इबादत के महीने का जोरदार खैर मकदम

हीना महविश (Photo: Aas Mohammed Kaif/ TwoCircles.net)

आसमोहम्मद कैफ।मुजफ्फरनगर Twocircles.us

इबादत के महीने रमजानुल मुबारक का मुसलमानों ने हमेशा की तरह दिल खोल कर स्वागत किया है.बाजारों में पहले दिन से ही लाज़वाब रौनक उतर आई.
रोजेदारों के चेहरे पर नूर टपकता दिखाई दिया.
ऐसे ही कुछ रोजेदारों से हमने बात की।जिन्होंने अपने अनुभव शेयर किए.पढिये उन्ही की जबानी उन्ही की बात…
फारुख मेवाती-46 कॉन्ट्रेक्टर
“मैं इतना छोटा था कि मुझे यह भी याद नही कि मैंने पहला रोजा कब रखा.मगर मैंने कभी रोजा छोड़ा नही।रमज़ान के महीने यह अलग बात है कि दोपहर बाद घर से बाहर कम निकलता हूँ।पूरे महीने काम से हटकर इबादत करने की कोशिश करता है.अल्लाह का करम कभी किसी तरह की घरेलू परेशानी रमज़ान में नही हुई.अल्लाह ग़ैब से मदद करता है और कारोबार में खुदबखुद तेजी आ जाती है”.
फारुख मेवाती (Photo: Aas Mohammed Kaif/ TwoCircles.net)
मोहम्मद वक़ार अहमद-26,छात्र
“अभी मैं 26 का हूँ और एमबीए कर रहा हूँ.कुछ  रोज़ा नही रखते हैं जिन पर हमें हैरत होती है मगर अल्लाह का शुक्र है मेरे घर मे मजहबी माहौल है.ईद का मज़ा भी रोज़ेदार को ही आता है.10 साल से रोजे रख रहा हूँ.बहुत अच्छा लगता है.बिल्कुल भी थकान नही होती.पिछले साल कुछ रोज़े में बड़ी मशक्कत करनी पड़ी.मगर बहुत खुशी होती है.एकदम जिंदगी बदल जाती है.पुरा महीना इबादत में गुजर जाता है.अब गर्मी ज्यादा हो रही है इसलिए घर से बाहर निकलना दोपहर में बंद हो जाता है.
मोहम्मद वक़ार अहमद (Photo: Aas Mohammed Kaif/ TwoCircles.net)
हाजी अनवर क़ुरैशी-52,व्यापारी
“पहली बार 9 साल की उम्र में रोज़ा रख लिया था.तब गर्मी में रोज़े आएं थे.अम्मी दिन भर कहती रही.तू बच्चा है जिद मत कर मैं नही माना.अब हमारे बच्चों में भी वही आदत पड़ गई है.वो सब रोजा रखते हैं.हमारा रोजा अब आसान है.रोजा रखकर पूरा दिन घर मे गुजर जाता है.घरों में एसी लगे हैं.शुरुवात के पहले सप्ताह में कहीं नही जाते हैं.बिजनेस में भी ज्यादा गौर नही कर पाते हैं.
मगर कुदरतन रमज़ान में कारोबार काफी बढ़ जाता है. खयालात में ताज़गी आ जाती है.”
हाजी अनवर क़ुरैशी (Photo: Aas Mohammed Kaif/ TwoCircles.net)
अनवार अहमद 53,कपड़ा व्यापारी
“रमज़ान का यह महीना मेरे लिए हर तरह से रहमत लेकर आता है.एक तो इस महीने में अल्लाह के करम कारोबारी फ़ायदा बहुत होता है.दूसरे मज़हबी लिहाज़ से रहमतों की लगातार बारिश होती है. हमारे लिए तो ईद से बड़ी खुशी कुछ नही है.हमारे परिवार में 9 सदस्य है.अल्लाह का शुक्र है कि वो सभी रोजा रखते है.एक दस्तरख्वान पर सब एक साथ बैठकर रोजा खोलते है तो बहुत अच्छा लगता है.पड़ोस का ख्याल रखते है.एकदम बेहतरीन और दिल खुश कर देने वाला महीना है.हम तो हर दिन रमज़ान का इंतज़ार करते हैं.
अनवार अहमद (Photo: Aas Mohammed Kaif/ TwoCircles.net)
हीना महविश।29।गृहणी
“रमज़ान रहमतों और बरकतों का महीना है.मेरी दादी 85 साल की है मगर अभी भी सारे रोजे रखती है और पूरे रमज़ान में कम से कम 3 बार क़ुरान पूरा पढ़ती है.हमें भी रमज़ान का शिद्दत से इंतजार रहता है.यह यक़ीनन रहमतों और बरकतों का महीना है.आधा दिन इबादत में और आधा दिन इफ़्तार की तैयारी में गुजर जाता है. मुझे ऐसा लगता है कि उन औरतों के लिए रोजा थोड़ा आसान होता है जिन्हें बाहर नही जाना पड़ता.असल मेहनत उनकी है जो इस गर्मी में मेहनत करते हैं और रोजा भी रखते हैं.इस महीने बहुत अच्छा अहसास होता है और रूहानी सुकून मिलता है.”


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