मीडिया का झूठा षड्यंत्र और जमातियों की अदालत में जीत का मतलब !

नेहाल अहमद |Twocircles.net 

एक झूठ को अगर बार-बार नियमित रूप से अगर प्रोपैगैंडा के लिए दोहराया जाये तो वह सच लगने लगता है और जब हमारा समाज हर ख़बर को पुनः जाँच करने वाला न हो, फारवर्ड करने वाला हो तो प्रोपैगैंडा का काम और आसान हो जाता है। यह प्रोपैगैंडा कोरोनावायरस के दौर में तब्लीगी जमातियों के ख़िलाफ़ देखने को मिलता रहा जिसे समाज का एक तबका दिन-रात ख़बरों में देखते उसी को सच मानने लगा और आख़िर में अब जाकर कोर्ट ने कह दिया कि वह प्रोपैगैंडा था।


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कोरोनावायरस के शुरुआती दौर में लोकडाउन में जहाँ हज़ारों की तादाद में बड़े शहरों में फँसे प्रवासी मजदूर अपने गाँव के लिए शहरों से वापसी के लिए पैदल ही घर को कूच कर रहे थे वहीं हमारा मीडिया क्या कर रहा था ? हमें भूलने की आदत है लेकिन अगर हम याद करें तो हमें याद आएगा कि किस तरह शुरुआती दौर में वो दिल्ली के निज़ामुद्दीन मरकज़ के तब्लीगी जमातियों को मोहरा बना रहा था। जो कई हफ़्तों तक ख़बरों में चलता रहा। सत्ता के साथ मेलजोल का खेल मीडिया का भले ही पूरी तरह नया न हो लेकिन यह नफ़रत तो नई लगती है । जहाँ कई देश कोरोना वायरस से निजात के लिए दवाई खोजने में लगे थे, वहीं हमारा मीडिया जमातियों को खोज रहा था। यह अलग बात है कि वे जमाती छुपे हुए नहीं थे. जमातियों को लेकर मीडिया उनके ‘छुपे’ होने और दूसरे समुदाय के लोगों के ‘फंसे’ होने की बात करता था। वह मुसलमानों को एक अपराधी की नज़र से देख रहा था या यह कहना ज़्यादा उचित होगा कि आपको वो ‘चश्मा’ दे रहा था जिसे पहन कर मुसलमान को देखा जाए तो वह अपराधी नज़र आये। झूठी ख़बरों का सिलसिला एक के बाद एक जारी रहा। कई शहरों की स्थानीय पुलिस ने ट्विटर पर बड़े-बड़े मीडिया चैनलों की झूठी ख़बरों का खंडन किया. कहा भी गया  कि आपके द्वारा चलाई जा रही यह ख़बर ग़लत एवं भ्रामक है. ये मीडिया के विश्वसनीयता के लिए बड़ा ख़तरा है ।  कहने की ज़रूरत नहीं कि ऐसे मीडिया तंत्र को एक ख़ास किस्म की राजनैतिक सत्ता का संरक्षण प्राप्त है ।

ऐसा नहीं है कि मीडिया के अफवाहों एवं वैचारिक आतंकवाद का प्रभाव हमारे समाज पर नहीं पड़ा जमातियों को लेकर की जा रही एक के बाद एक बहस के बाद  ही देखा गया कि किस तरह सड़क पर मुस्लिम फल-सब्ज़ी विक्रेताओं को निशाना बनाया गया. उन्हें ‘लज्जित’ करने का काम किया गया. उनके अंदर अपराधबोध की भावना पैदा करने की कोशिश की गई. हॉस्पिटल में मुसलमान को भेदभाव का ख़ास तौर पर सामना करना पड़ा. झारखण्ड, राजस्थान, गुजरात कई जगहों में यह देखा गया. उत्तर प्रदेश के मेरठ में एक प्राइवेट अस्पताल ने तो बकायदा इश्तेहार जारी कर कहा कि जिन मुस्लिम मरीज़ों के पास कोरोना का नेगेटिव सर्टिफिकेट नहीं है उसका इलाज नहीं करेंगे।

मीडिया ने क्या यह सवाल किया कि नमस्ते ट्रंप जैसे कार्यक्रम क्यों हुए ? मध्यप्रदेश में सरकार बनाने गिराने का काम क्यों होता रहा ?  9 अप्रैल को दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने दिल्ली सरकार को पत्र लिखकर कहा कि कोरोना के मामले में तब्लीगी को लेकर अलग से रिपोर्टिंग क्यों हो रही है क्योंकि दिल्ली सरकार अलग से प्रेस कॉन्फ्रेंस करती थी । क्यों एक समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है ? याद कीजिए कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली निज़ामुद्दीन मरकज़ के कार्यक्रम के संचालक मौलाना पर एफआईआर के आदेश मार्च के अंत में ही दे दिये थे। मरकज़ के बारे में मार्च के अंत में एक वीडियो में अरविंद केजरीवाल यह बोलते दिखते हैं कि “इन 97 केसेज़ में से 24 केस मरकज़ के हैं, मरकज़ के पूरे घटनाक्रम पर मैं अभी (आगे) बात करूँगा” । मरकज़ को लेकर एक हवा बनाने में भले ही आप उसे आंशिक रूप कहें या कुछ और लेकिन मुझे दिल्ली सरकार की भी भूमिका नज़र आती है। दिल्ली सरकार चाहती तो इसे एक साम्प्रदायिक रंग देने से रोक सकती थी अथवा रोकने का प्रयास कर सकती थी । दरअसल यह मुझे उस राजनीति का हिस्सा लगता है जहाँ निज़ामुद्दीन मरकज़ को लेकर कई तरफ़ से वैचारिक हमले हो रहे थे, वहाँ अरविंद केजरीवाल अनुपस्थित होकर अपने उस राष्ट्रवाद को शायद खोना नहीं चाहते होंगे जिसमें वो कभी शरजील ईमाम के साथ खड़े नहीं दिखते और  अल्पसंख्यकों के केजरीवाल होने की छवि को ज़रा सा भी पटल पर आने नहीं देते । आज भारतीय राजनीति में कमोबेश यही हो रहा है ।

