यूसुफ़ अंसारी
देश के 101 पूर्व आएईएस, आईपीएस और अन्य उच्च सेवाओं में रहे अधिकारियों ने देश भर में मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने वालों और उनके सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार के लिए बहुसख्यक समाज के लोगों को उकसाने वालों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रनवाई की मांग की है। इस मांग को लेकर इन पूर्व अधिकारियों ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों और केंद्रशासित प्रदेशों के उपराज्यपालों को एक ख़त लिखा है। इस ख़त की प्रति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी भेजी गई है। साथ ही पत्र को सार्वजनिक भी कर दिया गया।
इस ख़त में इस बात को लेकर गहरी चिंता ज़ाहिर की गई है कि कोरोना वायरस के क़हर के बीच मुसलमानों को अलग-अलग तरीक़ों से बदनाम किया जा रहा है। देश के कई हिस्सों मुसलमानों के सामाजिक और आर्थिक बहगिष्कार की ख़बरें आ रहीं हैं। ख़त में कहा गाया है कि मार्च के महीने में हज़रत निज़ामुद्दीन स्थिति तबलीग़ी जमाते के एक धार्मिक कार्यक्रम में दो-तीन हज़ार लोगों के जमा होने की घटना की वजह से पहले मुसलमानों के सिर देश भर में कोरोनो फैलाने का ठीकरा फोड़ने की शुरुआत हुई और बाद में देश भर से उनके सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार की ख़बरे आने लगीं।
इन पूर्व अधिकारियों ने ख़त की शुरुआत में हीं साफ़ कर दिया है कि वो किसी राजनीतिक विचारधारा से ताल्लुक़ नहीं रखते। वो लिखते हैं, ‘हम भारत भर से अखिल भारतीय और केंद्रीय सेवाओं से संबंधित पूर्व सिविल सेवकों का एक समूह हैं। एक समूह के रूप में, हम किसी विशेष राजनीतिक विचारधारा की सदस्यता नहीं लेते हैं, बल्कि उन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हैं जिनका भारतीय संविधान पर असर पड़ता है। हम जून 2017 में संवैधानिक आचरण समूह के रूप में एक साथ आने के बाद से कॉन्क्लेव आयोजित कर रहे हैं और देश के लिए चिंता वाले मामलों पर विभिन्न सरकारों को ‘खुला ख़त’ लिख रहे हैं।‘
इन पूर्व अधिकारियों ने आगे लिखा है, ‘हमें बहुत दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि ’ दिल्ली के हज़रत निज़ामुद्दीन मरकज़ में तब्लीग़ी जमात की बैठक के बाद देश के कुछ हिस्सों में मुसलमानों के उत्पीड़न की रिपोर्ट आई हैं। इनमें से कुछ घटनाओं की तरफ़ हम आपका ध्यान खींचना चाहते हैं।’
ख़त में आगे कहा गया है कि जब देश में COVID-19 के मामले सामने आने लगे थे, तब सामाजिक दूरी बनाए रखने के सिद्धांत की अनदेखी के लिए जमात की आलोचना की गई थी। हालाँकि, इस तरह की यह एकमात्र घटना नहीं थी। कुछ राजनीतिक और धार्मिक संगठनों के साथ मीडिया के एक बड़े वर्ग ने कोविड-19 को सांप्रदायिक रंग देने की जल्दबाज़ी दिखाई। इसमें देश के अलग-अलग हिस्सों में वायरस फैलाने में तब्लीग़ी जमात के इरादों को भी शामिल किया गया। हालांकि जमात का यह आयोजन दिल्ली सरकार की सलाह को नज़रअंदाज़ करते हुए किया गया। इसमें कोई शक नहीं कि जमात की यह हरकत निंदनीय थी। लेकिन मीडिया का इसे सांप्रदायिक बनाकर पूरे मुस्लिम समुदाय तक फैलाने की कोशिश इससे भी ज़्यादा ग़ैर ज़िम्मेदाराना और निंदनीय है।
पूर्व अधिकारियों ने अपने ख़त में आरोप लगाया है कि इस तरह की मीडिया कवरेज से देश के कुछ हिस्सों में मुस्लिम समुदाय के प्रति शत्रुता बढ़ी है। फेक वीडियो क्लिप में कुछ मुस्लिम विक्रेताओं को फल और सब्जियों पर थूकते हुए दिखाया गया। दावा किया गया कि वो कोविड-19 फैलाने के लिए ऐसा कर रहे थे। सब्जी विक्रेताओं को उनके धर्म के बारे में पूछा गया है। यहां तक कि मुस्लिम नामों का उल्लेख करते हुए उनके साथ भी मारपीट की गई है। इस तरह की घटनाओं की वीडियो रिकॉर्डिंग इस समय सोशल मीडिया के माध्यम से समाज में फैल रहीं है। महामारी से पैदा हुए भय और असुरक्षा की वजह से देश कई हिस्सों में मुस्लिम समुदाय को अलग-थलग किया जा रहा है। बाकी लोगों की सुरक्षा के लिए मुसलमानों को सार्वजनिक स्थानों से बाहर रखने के लिए लोगों के उकसाया जा रहा है।
