भारत में केंद्र सरकार द्वारा लाएं गए कृषि बिल के विरुद्ध किसानों में भारी आक्रोश है। लाखों किसान दिल्ली में एक पखवाड़े से प्रदर्शन कर रहे हैं। नई पीढ़ी के युवाओं ने इससे पहले इतना बड़ा आंदोलन नही देखा है। किसानों का यह आंदोलन सिर्फ सड़क तक सीमित नही है बल्कि गांव -गांव में इसकी लहर है। Twocircles.net ने दिल्ली पौड़ी मार्ग पर कुछ गांवों का दौरा कर इसकी पड़ताल की तो किसानों के अंदर की भारी नाराजग़ी सामने आई। यह रिपोर्ट पढिये …
आसमोहम्मद कैफ़ । Twocircles.net
दिल्ली से 120 किमी की दूरी पर बिजनोर मार्ग पर रामराज है। यह वही रामराज है जहां के सरदार जसविंदर सिंह लंदन के मेयर रह चुके हैं। रामराज में सिख समुदाय के बड़े घर है। यहां लगभग दो हज़ार सिख रहते हैं। रामराज को मिनी पंजाब भी कहा जाता है। इसी मार्ग पर गुरुद्वारा साहिब रामराज में दर्जनों सिख युवक लड्डू बना रहा है। गुरप्रीत सिंह लाड़ी बताते हैं कि दिल्ली में किसान बहुत ही जायज़ और हक़ की लड़ाई लड़ रहे हैं हम उनके साथ हैं। सर्दी बढ़ रही है इसलिए हम उनकी इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए देशी घी में बेसन और बादाम के लड्डू बना रहे हैं। इस काम मे लगें हुए बूटा सिंह और बोला सिंह कहते हैं ” किसानों की यह लड़ाई हमारे लिए ही है,सरकार को हमें सुनना ही होगा,अन्नदाता को पहले ही बहुत परेशानियॉ है उन्हें और अधिक परेशान करना ठीक नही है। खेती को मुश्किल बनाया जा रहा है।
लगभग एक किमी अंदर जाकर हस्तिनापुर मार्ग पर स्थित संगत मोहल्ले में सरदार बूटा सिंह (40) हमसे कहते हैं ” किसानों की लड़ाई एकदम सही हैं और हक़ की लड़ाई हैं। अभी हमने सिर्फ रजाई गद्दे और राशन ही भिजवाया है। अब हम भी उनके साथ रहेंगे। कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होंगे। यह लोग कानून बनाकर किसानों को पीछे ले जाना चाहते हैं। हमारे बच्चों के मुंह से निवाला छीनना चाहते हैं। सरकार को यह कानून वापस करना ही होगा ! अगर वो ऐसा नही करते हैं तो हम लड़ते रहेंगे। आखरी सांस तक। मोदी जो कुछ है किसानों की वज़ह है,ये बिल हमें रद्द करवाना है ” रामराज के इस संगत मौहल्ले में किसानों के लगभग 50 घर है। सभी घर बहुत बड़े हैं। युवा गुरजंत सिंह हमें बताते हैं कि यहां 5 एकड़ से कम कोई किसान नही हैं। यह लगभग 35 बीघा होता है। यहां हर गली में गन्ने की ट्रॉली खड़ी है। गुरजंत बताते हैं कि मिल मालिक बाहर से गन्ना खरीद रहा है जबकि हमें इंडेंट नही दे रहा है। किसान से गन्ना खरीदने के लिए मिल मालिक पर्ची देता है। तय धनराशि पर गन्ना खरीदने से बचने के लिए मिल बाहर से खपत पर गन्ना ले रहा है। यह उसे सस्ता मिल रहा है और यहां के किसानों का गन्ना सड़ रहा है।
नरेंद्र सिंह (46) कहते हैं ” इसी से कानून को समझिए, आज मिल मालिक किसानों का गन्ना खरीदने के लिए बाध्य हैं। गन्ने की एक एमएसपी है। एक कीमत तय है। कल जब एमएसपी नही रहेगी तो खरीदार क़ीमत अपनी मर्जी से तय करेगा। किसान सस्ती नही दे पाया तो उसकी उपज सड़ जाएगी ! मजबूरी में वो कम क़ीमत में बेचेगा। नरेंद्र सिंह बताते हैं कि खरीदार न मिलने के उन्हें धान की फसल में 50 हजार रुपये का नुकसान हुआ है। 1791 प्रति कुंतल को हमने मजबूरी 1600 में बेचा है। जबकि एमएसपी 1900 है।अधिकारी लोगों ने कांटे पर उसका धान तोला ही नही। हरियाणा में हमारा बिका ही नही”।
