसी बातचीत सुनकर जेबुन की सियासी समझ काफी विकसित हो गई है.
उन्होंने पहली बार वोट 30 पहले किया था.जेबुन के मुताबिक हर चुनाव में नेताओं ने अलग अलग वादा किया मगर किसी ने भी उसे निभाया नही.मगर मोदी जितना शोर उन्होंने किसी का नही सुना.लोग या तो मोदी के ख़िलाफ़ रहते हैं अथवा उसके पक्ष में मगर उसके बारे में बात होती है.अब तक सरकारें वादा खिलाफ़ी करती थी मगर यह पहली सरकार है जिसने लोगो के बीच मे भेदभाव पैदा किया है.जेबुन बिजनोंर लोकसभा का हिस्सा है.यहां लड़ रहे प्रत्याशियों का नाम वो नही जानती मगर वो कहती है कि “अमन ओ अमान के लिए मोदी को अगला पीएम नही होना चाहिए.”
वो बताती है कि उनकी दोनों बेटियों ने वकालत की पढ़ाई की है वो खुद नही पढ़ी मगर यह समझती है कि पढ़ना कितना जरूरी है!इसलिए वो यह भी समझती है कि मुल्क के लिए आपसी भाईचारा कितना जरूरी है!मोदी से सबसे बड़ा नुकसान आपसी भाईचारे का है.अब बहुत से लोग खुद को महफूज़ महसूस नही करते.
ज़ाकिर राणा-55
कारोबारी ज़ाकिर राणा के मुताबिक अब मुद्दों पर नही हो रहा वोट
मुजफ्फरनगर लोकसभा के ज़ाकिर राणा एक चर्चित परिवार से है.55 साल के ज़ाकिर राणा मानते हैं कि अब लोग मुद्दों पर वोट नही करते हैं उनकी माने तो “पिछले कुछ सालों में उनका कारोबार ठप हो चुका है.नोटबंदी और जीएसटी ने उन जैसे सैकड़ो व्यापारियों की फैक्टरी बंद करवा दी है वो बुरी तरह से कर्ज में डूब चुके हैं और यह सब एक नामसमझी और बिना होमवर्क किये फैसलों के कारण हुआ है.मगर इसके बावजूद अब चुनाव के नजदीक एक समूह यह सब भूल गया है और सिर्फ एक समुदाय से नफरत को आधार बनाकर वोट करने की बात कह रहा है.
जाकिर कहते है”यह नफरत पहले से इनके अंदर थी अब तो बस बाहर आई है रोटी कपड़ा मकान पर कोई सवाल नही करता.रोजगार और महंगाई पर कोई बात नही कर रहा. बस एक परस्पशन बना दिया गया है जिसकी जड़ में जाति और मजहब है.यह देश और तररकीपसन्द लोगो के लिए अच्छा नही है.मुजफ्फरनगर में सैकड़ो कारखाने बंद हो चुके है.हजारों लोग बेरोजगार गए मगर सरकार चुनने के लिए पांच साल बाद आने वाले चुनाव में वोट हिन्दू-मुस्लिम पर कराने की योजना चल रही है.
आफताब आलम-38
 
पढ़े लिखे नोजवान भी बंट चुके हैं किसी की समझ मे कुछ नहीं आता
आफताब आलम सामाजिक कार्यकर्ता है वो बताते हैं कि पिछले एक माह से चुनावी मॉड आया है.लोगो में वोट पर चर्चा करनी शुरू की तो वो महसूस कर रहे हैं कि उनके कुछ दोस्तों के  नजरिए में बदलाव आया है अब यह एक दिन में तो नही हो गया.मगर अब चुनाव के नज़दीक उनका नजरिया स्पष्ट दिख रहा है कल वो बेरोजगारी,महंगाई, नोटबंदी जैसे मामलों पर विचार रखते थे अब बातचीत नके केंद्र में पाकिस्तान और मुसलमान आ गया है. आफताब कहते हैं “उन्होंने अपनी जिंदगी में पांच बार वोट दिया है और कभी हिन्दू मुसलमान समझ कर किसी को वोट नही दिया अब तो बड़े नेताओं का प्रचार का केंद्र ही यह है.वो बताते हैं कि खुलेआम प्रत्याशी और उनके समर्थक और उनके नेता धुर्वीकरण कर रहे हैं मगर चुनाव आयोग चुप रहता है.देश की संस्थाओं की छवि ध्वस्त हो चुकी है.
अपनी तरह का अलग ही गौरव गीत चल रहा है वो राजनीतिक नही है मगर देश को झूठे नेताओं से परहेज़ करना चाहिए.वो अपना वोट विकसित सोच वाले को ही देना चाहते हैं.
नावेद अहमद -20
अपना पहला वोट सामाजिक न्याय को समर्पित करना चाहते हैं नावेद 
मेरठ लोकसभा के नावेद 20 साल का है और वो पहली बार वोट करेगा.इलाहाबाद में रहकर न्यायिक परीक्षा की तैयारी कर नावेद कहते हैं”मैं सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध पहला वोट करूंगा.मैं समाजवाद की विचारधारा का हिमायती हूँ.नावेद के मुताबिक आजकल के नेताओं में अखिलेश यादव गाय गोबर और हिन्दू मुसलमान की बात नही करते.जबकि यहां ऐसे राजनीतिक दल सत्ता पर काबिज है जो जनता को भटकाने वाले बिना मतलब के मुद्दों पर चर्चा करते हैं जिनका साइडइफेक्ट लम्बा चलने वाला है.पूरे पांच साल लोगो इस नुकसान को झेला है और हाल फिलहाल इसका समाधान नजर नही आता.अगर सरकार भी बदलती है तो इस नजरिए के बदलाव में वक़्त लगेगा. नावेद इस नफरत की राजनीति से तंग है उन्हें अपना भविष्य खतरे में दिखाई देता है वो बताते हैं कि उनके पिता एक टैक्सी ड्राइवर है उनके परिवार को उनसे कुछ बनने की उम्मीद है मगर अब देश में अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति घृणा फेल रही है और इससे निश्चित तौर पर भयभीत है.अक्सर वो ट्रेन में  अपना नाम ‘सोनू’बताते हैं.डर का माहौल हर तरफ है.नावेद के मुताबिक वो अपना वोट इसी डर को हराने के लिए देना चाहते हैं उनके मुताबिक देश मे एक बडे समुदाय के मन में दूसरे समुदाय के लिए नफरत भर दी गई है.

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