हाल ही में आएं सीबीएसई के परिणाम में नोयडा के जुनैद को संस्कृत विषय मे 100 में 100 अंक प्राप्त हुए हैं। जुनैद की इसके लिए खासी सराहना हो रही है। वहीं एक वर्ग ऐसा भी है जो जुनैद के समकक्ष बनारस के डॉक्टर फ़िरोज खान के उदाहरण को रख रहा है जिन्हें मुसलमान होने के कारण विश्वविद्यालय में संस्कृत पढ़ाने से रोक दिया गया था। संस्कृत भारत की प्राचीन भाषा है। यह पडताली रिपोर्ट …
आस मोहम्मद कैफ़ । Twocircles.net
अभी एक साल नही हुआ है जब हर तरफ़ बनारस के फ़िरोज खान की चर्चा थी। जयपुर के बगरू निवासी डॉ फ़िरोज खान बनारस में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्त हुए थे। वो अपने पिता रमज़ान खान के चार बेटों में से एक थे। चारों ने संस्कृत पढ़ी थी। वेदों की जानकारी थी। रमजान खान राम और कृष्ण की भजन गाकर परिवार चला रहे थे। उन्होंने बेटी का नाम लक्ष्मी रख लिया था। फ़िरोज खान को संस्कृत में उसके ज्ञान के लिए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सम्मानित किया था। फ़िरोज खान संस्कृत भाषा के प्रकांड पंडित के तौर पर मशहूर हो रहा था। ऐसे समय उसे देश की संस्कृति के श्रेष्ठ केंद्र बनारस विश्वविद्यालय से बुलावा आया। यहां फ़िरोज खान को अपनी मेहनत के बल पर असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर नौकरी मिली और उसका काम संस्कृत पढ़ाना था।
7 नवंबर को जॉइन करने पहुंचे फ़िरोज खान का पहले दिन ही संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान के स्टूडेंट विरोध करने लगे। धरने पर बैठ गए। उन्हें हटाने की मांग होने लगी और एक दिन उन्हें हटा दिया गया। वज़ह थी “एक मुसलमान संस्कृत नही पढ़ा सकता है”।
इसके बाद रमज़ान खान उर्फ मुन्ना मास्टर ने बीबीसी से बातचीत में कहा था कि “यह बहुत अधिक तक़लीफ़ देह है और उन्हें बनारस ने पहली बार अहसास कराया है कि हम मुसलमान है अब तक हमें इसका अहसास ही नही था।” फ़िरोज खान भी स्तब्ध थे और उन्होंने कहा था कि “किसी भी भाषा को पंथ अथवा जाति से जोड़कर नही देख सकते।मैं मुसलमान हूँ मुझे उर्दू नही आती। संस्कृत बहुत अच्छी आती है हम जिस भाषा को पसंद करते हैं, सीखते हैं। न ही संस्कृत को धर्म मे बांध सकते हैं और न ही अरबी और उर्दू को।भारत मे आम तौर पर लोगो को लगता है कि उर्दू सिर्फ मुसलमानो की भाषा है और संस्कृत हिंदुओ की। यहीं बातचीत में फ़िरोज खान की नियुक्ति का विरोध कर रहे चक्रपाणि ओझा ने कहना था कि फ़िरोज खान की नियुक्ति संस्कृत धर्म विज्ञान में की गई थी जिसमें सिर्फ सनातन वाले ही आ सकते हैं”।
