By आस मोहम्मद कैफ, TwoCircles.net

पिछले दिनों यूपीपीसीएस का परिणाम आया है। जिसमें छठी रैंक पाकर एसडीएम चुनी जाने वाली कन्नौज की एक लड़की बुशरा अरशद की दिल खोलकर तारीफ हो रही है। सौरिख गाँव की यह लड़की यू॰पी॰पी॰एस॰सी॰-2017 में एसडीएम बनने वाली एकलौती मुस्लिम प्रतिभागी है। यह वही बुशरा अरशद है जिनकी जुलाई माह में आए यूपीएससी के परिणाम में भी 277 वी रैंक आई थी। तब वो आईआरएस के लिए चयनित हुई थी,जिससे उन्हें तसल्ली नही हुई थी।

तसल्ली उन्हें अब भी नहीं है क्योंकि जुनून की हद तक जिद्दी बुशरा का कहना है कि जब तक आईएएस में टॉप 20 में नही आ जाऊंगी तब तक लड़ाई जारी रहेगी। दरअसल बुशरा को ‘मिथक’ तोड़ने का शौक है और वो तमाम किवंदतियाँ ग़लत साबित कर चुकी है।


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जैसे उनके परिवार ,रिश्तेदार और शौहर सब मानते हैं कि यह लड़की मानेगी ही नही।

ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि गाँव की लड़की, बिना कोचिंग के शादी शुदा होने के बाद नौकरी करते हुए चार सर्जरी के दर्द को सहकर देश की सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा में अपने झंडे गाड़ देती है तो उसके लिए कुछ भी नामुमकिन नही है।

बुशरा हँसती है और कहती है “हो सकता है इन सब चीजों के लिए अलग अलग मिसाल हो मगर यह सभी मुझमें समायोजित हो गई तो जिद और बढ़ गई “।

बुशरा के पिता किसान हैं और माँ घरेलू औरत हैं। एक भाई और बहन भी अच्छे पढ़ लिख गए है। माँ- बाप दोनों ग्रेजुएट हैं। मगर बुशरा निश्चित तौर पर उनकी माँ शमा के अल्फाज़ो में ” एक्स्ट्रा ऑर्डनरी” लड़की है। हमसे बहुत बेहतर,टैलेंट कूट कूट कर भरा है इसमें।”

बुशरा ने साढ़े सत्रह साल की उम्र में स्नातक किया था। 20 साल की उम्र होने से पहले उसने एमबीए की डिग्री हासिल कर ली थी। बारहवीं तक की पढ़ाई कन्नौज से ही पूरी की और स्नातक करने कानपुर चली गई।

बुशरा बताती है कि यूपीएससी का एग्ज़ाम तो तभी देना चाहती थी मगर उम्र कम पड़ गई। बुशरा की अम्मी की अगर मान लें तो बुशरा को साढ़े चार साल की उम्र में सीधे दूसरी क्लास में दाखिला दिया गया। वो कहती है “घर मे इतना सीख गई थी कि कभी दूसरे स्थान पर नही आई। वो कहती हैं बुशरा को अव्वल रहने की आदत है। वो हमेशा टॉप करती रही मेरी मल्टी टैलंटेड बेटी”।

बुशरा कहती है कि मेरे घर जो भी आता था वो अम्मी अब्बू से कहता था कि इस लड़की को कलक्टर बना दो। यह बात मेरे दिमाग में घुस गई। उम्र कम होने की वजह से यूपीएससी का इम्तहान नही दे पाई तो जेआरएफ का इम्तिहान दिया।

इसके बाद बुशरा ने पहले ही प्रयास में जेआरएफ की परीक्षा भी पास कर ली और एएमयू से डिस्ट्रेस मैनेजमेंट में पीएचडी कर अपने नाम से पहले डॉक्टर लिखवा लिया। यहीं उन्होंने अम्मार हुसैन से शादी कर ली। इंजीनियर अम्मार हुसैन और बुशरा दोनों इसके बाद सऊदी अरब चले गए। अम्मार वहाँ जीजान यूनिवर्सिटी में पढ़ाने लगे और बुशरा एक कम्पनी में बड़ी अफसर बन गई। अच्छी नौकरी, शानदार पैकेज को छोड़कर बुशरा भारत लौट आई और शौहर मोहतरम को भी ले आई।

बुशरा कहती है “वतन वापसी की सिर्फ़ एक वजह थी ‘राष्ट्रप्रेम’ वतन से बेपनाह मोहब्बत, मैं अक्सर यह सोचती थी कि जो इल्म मैंने हिंदुस्तान में अपने मुल्क के बाशिंदोँ से सीखा है, उससे पैदा हुई स्किल का लाभ भी अपने ही मुल्क के बाशिंदोँ को मिलना चाहिए, यह उनका हक़ है।

उनके पति अम्मार हुसैन बताते हैं इसके बाद इन्होंने कोल इंडिया में जॉब कर ली, उनके दो बच्चे हो गये। उनकी पत्नी की चार मेजर सर्जरी हुई। दस साल का अरसा हो गया मगर अंदर से कलक्टर बनने की खवाइश जोर मारती रही।

बुशरा आगे बताती हैं ,मैंने ईमानदारी से नौकरी की। बतौर माँ अपना फर्ज निभाया।एक शौहर का ख्याल रखने वाली बीवी भी बनी। लगातार हो रही सर्जरी से होने वाले दर्द को बहाना नही बनाया और अब डिप्टी कलक्टर बन गई।

एएमयू से पीएचडी कर रहे अम्मार हुसैन अलीगढ़ के ही रहने वाले हैं।  वो कहते हैं आदतन यह गाड़ी में भी आगे ही बैठती है। जो ठान लेती है वो हर क़ीमत पर कर गुजरती है।

कन्नौज के युवा मोहम्मद अकमल कहते हैं ” चार महीने में यह दूसरी खबर आई की सौरिख के किसी लड़की ने इतिहास रचा है। चार महीने पहले भी इसी लड़की ने कमाल किया था। बुशरा की कामयाबी यह साबित करती है कि बहाना सिर्फ कमज़ोर इच्छशक्ति वाले लोगो के पास होता है। वो सचमुच सकारात्मकता की एक मिसाल है और कन्नौज के हर घर मे उनकी बात होती है ”।

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