लाखों आदिवासियों को जंगल-जमीन से बेदखल करने के फैसले के खिलाफ 5मार्च को भारत बंद!

फ़हमीना हुसैन, TwoCircles.net

कल यानी 5 मार्च को विभिन्न संगठनों ने संविधान व सामाजिक न्याय पर जारी हमले के खिलाफ भारत बंद का एलान कर रखा है। जिसमे कई संगठन, सामाजिक न्याय आंदोलन, बिहार, बिहार फुले-अंबेडकर युवा मंच और रिहाई मंच, यूपी ने संयुक्त रूप से बहुजन समाज और तमाम सामाजिक न्याय पक्षधर द्वारा इस आंदोलन का प्रतिनिधित्व करेंगे।


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संगठनों द्वारा ज़ारी अपील में 5 मार्च के भारत बंद का समर्थन के साथ सवर्ण आरक्षण, 13 प्वाइंट रोस्टर के खिलाफ, आदिवासी जनता के हक-हुक़ूक़, निजी क्षेत्रों में आरक्षण, न्याय पालिका में आरक्षण, कॉलेजियम सिस्टम को ख़त्म करने, जाति आधारित जन गणना करके 100% आरक्षण लागू करने, 2 अप्रैल 2018 को हुए भारत बंद के दौरान जेलों में बंद लोगो को रिहा करने और मृतकों के परिवार को मुआवजा देने जैसे मुद्दों को शामिल किया गया है।

अपीलकर्ताओं ने कहा है कि आदिवासियों के साथ हुए ऐतिहासिक अन्याय को दुरुस्त करने के लिए बने वनाधिकार कानून-2006 के तहत 20लाख के आस-पास नकारे गये दावों पर सुप्रीम कोर्ट ने आदिवासियों के संवैधानिक अधिकार व सामाजिक न्याय के खिलाफ जंगल-जमीन से बेदखल करने फैसला दे दिया। शर्मनाक है कि इस फैसले के दरम्यान आदिवासियों की ओर से उचित पैरवी के लिए केन्द्र सरकार का कोई वकील भी मौजूद नहीं था। इस फैसले के खिलाफ चौतरफा आवाज बुलंद होने के बाद तत्काल सुप्रीम कोर्ट ने फैसले पर स्टे लगाया है। लेकिन स्टे से हम संतुष्ट नहीं हो सकते। केन्द्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ अध्यादेश लाये।

अपील में कहा गया है कि सवर्ण आरक्षण के बाद विश्वविद्यालयों में शिक्षक नियुक्ति में विभागवार 13प्वाइंट रोस्टर के जरिए दलितों-पिछड़ों का आरक्षण लगभग खत्म हो जा रहा है। आदिवासी तो आरक्षण से पूरी तरह बाहर हो गये हैं।13प्वाइंट रोस्टर एकलव्य का अंगूठा काटे जाने का एलान है। लगातार जारी आंदोलनों के बावजूद भी केन्द्र सरकार विश्वविद्यालय को इकाई मानते हुए 200प्वाइंट रोस्टर के पक्ष में अध्यादेश नहीं ला रही है।

वहीँ आदिवासियों और अन्य वनवासियों के लिए काम करने वालों लोगों का कहना है कि ज़मीनी स्तर पर एफआरए कानून को सही तरीके से लागू नहीं किया गया है। वहीँ कानून के पक्ष में खड़े वकील व् कार्यकर्ताओं का आरोप है कि सरकार जानबूझकर बचाव नहीं कर रही। उनका सरकार के प्रति आरोप है कि आदिवासियों से जुड़े आकड़ों में हेराफेरी कर सरकार उन्हें जंगल से निकलना चाहती है।

रॉबिन वर्मा ने बताया है कि पहले से ही संविधान में मिले 49.50% आरक्षण को पूरी तरह लागू नहीं किया गया। 13 प्वाइंट रोस्टर  पूरी तरह से ओबीसी और एससी का प्रतिनिधित्व खत्म करने का षड़यंत्र हैं। उन्होंने बताया की सरकारी उपक्रम पॉवर ग्रिड कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड के भर्ती विज्ञापन में परीक्षा शुल्क दस लाख कमाने वाले आर्थिक रूप से कमज़ोर तबके के लिए शून्य रखा गया हैं, वही ओबीसी के लिए 400 रुपए हैं।

जारी अपील में कहा गया है कि नरेन्द्र मोदी सरकार ने संविधान,सामाजिक न्याय व बहुजनों के खिलाफ युद्ध छेड़ रखा है.इस सरकार ने पूरी ताकत से मनुविधान थोपने व मनुवादी सवर्ण दबदबे को मजबूत करने और बहुजनों के चौतरफा बेदखली का अभियान चलाया है। इस सरकार ने दलितों-आदिवासियों-पिछड़ों के साथ जारी ऐतिहासिक अन्याय-अपमान, ज्ञान व संपत्ति से वंचना, शासन-सत्ता की संस्थाओं से बेदखली को बढ़ाया है।

दरअसल अंतिम दौर में इस सरकार में बहुजनों पर तीन बड़े हमले हुए हैं-सवर्ण आरक्षण,विश्वविद्यालयों में शिक्षक नियुक्ति में विभागवार 13प्वाइंट रोस्टर के जरिए आरक्षण का खात्मा और अब जंगल-जमीन से लाखों आदिवासियों की बेदखली का सुप्रीम कोर्ट का फरमान।

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