आकिल हुसैन। Twocircles.net
साल 2020 पूर्ण होने पर हैं। यह साल देश के लिए तमाम कठिन परिस्थितियों से गुज़रा है। कोरोनावायरस का प्रकोप, लाकडाउन,दिल्ली दंगे,लाकडाउन के दौरान मजदूरों का पलायन आदि इस तरह की विभिन्न मुश्किल परिस्थितियों का देश को सामना करना पड़ा हैं ।साल 2020 नाइंसाफी, अन्याय, संवेदनहीनता,दुख, पीड़ा और शोषण से पूर्ण था।
जेएनयू में नाइंसाफी का चित्रण करती जनवरी
साल 2020 की शुरुआत सीएए कानून के विरोध से हुई थी। लगभग देश के हर कोने में सीएए का विरोध किया गया। इसी बीच सीएए विरोधी आंदोलनों को कमजोर करने के लिए हिंसा करवाई गई। एएमयू, जामिया, जेएनयू जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों को निशाना बनाया गया। जेएनयू में भाजपा की छात्रा इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद द्वारा हिंसा करी गई। कैंपस में सीएए कानून का विरोध कर रहे छात्रों को एबीवीपी द्वारा निशाना बनाया गया। बताते हैं इस प्रयोजित हिंसा में पुलिस मूक दर्शक बनी रही। जेएनयू छात्रसंघ द्वारा एफआईआर दर्ज कराई गई, परंतु एफआईआर दर्ज होने के पश्चात महज़ खानापूर्ति की गई और हिंसा करने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई।
दिल्ली दंगो इंसाफ के सिसकने की कहानी फ़रवरी
दिल्ली के उत्तर-पूर्वी ज़िले में 23 फ़रवरी से लेकर 27 फरवरी तक दंगे हुए। इस भीषण दंगों ने देश को झकझोर कर रख दिया। यह दंगे सीएए समर्थक प्रदर्शनकारियों और सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के टकराव के बाद शुरू हुए। कई अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार दंगे सुनियोजित, संगठित थे और खासकर मुसलमानो को निशाना बनाकर किए गए थे। चार दिन तक चले दंगों में 53 लोगों की मृत्यु हुई जिसमें 36 मुस्लिम और 15 हिन्दू थे। दंगों के दौरान 11 मस्जिद, पाँच मदरसे, एक दरगाह और एक क़ब्रिस्तान को नुक़सान पहुँचाया गया।
लोगों की जिंदगी की खुशी पर लॉक लगाने वाला मार्च
करोनावायरस के प्रसार को रोकने के कारण देश में 24 मार्च से लाकडाउन का एलान केंद्र सरकार द्वारा किया गया। लाकडाउन अचानक किया गया था, बगैर किसी सूचना के। पूरे देश को पूर्ण रूप से बंद कर दिया गया।लाकडाउन का फैसला बिना कोई नीति और व्यवस्था के लिए गया था,जिसका असर यह हुआ अपने घरों से दूर दराज काम करने वाले लोगों को तमाम संसाधनो के अभाव में अपने घरों को पलायन करना पड़ा। लोगों का पलायन बेहद पीड़ादायक था, सैंकड़ों मीलों का सफर लोगों को पैदल तय करना पड़ा था। सरकारें महज़ तमाशाबीन बनी थी। सरकार की अपने नागरिकों के प्रति संवेदनहीनता देखने को मिली थी।
अपनी गलतियां दुसरो पर थोंपने वाला अप्रैल
देश में कोरोनावायरस अपना भयानक रूप ले चुका था। प्रतिदिन 50 हजार से ज्यादा लोग संक्रमित हुए और प्रतिदिन 8 हजार से ज्यादा लोगों की कोरोनावायरस के कारण मृत्यु हुई। देश में हालात बेहद खराब दे। लाकडाउन भी कोरोनावायरस के संक्रमण को रोकने में नाकाम रहा। देश के हालात बेहद चिंताजनक थे। कोरोनावायरस के कारण विभिन्न बीमारियों के इलाज के अभाव में लोगों को मौत ने लील लिया। कोरोना का इलाज कर रहे डाक्टरों तक कोरोना से संक्रमित हो गए। इस दौरान सरकारी व्यवस्थाओं की हकीकत भी उजागर हुई। सरकार द्वारा कोरोनावायरस को रोकने के विभिन्न दावे करे गए मगर सभी दावे फेल रहे।