65 साल के सरदार अमरीक सिंह कहते हैं कि किसानों की लड़ाई पूरी तरह जायज़ है और उन पर लगाए जा रहे सभी आरोप बेबुनियाद है। यह बीजीपी का एजेंडा है कि इनके ग़लत कामों का विरोध करने वालों को बदनाम करने के लिए ये उन पर नए नए आरोप लगाते हैं। खलिस्तानी कहने वाली बात भी ऐसी ही है। सब किसान हैं और संघर्ष कर रहे हैं उन्हें बदनाम किया जा रहा है जोकि बिल्कुल ग़लत है। अब मोदी हमें अच्छा नही लग रहे हैं वो इन कानूनों को जितना जल्दी वापस ले ले तो ठीक है। अब हम भी दिल्ली प्रदर्शन में जाने की तैयारी कर रहे हैं।
70 साल के गुरदीप सिंह मलिक कहते हैं मोदी जी ने यह गलत कानून बनाया है। प्रदर्शन में शामिल सभी किसानों को हमारा समर्थन है। यह काले कानून है। इन्हें वापस ले। खेती को डाऊन करने का प्लान बना रहे हैं। ये कह रहे थे कि हम किसानों को बढ़ा देंगे। हम कह रहे है आप हमें मत बढ़ाओ। हम जितने है हमें उतना ही रहना दें। अब हमें मोदी पर भरोसा नही है। हमारी बहन बेटियों को पैसे लेकर शामिल होने के बात कही जा रही है,हमें बदनाम कर रहे हैं। प्रदर्शन में पंजाब के हमारे रिश्तेदार भी शामिल भी है। खलिस्तानी कहने की बात भी ग़लत है। अब हमारा भरोसा टूट चुका है। हम भी दिल्ली जाने की तैयारी कर रहे हैं। हम भी किसान है।
तीन कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली में लाखों किसान पिछले दस दिनों से राजधानी में जुटे हैं। दिल्ली में पंजाब और हरियाणा के इन किसानों के समर्थन में भारतीय किसान यूनियन समेत तमाम किसान संगठनों ने समर्थन दिया है। किसानों की सरकार के साथ दो बार वार्ता विफ़ल हो चुकी है। गांव – गांव अब इस कृषि कानून के प्रति लोगों में नाराजग़ी बढ़ती जा रही हैं। किसानों में हलचल है और खासकर दिल्ली से जुड़े इलाकों में प्रदर्शन में शामिल होने की तैयारी चल रही है।
मीरापुर,दिल्ली से 130 किमी पौड़ी मार्ग ,युवाओं में गहरी नाराजग़ी
यहां भी दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन को लेकर किसानों में हलचल है। किसानों में भविष्य को लेकर चिंताएं है और उन्हें अपना आने वाला कल धुंधला दिखाई दे रहा है। प्रदर्शन बेशक राजधानी में हो रहा है मगर इसका असर गांव-गांव दिखाई दे रहा है। किसानों के चेहरे उदास है और किसान पुत्रों ने लगभग मन बना लिया है कि वो भविष्य में खेती नही करेंगे। युवाओं में खेती को नकारात्मक भाव बन रहे हैं वो कह रहे हैं क्यों और किसके लिए !
18 साल के अजय रंधावा कहते हैं कि हाल फिलहाल वो खेती के नाम से ऊब चुके हैं। मेरे दादा मेहनती किसान रहे हैं। एमए करने के बाद मेरे पिता भी पूरी तरह खेती को समर्पित रहे मगर मैंने मन बना लिया है कि मैं खेती नही करूंगा ! हर तरफ किसानों की दुर्दशा की चर्चा हैं। मैं टीवी देखता हूँ। मुझे बुरा लगता है। मैंने अपने पिता को बेहद सर्दी में आधी रात को खेत मे पानी चलाने के लिए जाते हुए देखा है। मुझे बुरा लगता है जब किसान को अपना हक मांगने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। इस देश में ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दिया जाता है मगर किसानों की हालत अब सब को दिख रहा है। किसान को अन्नदाता कहते हैं और अब उसे बुरा भला कहा जा रहा है। यह बहुत मुश्किल जॉब है। मेरे दादा और पिता 24 बहुत मेहनत करते हैं और फिर उन्हें अपनी फ़सल को बेचने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। किसी को किसानों की परवाह नही है। मुझे अब दुःख होता है। मैं खेती नही करना चाहता। मीरापुर जाटों के मौहल्ले में अजय यह कहते है उनके पास में खड़े हुए पिता जवाब देते है “हां यह ठीक कह रहा है यह खेती नही करेगा। अब इसमें रखा ही क्या है !”
