फ़हमीना हुसैन, TwoCircles.net
स्कूल, जहाँ धर्मनिर्पेक्षिता का पाठ पढ़ने वाले ही अगर धर्म, जाति के नाम पर बाटना शुरू कर दें तो देश का क्या भविष्य हो सकता है? ऐसा ही एक मामला बिहार की शिक्षा व्यवस्था का हैरान करने वाला चेहरा सामने आया. जहाँ बच्चों को मिलने वाले आरक्षण का हवाला देते हुए जातीय और धर्म के नाम पर बांटा जा रहा है.
बिहार के वैशाली जिले के जी.ए उच्च माध्यमिक ( +2) विद्यालय लालगंज जहां के स्कूलों में बच्चों के लिए अलग अलग क्लासरूम दलितों, मुसलमानो, पिछडो और स्वर्णो के लिए बनाये गए है. जहाँ सेक्शन, कलासरूम से लेकर छात्रों के रजिस्टर तक जाति और धर्म के आधार पर बांटा गया. विद्यालय ने यह व्यवस्था पिछले चार सालों से लागू कर रखा है.
दरअसल बिहार के वैशाली जिला लालगंज के राज्य उच्च माध्यमिक विद्यालय आसपास के इलाके का सबसे बड़ा स्कूल माना जाता है. इस स्कूल की बात करें तो बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री दरोगा राय ने भी यही से अपनी स्कूली शिक्षा ली है.
दैनिक जागरण की ख़बर के अनुसार स्कूल की प्रधानाध्यापिका मीणा कुमारी का कहना है कि नौंवी कक्षा में कुल 770 छात्र-छात्राएं हैं, जिन्हें 6 अलग-अलग सेक्शनों को दो भागों में बांट गया है जिसमें 70-70 छात्रों की संख्या को वन और टू में बांटा गया है. नौवीं A-1 में केवल मुस्लिम छात्राएं और नौवीं A-2 में केवल मुस्लिम छात्र हैं. वहीं B-1 में सिर्फ अत्यंत पिछड़ा वर्ग की छात्राएं और B-2 में अत्यंत पिछड़ा वर्ग के छात्र शामिल हैं.
हालांकि इस मामले में मीणा कुमारी का तर्क है कि हमने स्कूल के बच्चों की पढ़ाई में सुविधा और योजनाओं की सहूलियत के लिए ऐसा किया किया.
वही वैशाली के मेन समिति बाजार के रहने वाले 38 वर्षीय सरोज सिंह ने बताया कि मीडिया द्वारा जिस तरह से स्कूल को बदनाम किया जा रहा है वो गलत है. राज्य सरकार हो या केंद्र सरकार की तमाम योजनाएं ही ऐसी बनाई गई हैं कि बटवारा करना बिलकुल उचित है.
उन्होंने आगे कहा की अगर क्लासरूम का बटवारा जाति या धर्म के नाम पर किया जा रहा है तो इन सब की जड़ आरक्षण है, सरकार को आरक्षण ही खत्म कर देना चाहिए.
वहीँ वैशाली जिले के महुआ के रहने वाले 31 वर्षीय अज़ीज़ अंसारी का कहना है कि ये ऐसा कोई चौकाने वाला मामला नहीं है बिहार में ऐसी व्यवस्था बहुत मामूली सी घटना है. उन्होंने बताया कि जहाँ सरकारी स्कूलों में ऐसी बटवारे की घटना नहीं वहां छात्रविर्ती या पोषक राशि में जातीय और धार्मिक भेदभाव किया जाता है.
उन्होंने बताया कि मुस्लिम बच्चों को कम उपस्तिथ दिखा कर पोषक या छात्रवृति ही नहीं मिल पाती फिर मुस्लिम बच्चे-बच्चियां स्कूल नहीं जा पाते तो ऐसे में सरकार अल्पसख्यक के ड्रॉपआउट का आकड़ा पेश कर ना पढ़ने का कारण बता देती है.
इस मामले में पटना के रहने वाले 26 वर्षीय इक़बाल अहमद का मानना है कि बिहार हो या कोई और राज्य जातीय धार्मिक भेद की मानसिकता को कभी ख़त्म नहीं किया जा सकता. इस तरह की घटना इस बात का सबूत है. लोग जाति और धर्म के नाम पर वोट का बटवारा चाहतें हैं वैसे ही अब बच्चों को भी शिक्षा के नाम पर अपने सोच को धर्म और जाति में बाँट रहे हैं.
हालांकि इक़बाल ने आगे कहा कि जो पिछड़े है उनको आगे लाने के लिए सरकार दलित, आदिवासी, या अल्पसंख्यकों को योजना का लाभ मिले इस लिए ऐसे सहूलत रखी है लेकिन कुछ लोग अपनी गलत मानसिकता की वजह से गलत तर्क देने में लगे हैं.
बिहार के वैशाली जिले प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी राजीव रंजन प्रसाद के मुताबिक District Education Office को रिपोर्ट भेजी जा चुकी है. और कारवाही करने के आदेश को मंज़ूरी मिलने की बात कही है. साथ ही कब तक कारवाही शुरू होगी इस बात को बताने से इंकार कर किया है.
हालांकि ये कोई पहला मामला नहीं है ठीक ऐसा ही मामला 2018 के अक्टूबर में सामने आया था. जहाँ दिल्ली के वजीराबाद के एक प्राइमरी स्कूल में अलग-अलग धर्मों के बच्चों को कक्षा में अलग-अलग बैठाने के मामला मीडिया में आया था. इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक वज़ीराबाद के गली नंबर 9 में स्थित इस स्कूल के एटेंडेंस रजिस्टर में क्लास 1A में 36 हिन्दू छात्र और 36 मुस्लिम छात्र का नाम दर्ज है. क्लास 2A में 47 हिन्दू, 2B में 26 मुस्लिम और 15 हिन्दू और 2C में 40 मुस्लिम छात्रों का एटेंडेंस रजिस्टर में नाम की खबर को प्रकाशित किया गया.
तब स्कूल के इंचार्ज सी बी सिंह सेहरावत ने भी छात्रों के बीच शांति, अनुशासन और पढ़ाई का वातावरण बने रहे का तर्क पेश किया था. हालांकि मीडिया में खबर आने और मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा रिपोर्ट बाद स्कूल इंचार्ज को निलंबित कर दिया गया था.
वही हाल के दिनों में मद्रास-आईआईटी में शाकाहारी और मांसाहारी छात्रों के लिए अलग दरवाजे और वॉशबेसिन का मामला भी सामने आया था.