मजदूरों की इस त्रासदी का गवाह मई
एक ऐसे वक्त में जब कोरोना वायरस के चलते हुए लॉकडाउन के मद्देनजर देश की एक बड़ी आबादी अपने घरों में रहने को बाध्य हो, और बाहर न निकल पाने के कारण बोरियत का सामना कर रही थी। देश में ऐसे लोग भी थे जो रोजगार के संकट का सामना कर रहे थे। ये लोग भूख के आगे बेबस हैं और पलायन करने पर मजबूर थे। इन्हें हमारा समाज मजदूर कहता है।ये मजदूर रोटी और घर की चाह में अपनी जान की परवाह किये बगैर मीलों पैदल चल दिए। मगर वे सलामती के साथ अपने घर पहुंच जाएं ये बिल्कुल भी जरूरी नहीं था। औरंगाबाद से मध्य प्रदेश के लिए निकले 21 में से 16 मजदूरों की मौत उस वक़्त हुई जब ये लोग रेल की पटरी पर सो रहे थे। मजदूरों को एक मालगाड़ी ने रौंद दिया है। औरंगाबाद के जालना रेलवे लाइन के पास हुए इस हादसे ने पूरे देश को सकते में डाल दिया है। इसी तरह ना जाने कितने जाने पलायन के दौरान सड़कों पर गई कोई सड़क पर हादसे का शिकार हुआ तो किसी ने खाना और पानी ना मिलने के अभाव में दम तोड़ दिया।
15 जून को लद्दाख के गलवान घाटी में एलएसी पर हुई इस झड़प में भारतीय सेना के एक कर्नल समेत 20 सैनिकों की मौत हुई थी। चीन की सेना ने भारतीय जवानों पर लाठी, पत्थरों और कांटेदार तार से हमला किया था।
भारत और चीन के कमांडरों के बीच बातचीत में 6 जून को यह तय हुआ था कि दोनों देशों के सैनिक पुरानी पोजिशन पर लौट जाएंगे। 15 जून की रात को भारत के कर्नल संतोष बाबू सैनिकों के साथ यह देखने गए कि समझौते के मुताबिक चीनी सैनिक लौटे या नहीं। वहां चीनी सैनिक मौजूद थे। बाबू ने इसका विरोध किया। इस दौरान चीनी सैनिकों ने साजिश के तहत हमला किया था जिसमें भारतीय सेना के 20 जवान शहीद हो गए थे।
बाढ़ में बिहार ,जुलाई में तबाही
– जुलाई के महीने में बिहार को बाढ़ का सामना करना पड़ा। मानसून ने बिहार में बड़ी तबाही मचाई। बाढ़ के कारण 55 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं। बिहार में बाढ़ प्रभावित जिलों में समस्तीपुर, सीतामढ़ी, शिवहर, सुपौल, किशनगंज, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, गोपालगंज, खगड़िया, पूर्वी व पश्चिमी चम्पारण बाढ़ की चपेट में अधिक रहे। बाढ़ में फंसी तकरीबन 100 से ज्यादा लोगों को जान गंवानी पड़ी। बाढ़ के कारण फसलों का अत्याधिक नुकसान हुआ। बाढ़ से लोगों के मकानों का भी काफ़ी नुक़सान हुआ। बड़ी संख्या में लोगों के मकान भी ध्वस्त हुए।
हर तरफ मुश्किल में देश मगर टीवी पर सिर्फ ‘सुशांत ‘ –
15 जून को अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने आत्महत्या कर ली थी। मीडिया द्वारा महीनों तक इस मुद्दे को प्रोपेगैंडा के तहत दिखाया गया। सुशांत सिंह राजपूत आत्महत्या मामले में रिया चक्रवर्ती को पुलिस ने ड्रग्स के आरोप में गिरफ्तार भी किया। मीडिया ने फर्जी प्रोपेगैंडा चलाते हुए रिया को सुशांत की हत्या तक का जिम्मेदार बता दिया गया। सीबीआई जांच भी हुई लेकिन रिया चक्रवर्ती निर्दोष साबित हुई और अदालत ने रिया को बरी किया।