बीएससी कर चुके बेरोजगार युवक सौरभ सिंटू बताते हैं कि यह जो किसानो के बड़े बड़े घर दिखाई देते हैं ये सब कर्ज लेकर बने हैं किसान कर्जदार है। उसके पास बिल्कुल पैसा नही है। सिंटू बताते हैं कि वो चार एकड़ के किसान है, मान लीजिये वो एक बीघा में टमाटर लगाते है और सिर्फ 20 किलों फसल आती है तो किसान का क्या होगा ! फसल का उत्पादन कम हुआ तो किसान के पास कोई विकल्प नही बेचेगा। जब मेरी नौकरी नही लगी तो मैं खेती करने लगा। यह बहुत मुश्किल है। सरकार को हमारी दुर्दशा का ख्याल नही है। अब वो ऐसा कानून लाई है जिसमे हम अपनी फसल बेच भी नही पाएंगे। उनके पास खड़े वैभव कहते हैं जब बिस्कुट पर भी एमआरपी होता है तो किसान की फसल का एमएसपी क्यों नही होना चाहिए !
सिंटू बताते हैं कि सरकार द्वारा लाएं गए कृषि बिल किसानों की बर्बादी के दस्तख़त है। अब मान लीजिये यहां टमाटर 5 रुपये बिक रहा और नागपुर में 25 रुपये किलो,एक किसान के खेत से 100 किलो टमाटर हुआ अब वो उसे यहां बेचेगा तो 500 रुपये का होगा,नागपुर लेकर जाएगा तो किराए में दब जाएगा ! कहानी एकदम गड़बड़ है ! सब कुछ कार्पोरेट के हाथ मे जा रहा है। वो हमारी फसलों के दाम तय करेंगे। लड़ाई एकदम सही है मांग जायज़ है और किसानों के हित में है।
एमए कर चुके अवनीश कालखंडी कृषि के बारे में काफी जानकारी रखते हैं वो कहते हैं सरकार यह बताया कि उसने कृषि सुधारों पर क्या काम किया ! इजराइल की तर्ज पर उसने खेती में कितने आविष्कार किए ! दो महीने से सिंचाई के लिए नहर में पानी नही आया है ! इसका क्या करें और गन्ने की पर्ची और पेमेंट कहाँ है इसका जवाब दें ! वो 2022 में किसानों की आय दुगनी कर रहे थे उसका क्या हुआ ! अवनीश कहते हैं कि आय दुगनी नही हुई बल्कि किसानों पर कर्ज दुगना हो गया ! अब यह तीनों कानून किसानी को खत्म ही कर देंगे। सब कुछ कंट्रोल सरकार के कारपोरेट मित्रों के हाथ मे जाना वाला है। हम बच्चें नही है सब समझ रहे हैं। कारपोरेट सारा ‘प्याज़ ‘ खरीद लेंगे और धीरे धीरे मार्किट में अपनी शर्तों पर सेल करेंगे। एक बार महंगा करके खरीद लेंगे और उसके बाद किसान अपनी फसल को बेचने के लिए भी गिड़गिड़ायगा। कहानी सारी समझ मे आ रही है । दिल्ली में डटे हुए किसानों को इस कानून के रद्द होने तक लड़ाई जारी रखनी चाहिए। वरना हम तो खेती छोड़ देंगे। अब अन्नदाता वाला सम्मान नही हो रहा। हमें बदनाम किया जा रहा है। यह कारपोरेट साज़िश है। हम इसे कामयाब नही होने देंगे।
देवल, गंगा बैराज के करीब ,दिल्ली से 140 किमी, महिलाओं में दिल्ली जाने की ललक
देवल को आप खादर का इलाका कह सकते हैं। गंगा किनारे इस इलाके में डेरा सिखों की बड़ी जमात रहती है। यहां वो खेती करते हैं। सामान्य तौर पर यहां कोई किसान 5 एकड़ से कम नही है। दिल्ली में जारी किसान आंदोलन का दायरा में गंगा किनारे खादर इलाके में रहने वाली 72 साल की हरदेव कौर नवजीवन को बताती है कि वो बीमार है,इसलिए मजबूर है मगर उसका दिल दिल्ली में हीं लगा है। यह किसान हमारे खेत और खेती बचाने के लिए लड़ रहे हैं वो इनका पूरी तरह समर्थन करती है।
