इसरार अहमद, Twocircles.net
नई दिल्ली। उत्तर पूर्वी दिल्ली के कई इलाकों में 38 लोगों की मौत और 200 से ज़्यादा घायल होने के बाद हिंसा का तांडव अब थम गया है। हिंसा के दौरान नफ़रत की ऐसी आंधी चली कि कुच पलो के लिए लगा य आंधी पूरी पूर्वी दिल्ली को बर्बाद कर देगी। लेकिन नफ़रत की इस आंधी को बीच भी लोगों ने मोहब्बतो के चराग़ो को जलाए रखा। हिंसा की घटनाओं के बीच भाईचारे और पारस्परिक सौहार्द के भी कई वाक़िए सामने आए। ऐसा कई जगहों पर हुआ कि मुस्लिम बहुल इलाकों में मुसलानों ने मंदिरों को नुक़सान पहुंचाने आई भीड़ के सामने खड़े हो गए तो वहीं हिंदू बहुल इलाकों में हिंदुओं ने मस्जिद की हिफ़ाज़त की।
पूर्वी दिल्ली के चांदबाग़ में भी कुछ हिन्दू और मुस्लिम परिवारों ने हिंसा के बीच आपसी भाईचारे की मिसाल पेश की। यह मुस्लिम बहुल इलाक़ा है। यहां कुछ ही हिंदू परिवार रहते हैं। इस इलाक़ो में तीन मंदिर हैं। हिंसा के दौरान यहां मंदिरों पर हमला करने पहुंचे दंगाइयों को मुस्लिमों ने रोक दिया। एक मंदिर को ज़रा सा भी नुकसान नहीं पंहुचाने दिया। इस दौरान मुस्लिम और हिंदुओं ने भाईचारा बनाए रखा। इस मुस्लिम बहुल इलाक़े के मुसलमान हिंदू परिवारों की हिफ़ाज़त के लिए ढाल बनकर खड़े हो गए।
यहां रहने वाले राजेंद्र कुमार मिश्रा कहते हैं, “इस इलाक़े में 70 फ़ीसदी मुसलमान रहते हैं और 30 प्रतिशत हम हिंदू रहते हैं। हमारी गली में तीन मंदिर हैं। तीनों पूरी तरह सुरक्षित हैं। हमें यहां रहते हुए 40 साल हो गए हैं। जैसा अब हुआ है। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। यहां जो भी दंगा फ़साद हुआ है वो बाहरी लोगों ने किया है। दंगाइयो में चांद बाग़ का कोई भी शामिल नहीं था। हम लोगों में तो इतना भाईचारा है कि हम होली और ईद जैसे सभी त्योहार आपस में मिलजुलकर मनाते हैं। हिंसा के दौरान हमारे मुसलमान भाइयों ने हमे सुरक्षित रखा। हमारे मंदिरों की की भी सुरक्षा की। यही भाईचारी आगे भी बना रहेगा।”
वहीं मोहन सिंह तोमर कहते हैं, “हमारे मुसलमाने भाई हमारी सुरक्षा के लिए आगे आए। वो दांगाइयों के सामने खड़े हो गए। उन्होंने एक भी मंदिर को किसी भी तरह क नुक़सान नहीं होने दिया। उन्होंने यहां हिंसा फैलाने के दंगाइयों के मंसूबे पूरे नहीं होने दिए। यहां बुज़ुर्गों ने नोजवानों के हिंसा मे शामिल नहीं होने दिया। जब हमारे चारों तरफ़ हिंसा हो रही थी तब भी यहां पिछले 40 साल का भाईचारा बना रहा।”
दरअसल से इलाक़े के लोग पहले से ही अलर्ट थे। यही वजह है कि पत्थर खाकर भई लोगों ने मंदिरो पर हमला होने से रोका। दंगाग्रस्त चांदबाग में एक श्री दुर्गा फकीरी मंदिर को बचाने के लिए हिंदू और मुस्लिम एक हो गए। दोनों ही समुदायों के लोगों ने मिलकर ऐसी मानव श्रंखला बनाई जिसे कोई भी बाहरी पार न कर सका। मंदिर के पुजारी ओम प्रकाश ने कहा कि स्थानीय लोग जिसमें हिंदू और मुस्लिम दोनों शामिल है, पूरी तरह अलर्ट थे। उन्होंने इस बात का पूरी तरह ध्यान रखा कि कोई भी बाहरी यहां नहीं आ पाए।
