Home India Politics क्या योगी आदित्यनाथ फिर लड़ सकते हैं लोकसभा चुनाव!?

क्या योगी आदित्यनाथ फिर लड़ सकते हैं लोकसभा चुनाव!?

Gorakhpur: Uttar Pradesh Chief Minister Yogi Adityanath attends a function at RSS office Madhavdham in Gorakhpur. (PTI Photo)

आर. आज़मी | गोरखपुर

लोकसभा चुनाव की आहट महसूस करते ही यह चर्चा जोर पकड़ने लगी कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एक बार फिर लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं। चर्चा और कयास में कई कारण गिनाए जा रहे हैं। फायदे भी बताए जा रहे हैं और नुकसान का भी  आंकलन हो रहा है। आधिकारिक तौर पर यह पुष्ट नहीं है मगर चर्चाएं बलवती होती जा रही हैं। सोशल मीडिया पर भी चर्चाएं तेज हो गई हैं। वैसे, योगी समर्थकों का मानना है कि योगी का लड़ना मुफीद होगा पर वे यह भी चाहते हैं कि योगी मुख्यमंत्री पद पर बने रहें।

1998 से गोरखपुर लोकसभा सीट पर अजेय रहे योगी आदित्यनाथ ने 2017 में यह सीट तब छोड़ी जब वह मुख्यमंत्री बन गए। योगी के इस्तीफे के बाद से खाली हुई इस सीट पर चुनाव हुआ तो भाजपा हार गई और सपा ने यह सीट अपने कब्जे में ले ली।

सपा की जीत पर भाजपाई कसमसाकर रह गए। तब, उन्हें अहसास हुआ कि इस सीट के लिए योगी ही अपरिहार्य हैं। जनमानस खासतौर पर एक सम्प्रदाय को भी लगने लगा कि योगी ही यह सीट जीत सकते हैं। इसके ठोस कारण भी हैं। 1998 में जब योगी को गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ ने राजनीतिक विरासत भी सौंपी तो वह लगातार जीतते रहे और पांच बार लोकसभा सदस्य रहे। बुरी से बुरी स्थिति में योगी ने यह सीट भाजपा की झोली में डाली। यह पहला मौका था जब योगी चुनाव मैदान में नहीं थे और भाजपा हार गई।

अब जबकि चुनावी शंखनाद होने में कुछ ही वक्त बचा है तो इस सीट पर मंथन शुरू हो गया है। तर्क गढ़े जा रहे हैं कि योगी अगर चुनाव लड़ते हैं तो क्या होगा.

कितना फायदा और कितना नुकसान:

तर्क यह है कि योगी के चुनाव लड़ने पर यह सीट जीतना तय है और आसपास की सीटों पर भी भाजपा का प्रदर्शन अच्छा रहेगा। फायदे के बारे में दलीलें दी जा रही हैं कि चुनाव बाद केन्द्र में मोदी सरकार बनाने के बाद योगी इस सीट को फिर छोड़ देंगे और मुख्यमंत्री बने रहेंगे। तब जब उपचुनाव होगा तो लोग भाजपा प्रत्याशी को ही चुनेंगे क्योंकि उन्हें लगेगा कि योगी और मोदी के रहते दूसरे दल को जिताने पर क्षेत्र का विकास नहीं हो सकता।

दलील यह भी है कि बिना एमएलसी रहे भी योगी छह माह तक मुख्यमंत्री रह सकते हैं इसलिए एमएलसी का पद त्यागकर वह सांसदी को कुछ दिन अपने पास रख सकते हैं। फिर, एमएलसी बनना उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं है। इस तरह एक तीर से दो शिकार हो जाएंगे। चार बार सिविल लाइन्स के पार्षद रहे सूर्य प्रताप शाही के अनुसार अगर योगी जी चुनाव लड़ते हैं तो जीत में  संशय नहीं है। वही एक मात्र नेता हैं जोकि भाजपा की जीत पक्की कर सकते हैं। उनके चुनाव लड़ने से आसपास की सीटों पर भी भाजपा की जीत पक्की है। ऐसा रास्ता निकलना चाहिए जिससे वह मुख्यमंत्री भी रहें और यह सीट भी भाजपा जीत जाए।, मण्डल प्रभारी, हिन्दू युवा वाहिनी रामप्यारे यादव बताते हैं कि योगी जी चुनाव लड़ते हैं तो भाजपा को फायदा ही फायदा है। नुकसान हो ही नहीं सकता।

नुकसान के बारे में यह आंकलन किया जा रहा है कि विरोधी, चाहे वे पार्टी के हो या बाहरी, यह अफवाह फैलाएंगे कि मुख्यमंत्री पद योगी से छीना जा रहा है जिससे उनकी छवि धूमिल होगी। पर, फायदा गिनाने वाले यह कहकर अपना पलड़ा भारी कर ले रहे हैं कि यह सब कुछ दिन ही चलेगा मगर योगी के लड़ने का असर कई सीटों पर पड़ेगा। डा. धर्मेन्द्र सिंह, क्षेत्रीय अध्यक्ष, भाजपा हालांकि इससे अलग राय रखते हैं. वे कहते हैं, “चर्चाएं बकवास हैं। योगी जी मुख्यमंत्री हैं और यूपी का विकास कर रहे हैं तो लोकसभा चुनाव लड़ने का सवाल कहां से उठ जाएगा। यह कोरी अफवाह और दिमागी उपज है”।

योगी आदित्यनाथ की अब तक की जीत

   वर्ष             वोट 

1998         2,68,428

1999         2,67,382

2004        3,53,647

2009        4,03,156

2014        5,39,127

उपचुनाव में सपा ने छीनी सीट:

जिस गोरखपुर लोकसभा सीट को भाजपा अजेय मानती रही है, उसे सपा ने 2018 के उपचुनाव में छीन लिया। इसकी वजह योगी का चुनाव न लड़ना रहा क्योंकि मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने यह सीट छोड़ दी थी।

भाजपा को पहले यही लगा था कि अजेय सीट पर जिस भी उम्मीदवार को उतारा जाएगा, वह योगी के प्रभाव से जीत जाएगा। पर भाजपा का आंकलन गलत साबित हुआ। उसने क्षेत्रीय अध्यक्ष उपेन्द्र दत्त शुक्ल को प्रत्याशी बनाया पर वह सपा के प्रवीण निषाद से हार गए। प्रवीण को 4,56,437 वोट मिले जबकि उपेन्द्र को 4,34,476 वोट। अंतर मामूली 21 हजार का ही रहा पर तब भी यह बात उठी थी कि अगर योगी ही इस सीट के लिए अपरिहार्य हैं। इस उपचुनाव में भी सपा-बसपा का गठबंधन था। इस बार 2019 में भी सपा-बसपा का गठबंधन है इसीलिए योगी को फिर अपरिहार्य मानकर चला जा रहा है।