लॉकडाऊन: ग़रीबों की मदद का ‘मॉडल’ बन गया है सहारनपुर

उत्तर प्रदेश का जनपद सहारनपुर में  स्थानीय लोगों ने लॉकडाऊन के दौरान ग़रीबों को राशन उपलब्ध कराने की अनोखी नज़ीर पेश की है। यहां कई ग़ैर राजनीतिक समूह जरूरतमंदों की मदद को सामने आए हैं।इनमेंं ‘हेल्प फ़ॉर नीडी नाम’ वाले एक व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से जुटे लोग रोजाना 5 हजार लोगों को खाना खिला रहे हैं। सहारनपुर में कई तरह के लोग स्थानीय निवासियों की मदद के लिए आगे आएं हैंं। इसमें रोजाना 20 हजार लोगों तक खाना पहुंचाया जा रहा है। बाक़ायदा एक मुहिम चल रही है कि किसी को भूखा नही सोने देंगे। इस मुश्किल वक़्त में यह बेहद अच्छी बात है।

आसमोहम्मद कैफ़।Twocircles.net

सहारनपुर। रियाज़ हाशमी बेपरवाह और मूडी किस्म के इंंसान हैं। रियाज़ अब 50 पार कर रहे हैं।कई बड़े ओहदे उन्हें अपनी टशन में ठुकरा दिए। कुछ लोग उन्हें सनकी भी कहते हैं क्योंकि रियाज़ वही करते हैं जिसे उनका दिल चाहता है। इस बार उनकी तुनकमिज़ाजी पॉज़िटिव एनर्जी में तब्दील हो गई है। उनके जुनून ने इस बार उनकी ज़िंंदगी का सबसे तसल्लीबख़्श काम करा दिया है। सहारनपुर में उनकी हर तरफ़ चर्चा है।


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रियाज़ हाशमी अब सहारनपुर लॉकडाऊन में हज़ारों गरीबोंं के चूल्हे तक रोटी पहुंचाने का नायाब ज़रिया बन गए हैं। लॉकडाऊन की घोषणा तक उनका ऐसा कोई प्लान नही था। मगर 21 दिन के लंबे समय मेंं उन्हें भविष्य की बेचैनी दिखाई दी। इसी रात को उनके बनाया हुआ एक व्हाट्सएप ग्रुप अब सहारनपुर के लोगोंं के लिए सबसे बड़ा मददगार बन गया है। उनका यह ग्रुप अब तक 50 हजार से ज्यादा लोगोंं को खाना खिला चुका है। दो हज़ार से ज्यादा परिवार को 14 दिन का राशन दे चुके हैं। इसमे आटा, चावल, चीनी, तेल जैसी चीजें होती है।

रियाज़ बताते हैंं, ‘मुझे 22 मार्च को जनता कर्फ़्यू के बाद ही लग रहा था कि लॉकडाऊन होने जा रहा है।मगर वो 21 दिन का होगा यह ख़्याल भी नही था। जैसे ही इसकी घोषणा हुई थी तो समय सिर्फ 4 घण्टे मिले और बाजार में भारी भीड़ पहुंच गई।

अफ़रातफरी मच गई, बुरी तरह कालाबज़ारी होने लगी। सच कहूं तो ख़ुद हमारे घर मेंं एक सप्ताह का राशन था। कोई भी अपने घर राशन जमा कर नही रखता है। मैं सहारनपुर की नस नस से वाकिफ़ हूँ। मैं जानता था इस शहर में एक लाख आदमी रोज़मर्रा के काम वाले हैं। वो रोज़ कुआं खोदते है और पानी पीते है। मेरा अनुभव यह भी बता रहा था। यहां 20 हज़ार से ज़्यादा सिर्फ लकड़ी का काम करने वाले मज़दूर है। इनमे ज़्यादातर बाहरी है। मैं डर गया। मैं अपने भाई और बेटे से इस पर बात कर ही रहा था कि एक और बड़ी बात हो गई। मेरे बेटे को एक फोन आया वो खाताखेड़ी से था।यह सहारनपुर का एक मोहल्ला है। उसमें कोई लड़का किन्हींं विधवा लड़कियों के बारे में कुछ बता रहा था। जो कुछ उसने बताया उससे मैं हिल गया। उसने बताया कि यहां एक घर मे 3 सगी बहन रहती है वो तीनों ही बेवा है। इस अफ़रा-तफ़री के बीच जब सब राशन खरीदने दुकान पर दौड़ रहे थे, तो इन्होंने भी ऐसा सोचा मगर इनके पैसे नहींं थे। तब इन्होंने अपने पड़ोसी को 300 रुपये के अपने बर्तन बेच दिये और उसका राशन ख़रीद लिया।”

