आसमोहम्मद कैफ़ । Twocircles.net
“तूफानों से आंख मिलाओ,सैलाबों पर वार करो
मल्लाहों का चक्कर छोड़ो,तैर कर दरिया पार करो”
जाने-माने उर्दू शायर लाखों दिलों की धड़कन मुशायरो में अपनी जिंदादिली के लिए मशहूर राहत इंदौरी रात साढ़े 9 बजे सुपुर्द खाक़ कर दिए गए। उन्हें छोटी खजरानी के कब्रिस्तान में दफनाया गया। राहत साहब का आज शाम पांच बजे इंतेकाल हो गया था। आज ही उन्होंने ट्वीट करके बताया था कि उन्हें कोरोना हो गया है। वो 70 साल के थे।
दो गज सही ये मेरी मलकियत तो है
ऐ मौत तूने मुझे ज़मीदार कर दिया !
मध्यप्रदेश के अरबिन्दो अस्पताल में डॉक्टर विनोद भंडारी के अनुसार उन्हें दो बार दिल का दौरा पड़ा। वो 60 फ़ीसद निमोनिया से ग्रसित थे। उन्हें कोरोना पॉजिटिव पाएं जाने के बाद रविवार को अस्पताल लाया गया था। इंदौर के डीएम मनीष सिंह ने भी कोरोना संक्रमण से उनके मौत होने की पुष्टि की उन्होंने बताया कि राहत इंदौरी ह्रदय रोग, किडनी रोग और मधुमेह से भी पीड़ित थे”।
मज़ा चखा के ही माना हूँ मैं भी दुनिया को
समझ रही थी कि ऐसे ही छोड़ दूंगा उसे
राहत इंदौरी के निधन के बाद शायरी जहाँ ,कविता जगत और बॉलीवुड में भी मातम सा पसरा है। उन्होंने सैकड़ो की तादाद में फ़िल्मी गाने भी लिखे थे। डिजिटल दुनिया के इस दौर में तमाम प्लेटफॉर्म पर उनके प्रशसंकों ,शायरों,कलाकारों और राजनीतिक लोगों में जबरदस्त दुःख का माहौल देखने को मिल रहा है,अदब की दुनिया के तमाम लोग बुरी तरह दुःखी है। शायर इमरान प्रतापगढ़ी ने पिछले कुछ घण्टों में राहत इंदौरी पर 10 ट्वीट किए है। कुमार विश्वास लिख रहे है कि ऐ ईश्वर ! बेहद दुःखद ! इतनी बेबाक जिंदगी और ऐसा तरंगित शब्द सागर इतनी खामोशी से विदा होगा, कभी नही सोचा था। राहुल गांधी ने भी राहत इंदौरी साहब को “अब ना मैं हूँ ना बाकी है ज़माने मेरे,फिर भी मशहूर है शहरों में फसाने मेरे” लिखकर याद किया है।
अब न मैं हूँ ,ना बाकी है फ़साने मेरे
फिर भी मशहूर है शहरों में फ़साने मेरे
जिंदगी है तो नए ज़ख्म भी लग जाएंगे
अब भी बाकी है कई दोस्त पुराने मेरे
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उनकी मौत पर दुःख जताया है और इसे कभी न पूरा होने वाला नुकसान बताया है। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी उनके साथ अपनी एक पुरानी फ़ोटो पोस्ट की है और दुःख जताया है। राहत इंदौरी की जिंदगी बेहद दिलचस्प रही है वो शुरुवाती दिनों में पेंटर का काम करते थे। दुनियाभर में सबसे मशहूर उर्दू शायर बनने के बाद वो मुशायरा में सबसे अलग अंदाज के लिए जाने जाते थे वो अक्सर सबसे बाद में पढ़ते थे और सिर्फ उन्हें सुनने के लिए हजारों लोग सुबह तक डटे रहते थे।
अगर खिलाफ है,होने दो जान थोड़ी है
ये सब धुंआ है,कोई आसमान थोड़ी है
लगेगी आग तो आएंगे घर कई जद में
यहां पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है
मैं जानता हूँ दुश्मन भी कम नही लेकिन
हमारी हथेली पे जान थोड़ी है
हमारे मुँह से जो निकले वही सदाकत है
हमारे मुँह में तुम्हारी जबान थोड़ी है
जो आज साहिबे मसनद है कल नही नही होंगे
किरायदार है जाती मक़ान थोड़ी है!
उनके इंतेकाल की ख़बर के बाद सांसद असदुद्दीन ओवेशी ने कहा है कि वो स्तब्ध है। वो अल्लाह से उनकी मग़फ़िरत के लिए दुआ करते हैं। ओवेशी ने हैदराबाद में उनकी आमद की एक पुरानी वीडियो भी साझा की है। राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी उनके निधन पर गहरा दुख जताया है। राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे सिंधिया ने कहा है कि उनका अंदाज अदुभुत था। यह एक बड़ा नुकसान है।
फूलों की दुकानें खोलो,खुश्बू का व्यापार करो
इश्क़ खता है तो ,ये खता एक बार नही सो बार करो
राहत इंदौरी के बेटे और शायर सतलज राहत ने बताया कि उनके पिता पिछले 5 महीने से घर पर ही थे और सिर्फ डॉक्टर के बुलावे पर ही बाहर जाते थे। वो पिछले 5 दिनों से बेहद बेचैनी महसूस कर रहे थे। उन्हें सुपुर्द खाक़ करने से पहले उनके परिवार ने अपील जारी की थी कि लोग घरों से दुआ करें और कब्रिस्तान न पहुंचे।
सभी खून है शामिल यहां की मिट्टी में
किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है
जनवरी 1950 को इंदौर में जन्में बेहद ग़रीबी में पले बढ़े राहत इंदौरी के पिता रफतुल्लाह क़ुरैशी एक कपड़ा मिल में मुलाजिम थे और मक़बूल निशा एक आम औरत थी। राहत अपने पिता की चौथी संतान थे। उन्होंने बरकुतल्लाह यूनिवर्सिटी से उर्दू में एमए किया था। बाद में उन्होंने उर्दू साहित्य में पीएचडी की। अपने ख़ास अंदाज और तुनक मिज़ाजी के लिए मशहूर राहत इंदौरी मुशायरो के सबसे लोकप्रिय और महंगे शायर थे। राहत इंदौरी अपने स्कूल की हॉकी और फुटबाल टीम के भी कप्तान रहे थे। सिर्फ 10 साल की उम्र में उनकी पेंटिंग इंदौर में चर्चित हो गई थी।
मैं जब मर जाऊं मेरी पहचान लिख देना
लहू से मेरी पेशानी पर हिंदुस्तान लिख देना
राहत ने पहली शायरी 19 साल की उम्र में पढ़ी थी। उनका अंदाज दिल को छू लेता था,उनकी आवाज़ में दहाड़ होती थी। वो झूमते हुए पढ़ते थे। वो जो भी कहते थे वो एक शायरी सा लगता था। लगभग 30 साल तक मुशायरा मंच पर उनकी बादशाहत रही। उन्होंने खुद्दार, बेग़मजान, इश्क़,मर्डर और मिशन कश्मीर जैसी फिल्मों के गीत भी लिखे।
अब के जो फैसला होगा वह यही पे होगा
हमसे अब दूसरी हिज़रत नही होने वाली
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