यूसुफ़ अंसारी, twocircles.net
नई दिल्ली। शाहीन बाग़ में नागरिकता संशोधन क़ानून, एनपीआर और एनआरसी के ख़िलाफ लगतार दो महीने से चल रहे धरना प्रदर्शन की वजह से बंद की गई सड़क का रास्ता खुलवाने को लेकर दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 17 फरवरी को सुनवाई करेगा। इस दिन शाहीन बाग़ की तरफ से धरने पर बैठी बुज़ुर्ग महिलाएं पक्ष रखेंगी। टीवी चैनलों पर शाहीन बाग की ‘दबंग दादियों’ के नाम मशहूर हुईं इन बुज़ुर्ग महिलाओं की तरफ़ से सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट अनस तनवीर सिद्दीक़ी पेश होंगे।
बतां दें कि सुप्रीम में कुछ दिन पहले शाहीन बाग़ के प्रदर्शन को ख़त्म करने और वहां की सड़क ख़ाली कराने की मांग को लेकर चायिका दाख़िल का गई थी। इस पर पहली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि लोगों के सरकार के बनाए किसी भी क़ानून के शांति पूर्वक विरोध करने का पूरा अधिकार है। लेकिन विरोध के नाम पर लंबे समय तक कोई रास्ता रोकने या उसे बंद करने का अधिकार नहीं है। साथ ही सुप्रीम ने यह भी साफ़ कर दिया था कि वो शाहीन बाग़ की प्रदर्शनकारी महिलाओं का पक्ष सुने बग़ैर उन्हें वहां से हटने का आदेश नहीं दे सकता।
सुप्रीम कोर्ट में 17 फरवरी को इस मामले पर दोबारा सुनवाई होगी। शाहीन बाग़ के प्रदर्शनकारियों को डर है कि सुप्रीम कोर्ट उनका पक्ष सुनने के बाद उन्हें सड़क ख़ाली करने का आदेश दे सकता। इस लिए वो अपना पक्ष मज़बूती से रखने की तैयारियों में जुट गए गए हैं। इसे लेकर क़ानूनी जानकारों के साथ बैठकों के कई दौर हो चुकें हैं। शाहीन बाग़ के प्रदर्शनकारियों के सामने अब दोहरी चुनौती है। उन्हें सरकार के ख़िलाफ़ आंदोलन जारी रखने के लिए क़ानूनी लड़ाई भी लड़नी पड़ रही है। इसके लिए बाक़ायदा लीगल टीम तैयार की गई है। भानुप्रताप सिंह और महमूद प्राचा जैसे सुप्रीम कोर्ट के कई वरिष्ठ वकील प्रदर्शनकारी महिलाओं को क़ानूनी मदद कर रहे हैं।
प्रदर्शनकारियों में इस बात को लेकर मतभेद हैं कि सुप्रीम कोर्ट में उनका पक्ष कौन रखे। महमूद प्राचा ने दावा किया था कि वो सुप्रीम कोर्ट में शाहीन बाग़ का पक्ष रखेंगे। प्राचा ने शाहीन बाग़ की महिलाओं पर 500 रुपए लेकर धरने पर बैठने का आरोप लगने के बाद उनकी तरफ़ से बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय और कई टीवी चैनलों को मानहानि के मुक़दमे का नोटिस भेजा था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में पक्ष रखने के लिए महमूद प्राचा और भानुप्रताप की सेवाएं नहीं जा रहीं। हालांकि दोनों ही कई बार शाहीन बाग़ जा कर लोगों के इसके क़ानूनी पहलू समझा चुके हैं।
शाहीन बाग़ के धरना स्थल पर वॉलंटियर की भूमिका निभा रहे सोनू वारसी ने कहा, ‘शाहीन बाग़ को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई है। शाहीन बाग़ की तरफ से कोई पार्टी नहीं है। महमूद प्राचा अपने आपको लीगल अथॉरिटी बनाकर पेश कर रहे हैं, जोकि ग़लत है। उनके पास यहां का वकालत नामा नहीं है। यहां का मुख्य चेहरा यहां की महिलाएं हैं। सुप्रीम कोर्ट में भी महिलाएं ही शाहीन बाग़ का पक्ष रखेंगी। शाहीन बाग़ की दंबग दादियों के नाम से मश्हूर हुई बुज़ुर्ग महिलाएं सुप्रीम कोर्ट में पक्षकार होंगी।‘ यही बात कई और वॉलंटियर्स ने भी कही।
प्रदर्शनकारियों के मुताबिक़ सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अनस तनवीर सिद्दीकी शाहीन बाग़ की तरफ से अपना पक्ष रखेंगे। ज़रूरत पड़ने पर शाहीन बाग़ को क़ानूनी मदद कर रहे वकीलों से भी मदद ली जी सकती है। सुप्रीम कोर्ट कह चुकी है कि वो शाहीन बाग़ के प्रदर्शनकारियों का पक्ष सुनने के बाद ही सड़क ख़ाली करवाने के मुद्दे पर फ़ैसला सुनाएगी। सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं है। इनमें कहा गया है कि शाहीन बाग़ के धरने का वजह से कालिंदी कुंज से सरिता विहार होकर जानवे वाला रास्ता बंद है। नोएडा से फ़रीदाबाद जाने वालों को मथुरा रोड होकर जाना पड़ रहै है। इससे उनकी यात्रा की दूर और समय दोनों ही बढ़ गए हैं।
ऐसे में शाहीन बाग़ के प्रदर्शनकारियों की ज़िम्मेदारी ज़्यादा बढ़ जाती है। उनके सामने कई बड़ी चुनौतयां है। सबसे बड़ी चुनौती सुप्रीम कोर्ट में यह साबित करना है कि उनकी वजह से रास्ता बंद नहीं है। दूसरी यह साबित करना कि उनकी वजह से लोगों के परेशानी नहीं हो रही। दोनों ही मामलों को साबित करना एक बड़ी चुनौती है। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि उनका धरना स्थल आधा सड़क के किलोमीटर के हिस्से पर ही है। लेकिन पुलिस उन्हें बदनाम करने के लिए नोएड़ा के महामाया नगर से कालिंदी कुंज होकर ओखला जाने वाला और जैतपुर होकर बदरपुर जाने वाला रास्ता भी बंद कियाहुआ है। यह तर्क सुप्रीम कोर्ट में टिक पाएगा, कहना मुश्किल है
ग़ौरतलब है कि शाहीन बाग़ के बहुत से स्थानीय लोग भी रास्ता खुलवाने के लिए स्थानीय थाने में शिकायत दर्ज करा चुके हैं। कुछ लोग दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा भी खटखटा चुके हैं। दिल्ली हाई कोर्ट ने रास्ता खुलवाने का ज़िम्मेदारी दिल्ली पुलिस पर डाली थी। साथ ही यह निर्देश दिया था कि उसकी कार्रवाई में क़ानून व्यवस्था की स्थिति न बिगड़े। दिल्ली पुलिस ने प्रदर्शनारियों से कई बार धरना स्थल को सड़क से हटाकर किसी पार्क में शिफ्ट करने की गुज़ारिश की। हर बार पुलिस को शाहीन बाग़ से बैरंग लोटना पड़ा। अब सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला तय करेगा कि धरना सड़क पर ही जारी रहेगा या फिर वहां से हटेगा।