रियाज़ यह बताते हुए रोने लगते हैं और कहते हैं, ‘ग़लती उस पड़ोसी की तो थी। मगर मुझे लगा यह मेरी भी ग़लती है। यहां के तमाम नेताओं, अमीरों, व्यापारियों और सरकारी अमला इसका दोषी है।मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई। इन लड़कियों की मदद तो मैंने तुरंत कर दी। मगर अब मैं सबकी मदद करना चाहता मगर मेरी इतनी जेब इतनी भारी नही थी। अगला काम बड़ा था जिसमे मुझे हजारों लोगोंं की मदद करने का जुनून पैदा होने लगा था। मैं सच कह रहा हूँ मैं इस रात को बिल्कुल नही सो पाया मुझे नींद ही नही आई।”

मैंने रात में ही अपने दोस्तों से बात की और एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया। इसका नाम हमने ‘कोविड-19 हेल्प फ़ॉर नीडी’ रख दिया। इसके बाद हमने साथियों से मदद मांगनी शुरू की। ग्रुप के साथी गुरप्रीत सिंह बग्गा ने लंगर सेवा की पेशकश की। कुछ लोगोंं ने राशन और कुछ सेनिटाइज़र और मास्क की पेशकश कर दी। इसके लिए हमने वॉलंटियर टीम बनाई। मोहल्लों में अपने संपर्क के आधार पर इनपुट लिया। थोक के भाव कम रेट में अच्छा राशन लिया। सहयोगियों से सीधे राशन विक्रेता के अकॉउंट में पैसा भेजने का अनुरोध किया गया ताकि पूरी पारदर्शिता बनी रहे।

रियाज़ बताते हैं कि हमें बहुत अच्छा रिस्पॉन्स मिला। लोगो ने दिल खोलकर मदद की और लंगर की कमान गुरप्रीत सिंह बग्गा ने संभाल ली। 18 जगह भूखे लोगोंं के लिए लंगर शुरू कर दिया गया। दस दिनों में लगभग 40 हजार लोगों ने यहां खाना खाया। गुरप्रीत बग्गा ने खाना खाने वालों की इसी ग्रुप में शुक्रवार की 3890 की संख्या पोस्ट की है।

रियाज़ कहते हैं कि हालांकि सहारनपुर में कुछ और लोग भी है जो यह अच्छा काम कर रहे हैं मगर हमारे ग्रुप की सबसे खास बात यह है कि इसमें हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई तो है ही, साथ व्यवसायिक विविधता भी है। इंजीनियर, डॉक्टर, पत्रकार और अधिकारी है। सभी दिल से लगें है और पूर्णतया ग़ैर राजनीतिक है। उन्हें इस मदद से कोई लाभ नहींं लेना है। यह मानवता की सेवा है।

उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और पंजाब जैसे राज्यों के बॉर्डर वाले जनपद सहारनपुर में प्रशासन खाने के इंतेजाम को लेकर सबसे अधिक संतुष्ट है। लगभग एक लाख परिवार वाले इस शहर में कुछ लोगो ने क़सम खाई है कि वो किसी को भूखा नहींं सोने देंगे। स्थानीय प्रशासन ने भी इन लोगोंं का ज़र्बदस्त सहयोग किया है। इस लॉकडाऊन के बाद अगर किसी शहर में लोगो को खाने की सबसे कम समस्या हुई है तो वो निश्चित तौर पर सहारनपुर हैं।यहां लोगो ने अपनी ज़िम्मेदारी को निश्चित तौर पर गंभीरता से लिया है।

