दो दलित बच्चों की हत्या: खुले में शौच या जाति की वज़ह से गई जान?-ग्राउंड रिपोर्ट

मनोज के घर पर आये उनके रिश्तेदार

By Meena Kotwal, TwoCircles.net

मध्यप्रदेश के शिवपुरी ज़िले का एक छोटा-सा गांव है भावखेड़ी. मुश्किल से 150 से 200 घर होंगे.


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भावखेड़ी वो गांव है जहां 25 सितम्बर की सुबह दो दलित बच्चों को पीट-पीटकर मार दिया गया. अविनाश और रौशनी इसी गांव के रहने वाले थे, जिनकी उम्र महज़ 10 और 12 साल थी.

गांव में घुसते ही जगह-जगह पुलिस तैनात है और कहीं कहीं गांव के ही लोग (पुरुष) इकट्ठा हैं.

एक घर गांव से बाहर की तरफ़ बना हुआ है. कच्चा-मिट्टी का घर, छत पर काले रंग का पाल शायद बारिश से बचने के लिए लगाया हुआ.

घर के बाहर मनोज, उनकी बहन और उनके पिता कल्ला बैठै हुए थे, जहां कुछ छोटे बच्चे भी खेल रहे थे, जो शायद इस घटना से अज्ञात थे. मनोज अविनाश के पिता हैं और रौशनी के बड़े भाई.

कल्ला वाल्मीकि – मनोज के पिता

अविनाश की मां रो-रोकर थक चुकी थी इसलिए घर के भीतर थोड़ा आराम कर रही थी.

मेरे वहां जाने पर उन्हें जगाया गया और बाहर आने के लिए कहा गया. लेकिन उनकी हालत इतनी ख़राब थी कि वे सही से बोल भी नहीं पा रही थी.

एक तरफ़ तीन पत्थरों को जोड़कर चुल्हा बना हुआ था. जहां एक बर्तन में चावल उबल रहे थे.

ज्यादातर खबरों में हमने पढ़ा कि पंचायत भवन के सामने खुले में शौच करने पर दो दलित बच्चों को पीट-पीटकर मार डाला.

गाँव में मौजूद आर्म्ड फोर्सेज

जबकि मनोज ने हमें एक दूसरे हक़ीकत से रू-ब-रू करवाया. पंचायत भवन मनोज के पिता कल्ला के घर से भी 100 कदम से भी अधिक दूरी पर था. और मनोज के घर से तो लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर था. सड़क के दूसरी तरफ़ हाकिम यादव और रामेश्वर यादव के खेत और खेत के उस पार था उनका घर. जानकारी के मुताबिक इनके पास 40 एकड़ से भी अधिक जमीन है और घर-परिवार से संपन्न हैं.

मनोज कहते हैं, “पंचायत भवन वहां से काफ़ी दूर था. जहां बच्चे शौच के लिए गए थे, वहां कई लोग जाते हैं.”

वे अपनी बात में आगे जोड़ते हैं कि बच्चों को मारने के पीछे शौच एक वज़ह नहीं है बल्कि रौशनी के साथ उन लोगों ने छेड़छाड़ की थी. यानि वे रौशनी का रेप करना चाहते थे. लेकिन रौशनी के पास मेरा बेटा पहुंच गया और वो अपनी बुआ को बचाने लगा. “हाकिम यादव और रामेश्वर यादव दोनों के पास डंडे थे. उन्होंने बदनामी के डर से और उन्हें चुप करवाने के लिए दोनों बच्चों को मारना शुरू कर दिया, उन्हें इतना मारा कि वो आज हमारे बीच नहीं हैं.”

मोबाइल में रौशनी और अविनाश की फोटो

हालांकि एक विशेष जाति के व्यक्ति का खुले में शौच करने पर एक जाति विशेष के लोग द्वारा जान से मार देने जैसा मामला पहली बार सामने आया है.

25 सितम्बर का दिन याद करते हुए मनोज बताते हैं कि घर में सब लोग साथ बैठे हुए थे. सुबह का समय था. घर में श्राद्ध पूजने के लिए मां के नाम का खाना बन रहा था. मैं चाय पी रहा था और घर के सभी लोग हंसी-ठिठोली कर रहे थे कि अचानक दो लोग घर के आगे से डंडा लेकर भागे और बेटे की चिल्लाने की आवाज़ आई.

मैं बाहर दौड़कर गया तो देखा कि मेरी बहन और बेटा खून में लथपथ रोड पर पड़े हैं.

इतना कहते ही मनोज की आंखे नम हो जाती हैं, दूसरी तरफ़ मनोज की दूसरी बहन भी जोर-जोर से रोने लगती हैं.

