फ़हमीना हुसैन, TwoCircles.net
केंद्र सरकार ने देश में सवर्ण समाज को गरीबी के आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण देने को लेकर संविधान संशोधन बिल संसद से पास करा लिया साथ ही इस बिल को कानून बनने के लिए राष्ट्रपति की सहमति का इंतजारहै. हलाकि इस बिल के विरोध को लेकर देश भर के राज्यों में अलग-अलग सगठनों द्वारा प्रदर्शन किया जा रहा है.
सवर्ण आरक्षण लागू करने व संविधान संशोधन के खिलाफ बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, गुजरात व अन्य राज्यों के जन संगठनों ने एक साथ आकर तीन दिवसीय राष्ट्रव्यापी प्रतिवाद का आह्वान किया है.
विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों की ओर से जारी अपील में कहा गया है कि सवर्ण आरक्षण को लागू करने और संविधान संशोधन के जरिए संविधान की मूल संरचना व वैचारिक आधार पर हमला है. दलितों-आदिवासियों-पिछड़ों के आरक्षण के खात्मे का रास्ता खुल गया है.संविधान व सामाजिक न्याय पर इस बड़े हमले को कतई बर्दाश्त नहीं किया जा सकता.
उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में सवर्ण आरक्षण के खिलाफ आजमगढ़ जिलाधिकारी कार्यालय के सामने अंबेडकर पार्क में विभिन्न संगठनों ने विरोध दर्ज किया। वक्ताओं ने कहा कि मोदी सरकार द्वारा आर्थिक आधारपर आरक्षण विधेयक पारित करना संविधान को बदलकर मनुवादी व्यवस्था लागू करने की साजिश का हिस्सा है. यह सीधे-सीधे संविधान पर हमला है सभी प्रतिभागी संगठनों ने एक स्वर में कहा कि संविधान पर हमलाबर्दाश्त नहीं करेंगे.
इस विरोध प्रदर्शन में रिहाई मंच, इंसाफ अभियान, अखिल भारतीय अनसूचित जाती/जनजाति कर्मचारी कल्याण एसोसिएशन, उत्तर प्रदेश भीम आर्मी, कारवाँ, युवायें शामिल रहें.
वही सवर्ण आरक्षण लागू करने को लेकर लखनऊ में भी इसका जम कर विरोध प्रदर्शन किया गया. विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने कहा कि आज का सांकेतिक विरोध सरकार को अपने निर्णय वापस लेने की चेतावनीहै अगर मांगे नहीं मानी गई तो बड़ा आंदोलन किया जाएगा.
वही 10% आरक्षण देने के घोषणा के विरोध में झारखंड में ST, SC, OBC-EBC/MBC आरक्षण के सीमा को 50% से बढ़ाकर 73% किया जाने पक्ष में नरेंद्र मोदी का पुतला दहन किया गया.
छात्र युवा संघर्ष वाहिनी के विश्वनाथ ने कहा कि सवर्ण समाज इससे पहले आरक्षण का विरोधी था. आरक्षण लेने वालों को पिछड़ा मानशिकता का बताता था. लेकिन फिर भी उन्हें 10% आरक्षण देकर यह साबित कर दियाकि भाजपा सरकार आदिवासी, दलित पिछड़ों का हितेषी नहीं वल्कि सवर्णों का पिछलुग्गु है.
विरोध में शामिल खुदीराम का कहना है, सरकारी एवं प्राइवेट नौकरियों/शैक्षणिक संस्थानों में दाखिला के रास्ते को आसान बनाने के लिए किया गया है. वंचित जातियों के सामाजिक बराबरी के लिए ही आरक्षण है. ना किगरीब होने के लिए.
वही प्रह्लाद महतो ने कहाँ कि मोदी नारा देती है कि एक भारत एक नीति लेकिन काम उसके ठीक उल्टा करती है. काम के समय सरकार आदिवासी, दलित और पिछड़ों के लिए अलग नीति और सवर्णों के अलग नीतिअपनाती है.
इसके अलावा बिहार के भागलपुर में भी इस आरक्षण के खिलाफ ज़ोरदार विरोध प्रदर्शन किया गया. भागलपुर में बिहार फुले-अंबेडकर युवा मंच और सामाजिक न्याय आंदोलन तीन दिवसीय (12-13-14 जनवरी)राष्ट्रव्यापी प्रतिवाद के तहत विरोध मार्च हुआ.
सामाजिक न्याय आंदोलन, बिहार की कोर कमिटी सदस्य अंजनी और बिहार फुले-अंबेडकर युवा मंच के अजय कुमार राम ने कहा कि नरेन्द्र मोदी सरकार ने RSS के संविधान बदलने और दलितों-पिछड़ों के आरक्षणको खत्म करने के एजेंडा पर आगे बढ़ने का काम किया है.
अलीगढ़: शनिवार को अलीगढ़ मुस्लिम विश्विद्यालय के छात्रों ने सवर्ण आरक्षण के ख़िलाफ़ अपना विरोध दर्ज करते हुए संविधान संशोधन बिल की प्रतियाँ जला कर अपना विरोध जताया है.
राजनीति विज्ञान छात्र शरजील उस्मानी मानते हैं कि ‘आरक्षण आर्थिक आधार पर नहीं दिया जा सकता, आरक्षण कोई ग़रीबी हटाओ योजना नहीं है। आरक्षण प्रतिनिधित्व की लड़ाई है, दलितों-शोषितों-वंचितों को मुख्यधारामें लाने की लड़ाई है.
अब्दुल्लाह कॉलेज की छात्रसंघ अध्यक्ष ने भी इस बिल का विरोध करते हुए इस बिल को राजनीतिक स्टंट बताया। उन्होंने कहा कि ‘भाजपा सरकार जानती है कि इस बिल पर सुप्रीम कोर्ट रोक लगा देगा, यह बिलअसंवैधानिक है। मगर भाजपा को राजनीति करनी है। सवर्णों का वोट हासिल करने के लिए भाजपा ने आनन-फानन में यह बिल पास कराया है।
उन्होंने आगे कहा कि सरकार यदि मानती है कि सवर्ण जातियों के लोग ग़रीबी से मर रहे हैं और उन्हें आरक्षण चाहिए तो सरकार बताए कि वे किस रिपोर्ट के आधार पर यह बात कर रहे हैं। सरकार यदि सामाजिक न्यायकी पक्षधर है तो सच्चर कमिटी रिपोर्ट में बताए गए निर्देशों को क्यों नहीं लागू करती, यह दोहरा व्यहवार क्यों!’
एमएसडब्ल्यू छात्र अब्दुल मतीन ने भी इस बिल का विरोध किया। मोदी ने 2014 में हर साल दो करोड़ नौकरियाँ देने का वादा किया था – और सत्ता में आने के बाद सवर्ण आरक्षण नाम का झुनझुना पकड़ा दिया।’
उन्होंने आगे कहा कि मुसलमानों को भी सोचना चाहिए कि कैसे 2 प्रतिशत ब्राह्मण अपनी बात सरकार ने मनवा लेते हैं मगर वहीं मुसलमान 20 प्रतिशत होने के बाद भी दो नम्बर का शहरी बन कर रहने को मजबूर है।