होशियारपुर से ऐसी ख़बरें आ रही हैं कि मुस्लिम गुर्जरों ने पारंपरिक रूप से पंजाब से हिमाचल प्रदेश में अपने मवेशियों के साथ प्रवास किया। उनका प्रवेश रोकने के लिए दूसरी तरफ ड़कट्ठा हुई भीड़ वजह से तनाव बना हुआ है। तनाव की आशंका के कारण पुलिस ने मुस्लिम गुर्जरों को सीमा पर प्रवेश नहीं करने दिया। वहां से आ रहीं तस्वीरें बता रही हैं कि पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को स्वान नदी के तट पर शरण लेने के लिए मजबूर किया गया। इस नाकाबंदी के बाद सैकड़ों लीटर दूध सड़कों पर ही बहा देना पड़ा। क्योंकि बहुसंख्यक समाज के लोगों ने इसे दूध ख़रीदने से इंकार कर दिया। वहीं बिहार के बिहार शरीफ़ और नालंदा ज़िले के एक बाज़ार की भी झंझोड़ने वाली तस्वीरें आईं है। झंडे के साथ ग़ैर-मुस्लिम विक्रेताओं की गाड़ियों पर लगाए गए झंडो की तस्वीरें दिखाती हैं कि ख़रीदारों को केवल ऐसी गाड़ियों से उपज खरीदनी चाहिए। इन घटनाओं से साफ़ लगता है कि मुसलमानों को सामाजिक रूप से अलग-थलग करने की साज़िश हो रही हैं।
इन पूर्व अधिकारियों ने कहा है कि देश के कई हिस्सों से मुसलमानों को अस्पतालों और स्वास्थ्य सुविधाओं से दूर रखने या उके साथ भेदभाव की खबरें भी आ रही हैं। ये खबरें ज़्यादा परेशान करने वालीं है। ऐसी एक ख़बर वाराणसी स आई है। बताया जाता है कि 8 अप्रैल को मदनपुरा के मुस्लिम बहुल इलाक़े की एक बुनकर फौज़िया शाहीन को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में सर सुंदरलाल अस्पताल से निकाल दिया गया। उसके बाद भी उसने अस्पताल के बाहर एक बच्चे जन्म दिया। सोशल मीडिया में एक हंगामे के बाद पुलिस ने मेरठ में एक कैंसर अस्पताल के प्रबंधन के खिलाफ मामला दर्ज किया है। इस अस्पताल नें एक विज्ञापन निकाला था जिसमें कहा गया था कि वो मुसलमानों का इलाज तब करेगा करेगा जब वो कोरोनोवायरस के परीक्षण की नकारात्मक रिपोर्ट दिखाएंगे। ख़त में आगे कहा गया है कि अहमदाबाद में कोरोनवायरस के मुस्लिम रोगियों के लिए अलग वार्ड बनाए जाने की भी ख़बरें आईं हैं।
इसके अलावा ऐसा भी ख़बरें आ रही हैं कि कई जगहों पर मुस्लिम परिवारों को राशन और नक़दी की विशेष मदद देनें से इंकार कर दिया गया है। पूरा देश अभूतपूर्व चुनौती का सामना कर रही है। हम उन चुनौतियों को सह सकते हैं, ज़िंन्दा रह सकते हैं और दूर कर सकते हैं जो इस महामारी ने हम पर एक साथ रहकर और एक-दूसरे की मदद करके की हैं। हम उन मुख्यमंत्रियों की सराहना करते हैं, जो सामान्य तौर पर और विशेष रूप से, इस महामारी के संबंध में, अपने दृष्टिकोण में सर्वधर्म समभाव वाले रहे हैं।
हमें याद रखना चाहिए कि पारंपरिक रूप से भारत ने मुस्लिम देशों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखे हैं। उन्हें हमेशा से भारत के अच्छे दोस्त के रूप में देखा गया है। हमारे देश के लाखों नागरिक इन देशों में रहते हैं और काम करते हैं। हाल के घटनाक्रमों को लेकर इन देशों में गंभीर चिंता व्यक्त की गई है। हमें अपनी गैर-भेदभावपूर्ण कार्रवाई और राहत उपायों के माध्यम से यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अल्पसंख्यकों को भारत में डरने की कोई बात नहीं है। इससे इन देशों की ग़लतफ़हमी को दूर करने में मदद मिलेगी और वहाँ के बड़े पैमाने पर भारतीय प्रवासियों के सामने आने वाली संभावित परेशानियों से बचा जा सकता है।
ख़त के आख़िर में सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों और केंद्र शासित प्रदेशों के उपराज्यपालों से मुसलमानो के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने वालो के पर सख़्त क़ानूनी कार्रवाई करने की मांग की है। साथ ही यह सुनिश्चित करने के लिए ज़रूरी क़दम उठाने की मांग की है कि लटाक डाउन के मक़सद को हासिल करने के लिए सभी लोग बार-बार हाथ धोने और मास्क पहन कर ही बाहर निकलने की आदत डालें। ख़त ‘सत्यमेव जयते’ के नारे के साथ समाप्त होता है।