एक अन्य जगह 32 साल के आसिफ़ हवारी लिंक रोड पर रहते है। उनके यहां रोज़ 200 लोगोंं का खाना बनता है। और और वो अब तक 1200 राशन किट बांट चुके हैं। इनकी ख़ास बात यह है कि उन्होंने इसके लिए किसी से चंदा नही लिया और वो यह सब अपने पास से कर रहे हैं। आसिफ़ कहते हैं, ‘कोरोना एक ख़तरनाक बीमारी है। यह अमीर ग़रीब नहींं देखती। वैसे भी आजकल माहौल भी अजीब हो गया है। हमें लगता है कि पैसा बचाकर नहींं ले जाया सकता जो भी कमाया है वो सब ख़र्च कर रहा हूँ। बहुत तसल्ली मिल रही है।

आसिफ़ बताते हैं कि जब लोगोंं को राशन देने जाते हैं तो कई बार हम घर के बाहर ही राशन किट रख आते हैं। बस घर देखकर अंदाजा लगा लेते हैं कि इनकी ज़रूरत क्या है! हमने देखा है कि मर्द कुछ जगह राशन नही पकड़ते। तब महिलाये लेती हैंं। तब उनके आंखे गीली होती है। आसिफ़ कहते हैं, ‘हजरत अली ने कहा है कि जब किसी की मदद करो तो उसकी आंखों में मत देखो एक बार मेरे से ग़लती हो गई अब मैं नज़र नही उठाता हूँ।’ अब आसिफ़ ने दूध भी बांटना शुरू कर दिया है। आसिफ़ कहते हैं अपने गुनाह माफ़ करा रहा हूँ।’

सहारनपुर में लोगोंं को लॉकडाऊन की सबसे बड़ी चिंता ऐसे लोगो ने दूर कर दी है। हालांकि ऐसे वक्त में स्थानीय सांसद के गायब रहने पर सवाल उठ रहे हैं। बसपा सांसद फज़लुर्हमान के बारे में उन्हींं के पड़ोसी शहाबुद्दीन कहते हैं, ‘अभी चुनाव में साढ़े चार साल है वो आ जाएंगे।’ सहारनपुर में तमाम राजनीतिक शख़्सियत ऐसे समय मे दड़बे में हैंं।लोग इन सियासी हज़रात से भी नाराज़ हैं।

बस एक अपवाद है वो है इमरान मसूद। इमरान मसूद अकेली राजनीतिक शख़्सियत हैंं जो इस वक़्त भी सड़क पर हैंं। उनकी निगरानी में अब तक हज़ारोंं परिवारों को खाना पहुंच चुका है। इमरान कहते हैं, ‘हमने क़सम खाई है कि किसी को भी भूखा नहींं सोने देंगे। कम से कम सहारनपुर में खाने की कोई दिक्कत नही होगी। जो भी ग्रुप इसमे काम कर रहे हैं वो सब खुदा की रज़ा के लिए कर रहे हैं किसी को कोई लालच नही है। इनमे से आधे से अधिक तो किसी पार्टी में भी नही है। सब इंसानियत के लिए कर रहे हैं।

छिपीयान के हाफिज़ इस्लाम इन सबकी की मदद से बहुत खुश हैंं। वो कहते हैं, ‘हक़ अदा कर दिया है। सचमुच। सही वक्त पर लोगोंं की मदद कर दी है। कम से कम सहारनपुर में खाने की समस्या को पैदा नही होने दिया है। अगर लोगोंं मेंं आपस में एक दूसरे की मदद करने का ऐसा ही जज़्बा रहेगा। कोई कोरोना कुछ नही कर पायेगा”।

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