वे कहते हैं कि हमें तो समझ ही नहीं आया कि अचानक ये सब कैसे हुआ लेकिन जब हमने रौशनी की तरफ़ देखा तो उसके कपड़े फटे हुए थे और सलवार का नाड़ा खुला हुआ था. इससे साफ़ लग रहा था कि वे लोग रौशनी का रेप करना चाह रहे थे. वहां अविनाश पहुंच गया तो वो अपने मक़सद में कामयाब नहीं हो पाए.

मनोज

“उन्होंने बच्चों के सिर पर डंडे ही डंडे से वार किया. बेटे के सिर से मांस ही बाहर आ गया था.”

मनोज पेशे से मजदूर हैं. इसके अलावा वे शादी-ब्याह में ढ़ोल बजाने का भी काम करते हैं. इससे महीने में वे ज्यादा से ज्यादा 2500 रूपये तक कमा पाते हैं. घर में वे, उनकी पत्नी और तीन बच्चे रहते थे. जिनका घर गांव से बाहर श्मशान घाट के बिल्कुल नज़दीक है. उनके पिता उनसे थोड़ी दूर पर ही रहते हैं.

अविनाश पहली क्लास में पढ़ता था और रौशनी पांचवी में थी. मनोज के साथ में ही बैठी उनकी पत्नी कहती है कि वो स्कूल जाते थे लेकिन वो सब उन्हें मार कर भगा देते थे क्योंकि कोई साथ में बैठना ही नहीं चाहता.

इसी में आगे जोड़ते हुए मनोज बताते हैं, “बच्चे पढ़ने जाते हैं तो साथ में अपना बोरा लेकर जाते हैं क्योंकि उन्हें क्लास के बच्चे साथ में बैठने नहीं देते. ना कोई साथ में खाता है. डांट-पीटकर घर वापस भेज दिया जाता है. कई बार तो बच्चे स्कूल जाने से डरते भी हैं.”

मनोज की पत्नी कहती हैं कि वो स्कूल से आकर कई बार शिकायत भी करता था लेकिन हम इस लिए चुप रहते हैं क्योंकि हमें लड़ने का डर लगा रहता है.

 वे आगे कहती हैं, “इस गांव में इतनी छुआछूत है कि हम हैडपंप से पानी भी सबके साथ नहीं भर सकते.”

भावखेड़ी गांव जहां बमुश्किल 150 से 200 घर होंगे. वहां अधिकतर घर यादवों के हैं उनके बाद जाटवों के हैं. वाल्मिकी समाज का एक ही घर है जो मनोज के परिवार का है.

मनोज से लगातार कई लोग मिलने आ रहे हैं लेकिन गांव का कोई व्यक्ति वहां दिखाई नहीं दिया. दूसरे गांव से आए सुधीर कोड़े बताते हैं कि जिस दिन घटना हुई हम उसी दिन आ गए थए लेकिन गांव का कोई व्यक्ति अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हुआ.

यहां तक कि गांव वालों ने जलाने के लिए लकड़ी तक नहीं दी. हम लोग शिवपुरी से लकड़ी लेकर आए थे.

इसी जगह रौशनी और अविनाश खून से लथपथ हालत में मिले थे.

लापरवाही या जातीय भेदभाव का स्वरूप

 इस घटना के बाद हाकिम यादव और रामेश्वर यादव दोनों को पुलिस ने पकड़ लिया है. दोनों जब घटना को अंजाम देकर भाग रहे थे तब गांव के कुछ लोगों ने उन्हें पकड़ कर पेड़ से बांध दिया था और उन्होंने ही 100 नम्बर पर कॉल कर के पुलिस को बुलाया.

नाम ना बताने की शर्त पर एक जाटव ने आरोपियों के ख़िलाफ़ गवाही भी दी है, लेकिन वो अभी सामने खुलकर नहीं आना चाहता.

घटना के बाद से ही गांव में पुलिस और आर्मफोर्स तैनात है. पुलिस से हमने घटना वाले दिन ही संपर्क करने की कोशिश की थी. लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पाया. एमपी पुलिस की सरकारी वेबसाइट के विवरणानुसार शिवपुरी जिले के अंतर्गत दस थाने आते हैं. जहां पीएस आईडी, पुलिस स्टेशन, पता, ज़िला, राज्य और फ़ोन नम्बर दिये हुए हैं.

भावखेड़ी गांव सिरसौद थाने के अंतर्गत आता है. जहां घटना के बारे में जानने के लिए जब कॉल किया गया तो वहां का नम्बर ही मौजूद नहीं बताता. हमने सभी थानों पर लगातार कई कॉल किए लेकिन सभी नंबर का एक ही हाल था. इनमें से केवल पोहरी थाने का नंबर मिलता लेकिन वे भी आसानी से फ़ोन नहीं उठाते. लगातार कई बार कॉल करने पर उन्होंने सिरसौद थाने के थाना प्रभारी आर एस धाकड़ का नंबर दिया. लेकिन उनसे जब इस घटना के बारे में बात करना चाहा तो उन्होंने सुनते ही कॉल कट कर दिया और दोबारा उठाना जरूरी नहीं समझा.