वहीं स्थानीय नौजवान मोहम्मद आसिफ कहते हैं, “हमने मानव श्रंखला बनाई और दंगाइयों को आगे बढ़ने से रोका। दंगाइयों की पत्तरबाज़ी में हमारे कई साथी घायल भी हो गए। हमने उन्हें एक क़दम भी आगे नहीं बढ़ने दिया। यह केवल एक मंदिर नहीं है बल्कि हमारी प्रतिष्ठा भी है।” वहीं 70 साल के बुज़ुर्ग अब्दुल रहमान कहते हैं, “संकट की घड़ी मे अपने पड़ोसियों का हिफ़ाज़त करना हमारा इंसानी फ़र्ज़ है। हमने अपना फर्ज़ निभाया है। इबादतगाह कोई भी हो उसकी बेहुरमती नहीं होनी चाहिए। हमने यह नही होने दिया। हम आगे भी ऐसा नहीं होने देंगे।”
इसी तरह खजूरी ख़ास में तो मंदिर को नुक़सान पहुंचाने के इरादे से आई भीड़ के सामने मुस्लिम महिलाएं डटकर खड़ी हो गईं। मुस्लिम महिलाओं की मर्दानगी देखकर स्थानीय पुरुष भी आगे आए और दिल्ली ही नहीं पूरी दुनिया को ये बताया कि यह दिल्ली वो नहीं है जिसकी हिंसक और नफ़रत भरी तस्वीरें बीते दिनों देखी गईं। खजूरी ख़ास के लोगों ने दिखाया कि दिल्ली अमन, तहजीब, भाईचारे और सौहार्द की मिसाल है।
मौजपुर में भी मुस्लिम समुदाय के लोग मंदिरों के आगे पहरा देते नज़र आए। इलाक़े में सोमवार और मंगलवार को इस इलाक़े में हिंसा चरम पर थी। मौजपुर मिलीजुली आबादी है। मुस्लिम बहुल इलाक़े मे कई मंदिर भी हैं। यहां के मुसलमानों ने मंदिरों की हिफ़ाज़त के लिए रात-रात भर पहरा दिया। लोगों का कहना है कि बाहर से कोई भी शरारती तत्व आकर यहां मंदिर पर हमला करके माहौल बिगाड़ सकता था। इसलिए यहां पहरा देना ज़रूरी था। बुद्धवार को रैपिड एक्शन फोर्स ने गलियों में पहरा दे रहे लोगों को सुरक्षा को लेकर सुनिश्चित किया और घरों में जाने की हिदायत दी।
हालांकि पूर्वी दिल्ली में तीन दिन चल हिंसा के नांगे नाच में कई मस्जिदों में तोड़ फोड़ की ख़बरें सामना आई हैं। मुस्तफ़ा बाद के एक मज़ार को पूरी तरह तहस नहस करन की भी ख़बर है। लेकिन ऐसी भी ख़बर है कि हिंदू बहुल इलाक़ों मस्जिद की हिफ़ाज़त के लिए लोग आगे आए। उन्होंने दंगाइयों को मस्जिदों को नुक़सान पहुंचाने से रोका। ऐसा हा एक वाक़िया नंनद नगरी के पास अशोक नगर में हुआ। 25 फ़रवरी को हिंसा के दौरान दिल्ली के अशोक नगर की एक मस्जिद को जलाने आए लोगों से इसे बचाने के लिए कुछ हिन्दू खड़े हो गए। यह मस्जिद आस पास रहने वाले 10 मुस्लिम परिवारों के घरों से सटी हुई है।
मंगलवार दोपहर को क़रीब तीन बजे हिंसक भीड़ आई और मुसलमानों के घरों और मस्जिद को आग लगाने की कोशिश करने लगी। कुछ लोगों ने मस्जिद के मीनार पर चढ़कर भगवा झंडा भी फहरा दिया था। दंगाई मस्जिद को आग लगाना चाते थे। इसी बीच भाईचारे की मिसाल पेश करते हुए हिन्दुओं ने आगे बढ़कर उन्हें ऐसा करने से रोका। अपने मुस्लिम पड़ोसियों को अपने घर में पनाह देकर उनकी जान भी बचाई। यहां रहने वाले कुछ लोगों ने बताया कि दंगाई इलाक़े के बाहर के लोग थे। साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि दंगा करने वाले 20 से 25 साल की उम्र के नौजवान थे।
हालांकि, हिन्दू और मुस्लिम परिवारों ने यहां भाईचारे की मिसाल कायम करते हुए एक दूसरे की रक्षा की और दंगाइयों के नापाक मंसूबों को नाकाम कर दिया। नफ़रत की आंधी जब सबकुछ तबाह करने पर आमादा थी तब लोगों ने मोहब्बत के दिए जलाए रखे। आपसी भाईचारे को क़ायम रखा। ऐसे लोग मिसाल बन गए हैं। ऐसे लोग ही बदलते भारत में उम्मीद की किरण हैं।