By आस मोहम्मद कैफ़, TwoCircles.net

लखनऊ- शनिवार को आयोजित किए गए पसमांदा मुस्लिम समाज के 8वें राष्ट्रीय अधिवेशन में CAA का मुद्दा छाया रहा।यहां वक्ताओं ने सिटिज़नशिप अमेंडमेंट एक्ट की जमकर आलोचना की।कहा गया है गरीब औऱ पिछड़े होने की वजह से एनआरसी में सबसे ज्यादा उत्पीड़न पसमांदा मुसलमानों का होगा।


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पसमांदा मुस्लिम समाज नाम वाला यह संगठन  देश के पिछड़े वर्गों के मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करता है।शनिवार को लखनऊ में इसका राष्ट्रीय अधिवेशन था जिसमे देश भर के कार्यकर्ताओं ने शिरकत की थी।

यहां पसमांदा मुस्लिम समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व राज्यमंत्री अनीस मंसूरी ने कहा कि हाल ही में लोकसभा और राज्य सभा से पास हुआ नागरिकता कानून भारतीय संविधान की मूल भावना के विपरीत है।यह कानून मुसलमानों में खासकर पसमांदा मुसलमानों को देश से दोयम दर्जे का नागरिक बनाने की एक सोची समझी साजिश है। 

 

 

इस अधिवेशन में देश के विभिन्न राज्यों से आये पसमांदा मुस्लिम समाज के पदाधिकारियों ने भाग लिया।पूर्व मंत्री अनीस मंसूरी ने यहां नागरिकता संशोधन बिल की जमकर आलोचना की और कहा कि नागरिक संशोधन कानून में सिर्फ मुसलमानों को बाहर रखना केन्द्र सरकार की मुस्लिम विरोधी मानसिकता दर्शाती है।इस मामले में देश के राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट को इसका संज्ञान लेना चाहिए। 

 

अनीस मंसूरी ने कहा कि देश के मुसलमानों को इस बात पर कोई एतराज नही है कि नागरिकता संशोधन कानून में हिन्दुओं अथवा अन्य धर्मो के लोगों को शामिल किया गया है।उन्होनें कहा कि मुसलमानों को एक षड़यंत्र के तहत सूची में शामिल नही किया गया है।अनीस मंसूरी ने कहा कि आज पसमांदा समाज अपने ही देश में अपने आप को उपेक्षित महसूस कर रहा है और अपने हक़ व हुक़ूक़ के लिए यहां इकट्ठा हुए है। अनीस मंसूरी ने पिछड़ो व दलित मुस्लिम जातियों के आरक्षण पर कहा कि भारत सरकार ने अनुच्छेद 341ए के पैरा 3 पर लगे धार्मिक प्रतिबंध के सम्बन्ध में दिनांक 01-11-2019 को अपना जवाब सुप्रीम कोर्ट में दाखिल कर दिया है।इससे पहले की सरकारें जवाब दाखिल करने में आना-कानी कर रही थीं, लेकिन ये पसमांदा मुस्लिम समाज की हिक़मत अमली थी, जो सरकार ने जवाब दाखिल कर दिया है। अब आगे कोर्ट में सुनवायी जारी हो सकेगी।पसमांदा मुस्लिम समाज का मानना है कि टकराव से नही हिकमत से काम लेना है।सरकारें 341 को लेकर 70 साल से भूल कर रही है, इस गलती के कारण पसमांदा आबादी मुख्य धारा से कट गयी।

इस अधिवेशन में चेन्नई से आये हारून अंसारी ने कहा कि मौजूदा दौर में साम्प्रदायिक असमानता बढ़ गयी है, जिसे रोकना बेहद ज़रूरी हो गया है। सरकार की गलत नीतियों के कारण पसमांदा मुसलमानों के रोज़गार व व्यापार, कारीगरी और दस्तकारी चैपट हो गयी है और इसके मुकाबले अपना व्यापार व रोज़गार स्थापित नही हो पा रहा है। हमारे बीच ऐसी व्यवस्था होनी चाहिये जो पसमांदा मुसलमानों को उद्यमी बनाने में सहयोग करे। हिन्दू दलितों के लिये तमाम कानून बने है लेकिन दलित मुसलमान को इस कानून में जगह नही दी गयी है।पसमांदा मुसलमानों के कारोबार को खड़ा करने के लिये व्यापारिक संगठन बनाने की आवश्यकता है। 

 

तेलंगाना के शकील मंसूरी ने कहा कि पसमांदा मुसलमान अभी तक दलित मुस्लिम घोषित होने से महरूम है। उन्होंने कहा कि सरकार को 341/3 पर सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मुकदमो में प्रतिदिन सुनवाई कराकर न्याय दिलाने का कार्य किया जाये। 

 

संगठन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष महबूब आलम अंसारी ने भी केंद्र सरकार द्वारा लाये नागरिकता संशोधन बिल को काला कानून बताया और कहा कि देश की मौजूदा सरकार मुसलमानों को मानसिक रूप से उत्पीड़ित करने के बहाने ढूंढ रही है।कैब मुसलमानों के लिए बहुत बुरा साबित होगा।यह देश संविधान से चलेगा और यह कानून संविधान के मुताबिक नही है।अगर गहराई से समझा जाये तो यह संविधान में पहली सेंध है।हिंदूवादी ताक़तों ने इस इस देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने का सपना देखा था जिसे वो पा लेना चाहते हैं।देश का धर्मनिरपेक्षता का स्टेटस खतरे है।यह सिर्फ मुसलमानों की लड़ाई नही है बल्कि हर गांधीवादी विचार वालों को भी साथ आना चाहिए।पसमांदा मुसलमान चूंकि सबसे कमज़ोर और गरीब है इसलिए वो एनआरसी से सबसे ज्यादा प्रभावित होगा।

 

गौरतलब है फारसी भाषा के शब्द पसमांदा का मतलब सबसे पिछड़ा हुआ होता है।पसमांदा मुस्लिम समाज नाम वाला यह संगठन पिछड़े मुसलमानों के लिए सँघर्ष करने का दावा करता है।इनकी सबसे बड़ी मांग सँविधान की धारा 341 से धार्मिक प्रतिबंध हटाने की है।

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