कर्ज से परेशान होकर 7 बीघे के किसान इलमुदीन ने की आत्महत्या

स्टाफ़ रिपोर्टर। Twocircles.net

मुजफ्फरनगर जनपद के पुरबालियान गांव के एक किसान ने जहर पी कर खुद की जिंदगी ख़त्म कर ली। 55 साल के इलमुदीन नाम वाले इस किसान ने अपनी मौत की गोद के लिए अपनी उसी सात बीघा ज़मीन को चुना,जिसे लगातार बढ़ते कर्ज के चलते उसे खोने का खतरा हो गया था।


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शनिवार की सुबह किसान इलमुदीन का शव उसके गन्ने के खेत में पड़ा हुआ मिला। पास में ज़हर की शीशी भी मिली। इलमुदीन गुरुवार शाम से लापता था। उसके लापता होने की ख़बर को इलमुदीन के भाई ने स्थानीय मंसूरपुर थाने को दी थी। 7 बीघा जमीन के साथ चार बच्चों का पालन पोषण करने में टूट गया इलमुदीन पर स्थानीय पंजाब नेशनल बैंक से किसान क्रेडिट कार्ड से लिया गया कर्ज बोझ बन गया था।

मंसूरपुर के ही निवासी किसान  नेता राजू अहलावत के अनुसार इलमुदीन का शव उसी के खेत पर पड़ा हुआ मिला। उसके पास ज़हर की शीशी पड़ी हुई थी। यह बात बहुत अधिक पीड़ादायक है। किसानों की हालात बेहद दयनीय हो चुकी है। इस आंशका में बहुत डर छिपा हुआ है, इस तरह की आत्महत्या की संख्या बढ़ सकती है। खासकर छोटे किसान कर्ज में डूबे हुए हैं और बैंक पैसे के लिए लगातार दबाव बने रहे हैं।

पुरबालियान के पूर्व जिला पंचायत सदस्य शाक़िर अली ने बताया कि इलमुदीन उन्ही के गांव का रहना वाला था। सात बीघा ज़मीन में घर चलाना बेहद मुश्किल है। उसके चार बच्चे है। उस पर दो बैंक का कर्ज है। मुझे उसके भाई ने बताया कि बैंक उस पर लगातार तकाज़ा कर रहे थे। जबकि वो कर्ज लौटाने में असमर्थ था। अत्यधिक तनाव के चलते उसे डिप्रेशन हो गया था। बैंक का कर्ज लौटाने के लिए उसने कुछ आम लोगों से भी मदद मांगी मगर वो कामयाब नही हो पाया। बैंक की सख्ती से वो टूट गया।

भारतीय किसान यूनियन नेता राजू अहलावत के अनुसार  इलमुदीन जैसे किसान आत्महत्या के लिए इसलिए मजबूर हुए हैं क्योंकि सरकार का झुकाव कारपोरेट की तरफ होता  है। वो सभी राजनीतिक दलों को चंदा देते हैं। इसलिए हजारों करोड़ रुपये का उनका कर्ज माफ हो जाता है मगर 50 हजार के कर्ज वाला किसान आत्महत्या कर लेता है।

मंसूरपुर थाना प्रभारी मनोज चाहल बताते हैं कि सूचना मिलने पर वो खेत पर पहुंचे थे जहां सल्फास की शीशी पड़ी हुई मिली और किसान के मुंह से झाग भी निकल रहे थे।प्रथम दृष्ट्या मामला आत्महत्या का ही लगता है। परिजनों ने थाने पर दी गई तहरीर पर भी यही लिखा है।  इलमुदीन के भाई फ़िरोजुदीन के मुताबिक वो कर्ज को लेकर बहुत अधिक परेशान थे। सात बीघा जमीन उनकी मदद नही कर पा रही थी। उनपर बैंक और सोसाइटी दोनो के पैसे चढ़ गए थे।

इससे पहले लॉकडाऊन के दौरान किसान नेताओं के गढ़ सिसौली में भी एक ओमपाल नाम के किसान की गन्ने का पेमेंट न मिलने पर आत्महत्या की बात सामने आई थी। यह मामला राजनैतिक तौर पर तूल पकड़ गया था। खतौली के एसडीएम इन्द्रकांत द्विवेदी के अनुसार मर्तक किसान पर कोई कर्ज शेष नही था।

स्थानीय किसान नरेंद्र मलिक के अनुसार किसानों को सँगठित होने की आवश्यकता है आत्महत्या कोई हल नही है। सरकार किसानों के फसल के उचित दाम व समय से भुगतान का प्रबन्ध नही कर पा रही है इसलिए गरीब किसान कर्ज के मकड़जाल में फंसते जा रहे है ओर अंत मे जब कोई रास्ता नजर नही आता तो वो अपनी जान गवां रहे है । सिसौली गाँव के किसान की मौत से अभी किसान उबरे भी नही थे कि एक ओर आत्महत्या बड़ा ही दुखद विषय है। किसानों को अब  संगठित होना ही पड़ेगा, सरकारी तँत्र को निन्द्रा से जगाना होगा।

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