हाथरस की अभागी बेटी का सितमगर सितंबर
यूपी के हाथरस में 14 सितंबर को 19 वर्षीय दलित लड़की के साथ गैंगरेप हुआ था। इस केस ने पूरे देश को हिला दिया था। 29 सितंबर को पीड़िता की दिल्ली के सफदरगंज अस्पताल में मौत हो गई थी। इसके बाद उसकी 30 सितंबर की रात उसके घर के पास रात में बिना परिवार को सूचित किए अंत्येष्टि कर दी गई थी। युवती के परिवार ने आरोप लगाया था कि स्थानीय पुलिस ने आनन-फानन में अंत्येष्टि करने के लिए उन पर दबाव डाला था। लड़की की मौत के बाद देशभर में प्रदर्शन हुआ था। इस दौरान यूपी पुलिस ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर दावा किया था कि पीड़िता के साथ गैंग रेप नहीं हुआ। यूपी पुलिस के इस बयान के बाद कोर्ट ने यूपी पुलिस को फटकार भी लगाई थी।
विरोध की आवाजें कुचलने की कवायद वाला अक्टूबर
गत माह अक्टूबर में फादर स्टेन स्वामी को एनआइए ने गिरफ्तार किया है। उन पर भीमा-कोरेगांव हिंसा की साजिश में शामिल होने का शक है। 83 साल की दुबली-पतली काया वाले इस शख्स पर नक्सलियों से संबंध रखने के भी आरोप हैं। स्टेन स्वामी को सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता के रूप में भी जाना जाता है। फ़ादर स्टेन स्वामी तीन दशकों से आदिवासियों के साथ काम कर रहे हैं।वे भारत में सबसे बुज़ुर्ग व्यक्ति हैं, जिन पर आतंकवाद का आरोप लगाया गया है। तमाम समाजिक संगठनों ने फादर स्टेन स्वामी समेत फर्जी मुकदमों में फंसाए गए समाजिक कार्यकर्ताओं की रिहाई के लिए प्रदर्शन भी किया था।
सड़क पर अन्नदाता ,नवंबर
– तीनों नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसान 26 नवंबर से दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे। राजधानी दिल्ली की सीमा पर पंजाब, हरियाणा और कुछ दूसरे राज्य के किसान प्रदर्शन कर रहे हैं। ये किसान अध्यादेश के ज़रिए बनाए गए तीनों नए कृषि क़ानून को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। इस दौरान किसानों और सुरक्षाबलों के बीच काफी झड़प देखने को मिली थी। सुरक्षाबलों ने किसानों पर लाठीचार्ज भी किया था। सरकार किसानों की बात तो सुनने को तैयार हैं लेकिन कृषि कानूनों को वापस लेने को तैयार नहीं है। सरकार के मंत्रियों द्वारा विरोध कर रहे किसानों को खालिस्तानी तक कहा जा चुका हैं।
लव जिहाद ,मुसलमानों के उत्पीड़न का नया कानून
– उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लाएं गए लव जिहाद कानून की आड़ में मुस्लिम युवाओं को गिरफ्तार कर शोषण किया जा रहा है। कानून लागू होने से लेकर अब तक कई बार यह विवादों में भी रहा है, कई बार इसके दुरुपयोग के मामले भी सामने आए हैं। इसके अलावा कई कानूनी विशेषज्ञों ने भी इस पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के कांठ में एक मुस्लिम युवक को लव जिहाद के आरोप में गिरफ्तार किया गया लेकिन बाद में अदालत ने बेकसूर बताते हुए रिहा करा।इसी तरह लखनऊ में आपसी सहमति से हो रहे विवाह को पुलिस ने जबरन लव जिहाद के आरोप में रूकवाया।