दिल्ली की एक अदालत ने सोमवार को इस साल मार्च में दिल्ली के निज़ामुद्दीन में तब्लीग़ी जमात में शामिल होने पर 36 विदेशी नागरिकों के ख़िलाफ़ लापरवाही और सामाजिक दूरी के उल्लंघन के आरोप तय किये।

जानकारी के मुताबिक़ अदालत ने इन विदेशी नागरिकों के ख़िलाफ़ लगे वीज़ा उल्लंघन के आरोपों के ख़ारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि इस बात के सबूत नहीं है कि इन विदेशी नागरिकों ने तब्लीग़ी जमात के सिद्धांतों और मान्यताओं का प्रचार किया.

अदालत ने एक अन्य आदेश में 8 विदेशी नागरिकों से वीज़ा उल्लंघन के आरोपों को ख़ारिज कर दिया. इन पर लगे तब्लीग़ी जमात के कार्यक्रम में शामिल होने के आरोप भी ख़ारिज कर दिए गए. अदालत ने कहा कि इस बात के सबूत नहीं है कि इन आठ नागरिकों ने उस दौरान मरकज़ के कार्यक्रम में हिस्सा लिया। बिना आरोपों के अपने देश वापस लौटने वाला विदेशी नागरिकों का ये पहला समूह होगा.

ट्रायल अदालत ने इससे पहले 911 विदेशी नागरिकों को उनके देश वापस भेजने का आदेश दिया था जबकि 44 विदेशी नागरिकों ने मुक़दमे का सामना करने का फ़ैसला लिया था।

भले ही कोर्ट ने तब्लीगी जमातियों के ख़िलाफ़ चल रहे मीडिया के साजिशों को बेनकाब कर दिया हो लेकिन सवाल तो बनता ही है कि आम लोगों के मन में कोरोनावायरस को लेकर मुसलमानों को जिस तरह निशाना बनाया गया, जो छवि गढ़ने की कोशिश की गई उसकी भरपाई कौन करेगा ?  क्योंकि कोर्ट की फटकार की ख़बर उस स्तर तक शायद नहीं पहुँचती है जिस स्तर से संगठित रूप से जमातियों को बदनाम करने के लिए प्रोपैगैंडा कर झूठी ख़बरे फैलाई गई थी. क्या हम किसी को किसी के कपड़े से ‘पहचानने’ की फिर कोशिश करेंगे ? अगर नर्सों पर थूकने जैसी झूठी और मनगढ़ंत ख़बरों पर आपको फिर से भरोसा करना है तो फिर आपसे क्या कहना चाहिए !

बम्बई और दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले आने के बाद बिहार के किशनगंज ज़िले के पानी बाग़ स्थित मस्जिद के ईमाम अबू रेहान कहते है कि ” दावत ओ तब्लीग (तब्लीगी जमाअत) है इस जमाअत के ताल्लुक़ से पूरे हिंदुस्तान में कोरोना महामारी के वक़्त उनको लपेटा गया, तरह तरह से प्रोपैगैंडा कर उन्हें फँसाया गया, और नाजायज़ एवं ग़लत तरीके से उन पर आरोप लगाया गया जो बिल्कुल ग़लत था. मीडिया, इलेट्रॉनिक मीडिया ख़ास कर गोदी मीडिया ने  तरह तरह के ग़लत वीडियो से इसको बदनाम करने की कोशिश की गई. आखिरकार अल्लाह तबारक व तआला की तरफ़ से बात खुल कर सामने आ गई कि सच क्या है और ग़लत क्या है । दावत ओ तब्लीग वाहिद व मुंफरिद एक ऐसी जमाअत है जिसमें न कोई सियासी बात होती है और न किसी की कोई मुख़ालफ़त की जाती है और न किसी मसलक की बात की जाती है, सिर्फ़ और सिर्फ़ अल्लाह और उसके रसूल की बात की जाती है, दुनियाँ और आख़िरत की बात की जाती है, लोगों के इस्लाह की बात की जाती है, माशरे, समाज को अच्छा बनाने की बात की जाती है, मस्जिदों को अल्लाह के घरों को आबाद करने की बात की जाती है । इंसानियत और भाईचारगी का पैग़ाम दिया जाता है । ऐसी मुंफरीद और वाहिद जमाअत को बदनाम करना और उनके ऊपर  कीचड़ उछालना बुरी और बात थी जिसको हिंदुस्तान के गोदी मीडिया ने उछाला और इसे लेकर लोगों के मन में ग़लत छवि पहुँचाने की कोशिश की । बहरहाल, अल्लाह तबारक व तआला की तरफ़ से यह बात खुल कर सामने आ गई कि दावत ओ तब्लीग साफ़ सुथरी जमाअत है । यह कुसूरवार नहीं है । इसका सुबूत बम्बई एवं दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया । मैं ऐसे मौके से तमाम मुसलमानों और ख़ास तौर से जो दावत ओ तब्लीग से जुड़े हुए हैं उन भाइयों से दरख्वास्त करूंगा कि वो सब्र एवं इस्तेक़ामत के साथ काम करें’ ।

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