इसी तरह जब हम उनसे उनके थाने मिलने गए तो भी वे इस मामले पर बात करना पसंद नहीं  कर रहे थे. बहुत मुश्किल से उन्होंने डीएसपी विरेंद्र तोमर का नंबर दिया.

डीएसपी विरेंद्र बताते हैं कि आरोपियों पर धारा 302 हत्या करने और एससी-एसटी एक्ट लगा दी गई है फिलहाल दोनों आरोपी गिरफ्तार हैं.

उन्होंने साथ ही ये भी बताया कि सरकार की तरफ़ से साढ़े आठ लाख रूपये दे दिया गया है.

मनोज का भी कहना है कि चार लाख बारह हजार रूपये पिता और मुझे हम दोनों को अलग अलग मिले हैं. मनोज और मनोज का साथ देने वाले कई लोगों का कहना है कि पुलिस आरोपियों को पागल घोषित करने में लगी है ताकि वे सजा से किसी तरह बच सके.

गाँव की दीवारों पर लिखा स्लोगन

सूरज यादव और भारत सिंह यादव गांव के सरपंच और सचिव हैं. लेकिन अभी तक पीड़ितों से मिलने नहीं पहुंचे. भावखेड़ी पहुंचकर दोनों से मिलने की कोशिश की लेकिन भारत सिंह यादव किसी के फ़ोन का जवाब नहीं दे रहे हैं.

सूरज सिंह यादव 2015 से भावखेड़ी गांवे के सरपंच हैं. जब हम मिलने पहुंचे तो वे एक कमरे में अकेले बैठे हुए थे. वे बताते हैं कि जो भी हुआ बहुत गलत हुआ. जब उनसे पूछा गया कि क्या वे पीड़ित परिवार से मिल रहे हैं?

वे बताते हैं कि हम भी यादव हैं इसलिए हमें डर लग रहा है. वे तीन दिन से घर से बाहर ही नहीं निकले हैं. वे मानते हैं कि हम रिश्तेदार लगते हैं. हमें डर था कि वे (पीड़ित परिवार) कहीं गुस्से में हमसे ना लड़ने लग जाए.

सूरज सिंह भी मानते हैं कि आरोपियों का दिमाग सही नहीं है. उनसे जब पूछा गया कि आपको ये घटना क्या जातीय भेदभाव के कारण लगती हैं?

वे बताते हैं कि हमारे गांव में किसी भी तरह की छुआछूत है ही नहीं. मनोज और बाकि लोग इस बारे में झूठ बोल रहे हैं. यहां सब लोग बड़े प्यार और मिलजुल कर रहते हैं.

इस मामले पर हमने शिवपुरी की कलेक्टर अनुग्रह पी से बात करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने मीडिया से बात करने से मना कर दिया. शिवपुरी में ही रहने वाले वाल्मिकी समाज अधिकारी कर्मचारी संघ के भारतीय अध्यक्ष कमल किशोर कौड़े इस घटना के बाद काफ़ी दुखी और गुस्से में हैं.

वे कहते हैं कि आरोपियो को बचाने की कोशिश की जा रही है. क्योंकि सभी एक ही समाज के हैं. रौशनी के साथ रेप करने की कोशिश की गई लेकिन पुलिस ने उनपर पॉक्सो एक्ट (पॉक्सो एक्ट यानी की प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्राम सेक्सुअल ऑफेंसेस) नहीं लगाया.

पंचायत भवन

 वे आगे कहते हैं कि पीड़ित परिवार को भावखेड़ी से बाहर कहीं सरकारी आवास देना चाहिए ताकि आगे से उन पर कोई हमला ना कर सके. वे उस गांव में अकेला परिवार है, उनकी जान का ख़तरा भी बढ़ गया है. इसके साथ ही पीड़ित परिवार को एक-एक करोड़ रूपये देना चाहिए. और ये पैसा आरोपियों की संपत्ति को निलाम कर के देना चाहिए ताकि वे आगे तक याद रख सके.

आख़िर में जब मैं दिल्ली के लिए वापसी कर रही थी मेरे साथ एक रिपोर्टर और वापस दिल्ली आ रही थी. उन्होंने मुझसे एक सवाल पूछा कि मीना मनोज और कल्ला (मनोज के पिता) इनके परिवार में इतना कुछ हो गया फिर भी ये लोग इतने शांत कैसे रह सकते हैं!

मैंने उन्हें देखा और कहा कि इन लोगों को बचपन से ही इतना सहना सीखा दिया जाता है कि बड़े से बड़ा संकट भी झेलना आ जाता है.

सभी तस्वीरें लेखक द्वारा ली गई हैं)

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