हरदेव कौर घुटनों की समस्या से जूझ रही है मगर किसान आंदोलन की बात करते हुए नाराजग़ी जताती है वो कहती है ” यह लड़ाई सिर्फ पंजाब-हरियाणा के किसानों की नही हैं,बल्कि देश भर के किसानों की हैं। वो टीवी देखती है और मोबाइल पर भी देख रही है। सीधी से बात है सरकार कह रही है कि वो यह कानून किसानों की सहूलियत के लिए ला रही है तो हम किसान इसे नही चाह रहे है तो सरकार को दिक्कत क्यों है ! मान लिया कि सरकार ‘लड्डू ‘ हमें लड्डू खिला रही है तो हम नही खा रहे जबरदस्ती क्यों है ! क्यों हमारे मुंह मे ठूंस रहे हैं ” !
हरदेव कौर के पति हिम्मत सिंह अपनी पत्नी की हां में हां मिलाते हैं और कहते हैं “पहले एक कम्पनी ने मोबाइल के सिम फ्री में बांट दिए अब उसके अलावा किसी और कंपनी की रेंज नही आती, हमें ऐसा लड्डू नही खाना जो पेट ख़राब कर दें।” हिम्मत सिंह 5 एकड़ के किसान है वो देवल गांव में रहते हैं। यह गांव दिल्ली से 150 किमी दूर गंगा बैराज के एकदम नज़दीक हैं। हिम्मत सिंह के मुताबिक उनकी पत्नी तक इन कानून को लेकर परेशान है। किसानों में बेचैनी है। बच्चें तक सवाल पूछ रहे हैं। छोटे किसान तो तबाह हो ही जायेंगे।
इसी गांव की राजिंदर कौर 52 कहती है कि वो चाहती है कि उन्हें दिल्ली भेजा जाए और वो वहां धरने पर बैठे किसानों को रोटी बनाकर खिलाएं। राजिंदर कौर फ़िल्म अभिनेत्री कंगना रणौत के बुजुर्ग महिला महिंदर कौर पर दिए गए बयान स नाराज़ है। वो कहती है महिलाएं पुरुषों से जुड़ी हुई है जब उनके घर के मर्द यहां धरने पर है वो घर मे रहकर क्या करेंगी ! वो तो उनके ही साथ रहेंगी। कंगना ने बेहद आपत्तिजनक बात कही है वो चाहती है कि कंगना उनके जानवरों का एक घण्टे चारा करें और इसके लिए वो उन्हें एक हजार रुपये देगी। राजिंदर कौर के मुताबिक तैयारी कर रही है और दिल्ली जाकर कारसेवा करेगी।
देवल के पूर्व प्रधान अवतार सिंह बताते हैं कि किसानों को लेकर यहां गांव में काफी चर्चा हो रही है। गांव के लोगों के पास आंदोलन की सभी खबरें है। अब दिनभर सभी इसी बारे में बात करते हैं महिलाओं में भी यही चर्चा है। किसान इस कानून को बिल्कुल बर्दास्त नही कर रहे हैं। किसान राजेंद्र सिंह बताते हैं कि सरकार का नजरिया तानाशाही जैसा है वो अड़ियल है और किसानों के हितों का ख्याल नही रख रही है आंदोलन को ग़लत तरीके से बदनाम कर रही है और इसके लिए अपने मीडिया तंत्र का सहारा ले रही है। बहुत आसान सी बात है कानून किसानों को पसंद नही तो वापस लो। आज नही तो कल सरकार को झुकना होगा क्योंकि बैकफुट पर हम नही जाएंगे। अब जमीन को अपने खून पसीने से सींचा है हम लगाम अंबानी- अडानी के हाथ मे कैसे दे देगे !