यह चर्चा ठीक ऐसे समय हो रही है जब नोएडा के रहने वाले एक न्यूरोलोजिस्ट के बेटे ज़ैद हसन ने संस्कृत विषय मे 100 में से 100 अंक प्राप्त किये है। जैद हसन की मीडिया में अत्यधिक चर्चा है। उसे सराहा जा रहा है। दिल्ली पब्लिक स्कूल के दसवीं के छात्र ज़ैद हसन ने हिंदी,संस्कृत और विदेशी भाषा के विकल्प में से संस्कृत को चुना था। ज़ैद को कुल 97.6 फ़ीसद नंबर मिले हैं। उसे 500 में से 487 मार्क्स आएं है। ज़ैद हसन से पूछा जा रहा है कि क्या वो संस्कृत में कैरियर बनाना पसंद करेंगे ! ज़ैद के पिता डॉक्टर हसन के अनुसार संस्कृत और उर्दू जैसी भाषाओं में कैरियर बनाना बहुत मुश्किल है। मगर किसी भी भाषा को मज़हब से जोड़ना पूरी तरह ग़लत है।
सामाजिक कार्यकर्ता वसीम अकरम त्यागी के अनुसार ज़ैद हसन की काबलियत अलग चीज़ है,मेहनत से पढ़ने के लिए उसकी तारीफ़ की जानी चाहिए मगर यह कह देना उचित नही है कि किसी भाषा कोई धर्म नही होता है। अब हर भाषा का धर्म होता है। यहां तक कि जानवरों का भी एक धर्म बना दिया गया है। गाय अब हिन्दू होती है और
बकरा मुसलमान। ऐसा सियासत के एक खास हिस्से में मुड़ जाने के कारण हुआ है ! वसीम कहते हैं कि हाल ही में भाजपा के प्रवक्ता संबित पात्रा ने देहरादून रेलवे स्टेशन का एक पुराना बोर्ड साझा किया इसमे बोर्ड की भाषा उर्दू से बदलकर संस्कृत कर दी गई थी,हालांकि वर्तमान स्थिति ऐसी नही है मगर फिर भी संबित ने ऐसा किया। ऐसा करके वो किसी को नीचा दिखाना चाहते थे और एक भरम भी फैलाना चाहते थे , अगर कोई भाषा किसी धर्म की नही है तो फिर संबित पात्रा ऐसा क्यों कर रहे थे!
हिंदी के प्रकांड विद्वान आचार्य कीर्तिभूषण शर्मा अपना एक अलग नज़रिया रखते हुए कहते हैं कि भाषा का चयन आवश्यकता से होता है जैसे उनके पिता अरबी और फारसी के विद्वान थे। आजकल अंग्रेजी में अवसर ज्यादा है तो युवाओं में अंग्रेजी का क्रेज है। हिन्दू धर्म की अधिकतर प्राचीन किताबें संस्कृत में है इसलिए धर्म प्रचार से जुड़े लोग संस्कृत पढ़ते हैं। किसी भाषा के पढ़ने पर कोई पाबंदी नही है। यह तो ज्ञान की बात है। एक समय आया था जब उर्दू के जानकारों को नौकरी मिल रही थी और उत्तर प्रदेश में उर्दू अनुवादकों की नियुक्ति हो रही थी। तब बहुत से हिंदुओ ने उर्दू पढ़नी शुरू कर दी और सैकड़ो की तादाद में नौकरी कर रहे हैं। भाषा आजकल डिमांड से पढ़ी जा रही है।
ज़ैद हसन को संस्कृत पढ़ने की सलाह उसके बड़े भाई यूसुफ हसन ने दी थी। ज़ैद बताते हैं कि भाई ने कहा था कि संस्कृत स्कोरिंग सब्जेक्ट है। ज़ैद के अनुसार संस्कृत बेहद आसान भाषा है इसे समझना बेहद ही आसान है। यही कारण है कि अधिकतर टॉपर बनने की चाह रखने वाले एक विषय संस्कृत के तौर पर लेटे है। ज़ैद भाषा के धर्म से कनेक्शन की चर्चा से खिन्न है। फ़िरोज खान के जिक्र पर वो कहते हैं इल्म हासिल करने पर कोई रोक नही है धार्मिक भेदभाव बेहद ग़लत है ! वैसे भी वो इंजीनियरिंग में कैरियर बनाना चाहते हैं।